Punjab News: किसानों के धरने को लेकर भगवंत मान सरकार की सख्त कार्रवाई, 260 किसानों को हिरासत में लिया

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : Punjab News: पंजाब की भगवंत मान सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा (राजनीतिक) द्वारा 5 मार्च को चंडीगढ़ में आयोजित किए जाने वाले धरने से एक दिन पहले बड़ी सख्ती दिखाई। सरकार ने ऐसे समय में यह कदम उठाया जब किसान संगठनों ने अपने मुद्दों को लेकर दृढ़ता से आंदोलन करने का मन बना लिया था। राज्यभर में व्यापक कार्रवाई करते हुए, पुलिस ने भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता बलबीर सिंह राजेवाल समेत 260 से अधिक किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया। यह कार्रवाई किसान संगठनों के अंदर बढ़ते असंतोष और असमंजस की स्थिति को देखते हुए की गई।
किसानों का गुस्सा फूट पड़ा
इस गिरफ्तारी के खिलाफ किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने जालंधर, अमृतसर, रूपनगर सहित छह जिलों में थानों के सामने प्रदर्शन किया और पुतले जलाए। किसानों ने यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी मांगें और मुद्दे इतने महत्वपूर्ण हैं कि उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। धरने की तैयारी में जुटे किसान नेता अब चंडीगढ़ के मोहाली में गुरु दुआरा अंब साहिब के पास एकत्रित होने की योजना बना रहे हैं, जिसके बाद वे चंडीगढ़ की ओर कूच करने का इरादा रखते हैं।
किसान यूनियनों के बीच ‘क्रेडिट वार’
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि किसान यूनियनों के बीच ‘क्रेडिट वार’ चल रहा है। उनका कहना है कि कुछ किसान संगठन अराजकता फैलाने के लिए समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार समाज के विभिन्न वर्गों के मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने के लिए हमेशा तैयार है। मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी भी प्रकार की हिंसा या उठापटक से बचना चाहिए, क्योंकि यह आम जनता के लिए चिंता का विषय बन जाता है।
आम लोग परेशान
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि धरना-प्रदर्शन की वजह से आम लोग परेशान होते हैं, जो आंदोलनकारियों के खिलाफ आवाज उठाने लगते हैं। भगवंत मान ने किसानों को चेतावनी दी कि इस प्रकार की गतिविधियां उनकी स्थिति को बिगाड़ सकती हैं। उन्होंने एक बैठक के दौरान भी किसानों को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि प्रदर्शनों से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। हालांकि, इस बैठक में किसान नेताओं ने उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया और बैठक बीच में छोड़ दी।
किसान नेताओं की एकजुटता और उनके आंदोलन की रणनीतियों के बारे में जानकर यह स्पष्ट है कि किसान संगठन इस आंदोलन को एक नई आकांक्षा के साथ आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। वे अपने अधिकारों और माँगों के लिए एक मजबूत मोर्चा बना रहे हैं। किसान संगठनों की स्थिति की गहराई को समझना जरूरी है, क्योंकि पंजाब की राजनीति में किसान आंदोलन का एक विशेष स्थान है।
पंजाब में कृषि एक महत्वपूर्ण पेशा है और यहाँ के किसान विभिन्न मुद्दों, जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), कर्ज माफी, और अन्य सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के खिलाफ अपनी आवाज उठाते रहे हैं। हाल के वर्षों में, किसानों का यह आंदोलन और भी प्रासंगिक हो गया है और विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए यह एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बन गया है।
किसान नेताओं के इस धरने के पीछे की वजहों में से एक मुख्य कारण उनकी निरंतर बढ़ती हुई समस्याएँ हैं। कई किसान संगठन यह दावा कर रहे हैं कि सरकार उनकी समस्याओं को सुनने के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा, सर्दियों में पंजाब में फसल जलाने के मुद्दे ने भी इस आंदोलन को और भड़काया है। किसानों का कहना है कि उन्हें उचित प्रशिक्षण और संसाधन नहीं मिल रहे हैं, जिससे उनके लिए अपनी फसल का प्रबंधन करना मुश्किल हो रहा है।
मुख्यमंत्री भगवंत मान के बयान के बाद, किसान नेताओं ने इसे एक चुनौती मान लिया है। वे अपने संगठन के साथ मिलकर सरकार के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होने का निर्णय लिया है। अनेक किसान नेता अब खुद को और अधिक सक्रिय रूप से मैदान में लाने का प्रयास कर रहे हैं।
किसानों का निषेध प्रदर्शन और पुतले जलाने के दृश्य अब पंजाब की ग्रामीण राजनीति का एक स्थायी हिस्सा बन चुके हैं। इस स्थिति का एक और पहलू यह भी है कि किसान आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी भी काफी बढ़ी है। महिलाएं भी अपनी आवाज उठाने के लिए मैदान में आ रहीं हैं, जिससे यह आंदोलन और भी व्यापक और विविधतापूर्ण हो गया है।
आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलबीर सिंह राजेवाल का कहना है कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा लेकिन वे अपनी बात को मनवाने के लिए दृढ़ हैं। वे सरकार से वार्ता की मांग कर रहे हैं और चाहते हैं कि उनके मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा की जाए।
इस सब को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि पंजाब की राजनीतिक परिदृश्य में किसान आंदोलन एक महत्वपूर्ण और अवश्यम्भावी हिस्सा बन चुका है। किसान संगठनों के धारणाओं और उनके संघर्ष की भावना को समझना और उनका सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए उनकी आवाज को सुनना अत्यंत आवश्यक है।
शासन और किसान संगठनों के बीच का यह टकराव निश्चित रूप से आगामी दिनों में राजनीतिक विमर्श का केंद्र बनेगा। यह देखने के लिए दिलचस्प होगा कि क्या सरकार किसानों की मांगों को मानने के लिए तैयार होगी या फिर यह टकराव बढ़ता जाएगा। जैसे-जैसे आंदोलन आगे बढ़ेगा, किसान संगठनों की एकजुटता और उनकी आवाज की गूंज और भी मजबूत होती जाएगी। यह समय की बात है कि वे अपने अधिकारों और आवाज को किस तरह से स्थापित कर पाते हैं। इस संदर्भ में, पंजाब की राजनीतिक और सामाजिक संरचना में किसानों का स्थान हमेशा महत्वपूर्ण रहेगा।