शख्सियत: दिल्ली रहकर निर्भय युवाओं को बना रहे ‘निर्भय’

उपेन्द्र नाथ राय, लखनऊः होली क समय जब कुकुर क पोंछ में खुराफाती लड़का पटाखा बांध के ओहमे आग लगावे ला त जेतना कुकुर के दर्द होला, ओतने लइका के आनंद आवेला, आनंद त हत्यारा के हत्या कइला में भी आवेला, चोर चोरी में सफल हो जाला तब भी ओहके आनंद क अनुभूति होला, लेकिन इ कुल आनंद क्षणिक ही हो सकेला।
एह सबमें एक बात छिपल बा कि दुष्ट जब कहीं पहुंचेला त लोग घरे में लुका जा ला, लोग क बीच दहशत पैदा हो जा ला। सत्य आनंद त तब आवेला, जब आपके उपस्थिति मात्र से दुसरा क चेहरा क मुस्कान बढ़ जाला। लोग धाधाइल रहे लन आपसे मिलला के। यदि आपके माध्यम से दुसरा क चेहरा पर मुस्कान आ जाव, ओहिके सत्य चित आनंद कहल जा सकेला। उहे आनंद स्थायी हो सकेला।
हम किसान क लइका अउरी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ला क नाते, पढ़ाई क समय क दर्द का होला। गांव में समस्या का बा, ओहके केइसे दूर करे के प्रयास कइल जा सकेला। हम जवन दर्द से गुजरल हईं, दूसरा के ओहसे दूर रख सकीं, एहके प्रयास में लागल रहीं ना, जेहसे कुछ लोगन क चेहरा पर खुशी ला सकीं और ओकरा से हमारा अंदर भी सत्य आनंद मिल सके।
यह कहना है 2001 बैच के आइ.आर.टी.एस और वर्तमान में रेलवे में मुख्य यात्री परिवहन प्रबंधक निर्भय नारायण सिंह का। पढ़ाई के दम पर ऊंचे ओहदे पर पहुंचने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन आज के युग में ऊंचे ओहदे पर पहुंचकर जन सामान्य की चिंता करने वाले निर्भय नारायण सिंह जैसे लोगों को मिलना आज के युग में मुश्किल है।
निर्भय नारायण को जैसे ही नौकरी मिली, वैसे ही उन्होंने दो माह का वेतन समाजहित में निकालने का फैसला कर लिया। इसके साथ ही कुछ अपने जैसे लोगों को जोड़कर हर वर्ष अर्थहिन लोगों के अर्थ के प्रबंधन में लगाने का काम करते आ रहे हैं, जिससे यथा संभव कुछ लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला सकें और उनको मिले आनंद से स्व में भी आनंद की अनुभूति कर सकें।
जिन संघर्षों को झेला है, उससे निर्भय बनाना चाहता हूं युवाओं को
निर्भय नाराणय सिंह का कहना है कि किसान का बेटा हूं। वह दिन देखा हूं, जब पाला पड़ने के कारण मसूड़ की फसल खेत में ही छोड़ देना पड़ता था। गांव की उस सुगंध को कैसे भूल सकता हूं, जहां मैंने बचपन जीया है। वह भी दिन देखे हैं, जब कई बुजुर्ग कहा करते थे, “पढ़ब लिखब होईब बेकार, खेती करब घर आई अनाज”। ऐसी परिस्थितियों के बीच पिता जी और उनके जैसे कई लोगों ने अपने बच्चों को गांव से निकालकर इलाहाबाद भेजा। वहां तमाम संघर्षों को झेलते हुए, जब किसी पद पर पहुंच गया तो उस मिट्टी का कर्ज उतारना तो हमारा फर्ज है। उस मां के कर्ज से उऋण तो नहीं हो सकता, लेकिन यदि क्षेत्र के कुछ युवाओं को प्रेरित कर अपनी या अपने से ज्यादा आगे बढ़ाने-पढ़ाने में सक्षम रहा तो मानसिक संतुष्टि तो मिल ही जाएगी, जो किसी भी अन्य काम में नहीं मिल सकता।
अपनी मिट्टी ही मूह है, उसे भूल जाना जिंदगी कटी पंतग की तरह
निर्भय नारायण सिंह का कहना है कि अपनी मिट्टी को भूल जाने का तात्पर्य है जिंदगी कटी पतंग की तरह हो जाना। क्योंकि आप मूल वही है। हमें जितना हमारे समाज ने दिया है। हमारा कर्तव्य है कि आने वाली पीढ़ी को भी हम इतना जागरूक करें कि उस गांव की माटी से भविष्य में भी हमारे जैसे होनहार निकलते रहें। अलख सदा गांव में भी जलती रहे। उन्होंने भोजपुरी संगम से विशेष वार्ता में कहा कि 2001 से ही मैंने सोचा कि जहां रहें, वहीं कुछ जागरूकता के साथ ही कुछ गरीब कल्याण के लिए भी काम करते रहें। इसके बाद मैंने स्वयं हर वर्ष दो माह का वेतन काल्याणार्थ निकालना शुरु कर दिया। इस धन से जहां भी रहा, वहीं पर किसी गरीब की शादी कराना अथवा उसके कल्याण के लिए कोई व्यवस्था करना आदि की शुरूआत कर दी। इसके साथ ही कुछ स्व विचार से ही और साथी हमसे जुड़ते चले गये। सब लोगमिलकर काम करने लगे। उन्हें बार-बार प्रेरित करता और कारवां आगे बढ़ता रहा।
जन्मदिन पर जाते हैं अनाथ आश्रम
निर्भय नारायण का एक और निर्णय सराहनीय है। होली, दिवाली और अपना जन्मदिन घर या कहीं पिकनिक स्पार्ट पर नहीं मनाते। वे अपना जन्मदिन अनाथ आश्रम में मनाते हैं और होली, दिवाली की खुशी वृद्धा आश्रम में जाकर बांटते हैं। महिलाओं के सम्मान में भी कई कार्यक्रम कराने वाले निर्भय नारायण सिंह कहते हैं कि यदि एक महिला जागरूक होगी तो दो परिवार जागरूक होगा, उसका मायका और ससुराल। वहीं एक पुरुष जागरूक होगा तो एक परिवार तक ही सीमित रह सकता है।
बैरिया में दो साल से बढ़ाये हैं सक्रियता
अपने बैरिया क्षेत्र के लिए दो साल से काफी सक्रिय समाज कार्य में जुटे निर्भय नारायण क्षेत्र के युवाओं में जागरूकता पैदा करने के साथ ही शिक्षा का अलख जगाने के लिए वह हर संभव प्रयास कर रहे हैं, जिससे गांव से हर वक्त कोई सितारा निकलता रहे, जो पूरे प्रदेश और देश में अपनी रोशनी फैलाता रहे। उनका कहना है कि सबलोग बलिया की समस्या को बेरोजगारी और संसाधन की कमी मानते हैं, लेकिन मैं शिक्षा का खराब स्तर वहां की प्रमुख समस्या मानता हूं। बलिया में शिक्षण संस्थान हुनरमंद बनाने का काम नहीं कर रहे। वे बच्चों में सिर्फ सर्टिफिकेट बांट रहे हैं, जिससे वहां बेरोजगारी भी बढ़ी है। यदि हम बच्चों में हुनर पैदा करें तो वह स्वयं ही अपने हुनर के अनुसार काम तलाश लेगा। उसका हुनर से उसे कभी बेरोजगार नहीं रहने दे सकता।
बच्चों में हुनर पैदा करना जरूरी
निर्भय कहते हैं कि हमें बच्चों में हुनर पैदा करने की जरूरत है। यदि कोई तकनिकी क्षेत्र में जाना चाहता है तो उसके हुनर के हिसाब से उसको तकनीकि ज्ञान दिया जाना चाहिए। यदि कोई विषय ज्ञाता बनना चाहता है तो उसको अंक गणित आदि का विशेषज्ञ बनाने की जरूरत है। नदी में यदि धारा का वेग तेज होगा तो वह खुद ही अपना रास्ता तलाश कर लेगा। हमें ज्ञान रूपी नदी की धारा का वेग बढ़ाना है।
बच्चों को करें जागरूक, खुद मिल जाएगा रोजगार
इसके लिए उन्होंने बैरिया में हर शिक्षण संस्थान में जाकर बच्चों में शिक्षा के महत्व को बताकर उनको जागरूक करने का काम शुरू किया है। इसके लिए हर माह दिल्ली से बलिया आते हैं। शिक्षण संस्थान के प्रबंधक से पहले से ही समय फिक्स कर लिया जाता है और वहां जाकर युवाओं को शिक्षा और कौशल के प्रति जागरूक करने का काम करते हैं। इससे बच्चों में काफी जागरूकता भी आयी है। बैरिया विधानसभा क्षेत्र के हर शिक्षण संस्थान तक वे जा चुके हैं और हर समय लगातार बारी-बारी से जाते रहते हैं। उनकी इच्छा सरकारी स्कूल को डवलप करने की है। इसके लिए उन्होंने उत्तम विद्यालय की संकल्पना की है, जिससे स्कूल प्रबंधन व वहां की व्यवस्था को दुरुस्थ किया जा सके। इसके साथ ही कई जगह प्रेरित कर उन्होंने स्मार्ट क्लास की शुरूआत कराई हैं, जहां हर आधुनिक ज्ञान से युवा वर्ग को भरा जा सके।
युवा प्रेरणा संवाद कार्यक्रम
युवाओं को प्ररित करने के लिए निर्भय नारायण सिंह और उनकी टीम ने बैरिया में “युवा प्रेरणा संवाद कार्यक्रम ” शुरु किया है। इसके तहत बच्चों के अंदर पढ़ाई के प्रति लगन पैदा करना है। इसके लिए शिक्षण संस्थान के प्रबंधन से टीम बात करती है। उसका समय फिक्स किया जाता है। वहां जाकर निर्भय खुद बच्चों को शिक्षा के प्रति बात कर उन्हें उसके फायदे और आगे की राह चुनने उसके अनुसार आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। वहां विद्यालय में यदि कोई कमी दिखती है तो उसको पूरा करने के लिए स्वयं से प्रबंध भी कराते हैं, जिससे बच्चों का भविष्य सुधारा जा सके। अब तक अपने क्षेत्र के सभी शिक्षण संस्थानों में वे जा चुके हैं। स्कूलों में जाने से पहले स्कूल में युवाओं के साथ उनके अभिभावक को भी बुलाया जाता है। उन्हें भी अपने बच्चों का ख्याल रखने के लिए प्रेरित किया जाता है।
पर्यावरण जागरूकता
निर्भय नारायण बलिया में पर्यावरण स्वच्छ बनाने का भी प्रयास शुरु किया है। इसके तहत उन्होंने “मेरे आवास, एक फलदार पेड़ का प्रवास” अभियान शुरु किया है। इसके तहत जिस घर के सामने जगह है, वहां पर एक फलदार वृक्ष लगाते हैं। एक गांव में एक ही तरह का पौधा लगाया भी जाता है, जिससे वह गांव उसी फल के लिए प्रसिद्ध हो। इसका फायदा बताते हुए वे कहते हैं कि यदि एक ही तरह का फलदार वृक्ष होगा तो फल तोड़ने का झंझट कम हो जाएगा। सबके यहां रहेगा तो वे दूसरे के पेड़ से फल नहीं तोड़ेंगे। दूसरा यह कि वह गांव उसी फल के लिए आगे चलकर प्रसिद्ध हो जाएगा। पौधों में वे आम, कटहल, जामून, आंवला, बेल, अमरूद लगवाते हैं। अब तक तीस गांवों में उनका यह अभियान सफल रहा है। वे चाहते हैं कि हर गांव एक विशेष फल के रूप में जाना जाय। इससे पर्यावरण के साथ ही लोगों को फल की भी प्राप्ति होगी। सरकार द्वारा जंगली पौधे लगाये जाते हैं।यह पर्यावरण संतुलन के लिए तो ठीक है, लेकिन उसका दूसरा कोई लाभ नहीं मिल पाता।
कोरोना काल में आक्सीजन की व्यवस्था
निर्भय नारायण ने कोरोना काल में भी अपने जिले में आक्सीजन सप्लाई सुचारू रूप से बनाये रखने के लिए बहुत काम किया, जिससे सैकड़ों लोगों का भला हुआ। वे बताते हैं कि कोरोना काल में ही एक अपने छात्रावास के पुराने साथी का फोन आया और उन्होंने अपनी धर्मपत्नी के देहावसान का दुखद समाचार दिया। उन्होंने बताया कि आक्सीजन की कमी के कारण वह गुजर गयी। इसके बाद मैं सक्रिय हुआ और अपने लोगों से भी संपर्क साधा। जिले में 10 आक्सीजन मशीन भेजवाया, जिससे आक्सीजन की सप्लाई सुचारू रूप से चलता रहे।
गंगा घाटों पर बनवाए ‘महिला सम्मान घर’
एक बार अपने विधानसभा क्षेत्र में ही गंगा घाट देखने को बहुत वर्षों बाद गये। वहां अब भी महिलाओं को वस्त्र बदलने के लिए कोई व्यवस्था न देख व्यथित हुए और महिला सम्मान घर के नाम से कई जगहों पर वर्तमान में वस्त्र बदलने के लिए गंगा घाटों पर बनवाए। इससे अब महिलाओं को काफी सहुलियत हो गयी। इसके गंगा घाटों पर कई जगह निर्भय के प्रयासों से ही इज्जत घर भी बनवाये गये हैं।
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