Paris Paralympics 2024: भाला फेंक में नीरज चोपड़ा के सपने को पेरिस में सुमित अंतिल ने किया पूरा
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ :Paris Paralympics 2024: 8 अगस्त, रात 1.30 बजे करोड़ों भारतीय नीरज चोपड़ा को पेरिस में स्वर्ण जीतते देखने के लिए जगे थे, लेकिन पाकिस्तान के अरशद नदीम ने सभी की नींद उड़ा दी। उनके 92.97 मीटर के ओलिंपिक रिकार्ड थ्रो ने भले ही भारतीय स्टार एथलीट के स्वर्ण के बचाव के सपने को तोड़ दिया हो। एक माह से भी कम समय में सुमित अंतिल ने नीरज के इस अधूरे सपने को पेरिस में पूरा कर ही दिया। सोमवार को पुरुषों के भाला फेंक एफ64 स्पर्धा में न केवल सुमित ने अपने स्वर्ण का बचाव किया, 70.59 मीटर के थ्रो के साथ अपने पुराने पैरालिंपिक रिकार्ड को भी तोड़ दिया।
रिकार्ड तोड़कर जीता स्वर्ण
नीरज की तरह ही टोक्यो में सुमित अंतिल ने भी भाला फेंक स्पर्धा में भारत के लिए स्वर्ण जीता था। इस बार पेरिस में दोबारा स्वर्ण जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। उनका दबदबा इस स्पर्धा में ऐसा था कि उन्होंने टोक्यो के अपने रिकार्ड को तीन बार तोड़ा और उनके प्रतिद्वंद्वी उनके पिछले रिकार्ड के बराबर भी नहीं पहुंच सके। सुमित ने पहले ही प्रयास में 69.11 मीटर के थ्रो के साथ अपना पुराना रिकार्ड तोड़ दिया। इसके बाद दूसरे प्रयास में उन्होंने भाला 70.59 मीटर दूर फेंककर पेरिस में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। तीसरे प्रयास में 66.66 मीटर, चौथे में फाउल और पांचवें में 69.04 मीटर की दूरी हासिल की।
सुमित ने 66.57 मीटर के अपने अंतिम प्रयास के साथ समापन किया। दूसरे स्थान पर रहे श्रीलंकाई पैरा एथलीट दुलन कोडिथुवाक्कु ने 67.03 मीटर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो फेंका, जबकि तीसरे स्थान पर रहे आस्ट्रेलियाई पैरा एथलीट ने 64.89 मीटर का थ्रो फेंका। कमाल की बात यह है कि इस स्पर्धा का विश्व रिकार्ड भी सुमित के नाम है, जो उन्होंने हांगझू पैरा एशियाई खेलों में 73.29 मीटर के थ्रो के साथ बनाया था।
एक हादसे ने बदल दी थी जिंदगी
सुमित अंतिल का जन्म छह जुलाई 1998 को हरियाणा के खेवड़ा में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता वायु सेना में जूनियर वारंट अफसर थे, जिनका 2004 में देहांत हो गया था। सुमित बचपन से ही काफी मेहनती रहे हैं। उन्हें बचपन से ही कुश्ती में रुचि थी। वे पहलवान बनना चाहते थे और बचपन से ही इसके लिए मेहनत कर रहे थे, लेकिन एक हादसे ने उनकी जिंदगी को बदलकर रख दिया। पहलवान बनने का उनका सपना टूट गया। बात 2015 की है जब सुमित एक दिन ट्यूशन से अपने घर के लौट रहे थे, तभी उनकी बाइक की दुर्घटना हो गई। पिता भारतीय वायुसेना में रहे थे, इसलिए सुमित को आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां डाक्टर को सुमित के घुटने के नीचे के हिस्से को काटना पड़ा। 53 दिन के विश्राम के बाद उन्हें पुणे के कृत्रिम अंग केंद्र (आर्टिफिशियल लिंब सेंटर) ले जाया गया। वहां उन्हें एक प्रोस्थेटिक यानी कृत्रिम पैर लगाया गया।
पैरा एथलेटिक्स से जिंदगी ने ली करवट
जीवन में निराशा के दौर से गुजर रहे सुमित का पहलवान बनकर देश का प्रतिनिधित्व करने का सपना भले टूट गया था। कृत्रिम पैर लगने के बावजूद वह कभी व्यायाम करने से नहीं रुके। हालांकि, दुर्घटना के बाद उन्होंने कुश्ती छोड़नी पड़ी। यह बात जुलाई 2017 की है जब उनके गांव के एक दोस्त और पैरा एथलिट राजकुमार ने उन्हें पैरा एथलेटिक्स के बारे में बताया। और इसी पैरा एथलेटिक्स ने उनकी जिंदगी को बदलकर रख दिया। शुरुआत में वह गोला फेंक में भाग लेना चाहते थे। इसी के बारे में राय लेने के लिए भारतीय कोच वीरेंद्र धनखड़ से मिले। उन्होंने सुमित को भाला फेंक कोच नवल सिंह से मिलवाया। चर्चा करने पर नवल ने सुमित को भाला फेंक का सुझाव दिया और यहां से जिंदगी ने एक नई करवट ले ली।
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