Rajyasabha Election 2024: राज्यसभा चुनाव से पहले बढ़ी सपा की चुनौती, भाजपा के संपर्क में कई विधायक

लखनऊ, BNM News : Rajyasabha Election 2024: राज्यसभा चुनाव से पहले मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को चुनौतियां बढ़ गईं हैं। पार्टी के आधा दर्जन से अधिक विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। कुछ विधायकों के बगावती तेवर को देखते हुए क्रास वोटिंग की आशंका से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बेचैनी है। एनडीए के खिलाफ जिस ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को सपा बड़ी रणनीति मानकर लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही थी, उसकी भी हवा उसके विधायकों ने निकाल दी है।
दोनों ही दलों की नजर क्रास वोटिंग पर
राज्यसभा चुनाव में प्रदेश की 10 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में 11 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें सपा के तीन व भाजपा के आठ प्रत्याशी हैं। सपा अपने दो व भाजपा सात प्रत्याशी तो आसानी से जिता सकती है, किंतु दसवें प्रत्याशी को जिताने के लिए दोनों ही पार्टियों के पास पर्याप्त वोट नहीं है। इसलिए दोनों ही दलों की नजर क्रास वोटिंग पर है। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने तो सपा में बड़ी सेंधमारी की तैयारी कर ली है। सपा के करीब आधा दर्जन से अधिक विधायकों के भाजपा के संपर्क में आने की खबरों ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
इन्द्रजीत सरोज को लेकर चर्चा
निष्ठा बदलने वाले विधायकों में जिनकी चर्चा सबसे अधिक है उनमें मंझनपुर के विधायक व पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव इन्द्रजीत सरोज भी हैं। हालांकि, इन्द्रजीत सरोज इन दिनों गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अपना इलाज करा रहे हैं। उन्होंने इसे अपने खिलाफ साजिश बताते हुए पाला बदलने की खबरों का खंडन किया है। वहीं, पार्टी की विधायक व अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल के तेवर भी कुछ अलग संदेश दे रहे हैं। वो इसलिए नाराज चल रही हैं क्योंकि पीडीए की बात करने वाली सपा ने राज्यसभा प्रत्याशी बनाने में पिछड़ा व अल्पसंख्यक का ख्याल नहीं रखा। उन्होंने सपा प्रत्याशियों को वोट नहीं देने की बात कही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होकर उन्होंने कांग्रेस से भी नजदीकियां बढ़ा दी हैं। वर्तमान परिस्थितियों में सपा के लिए अपने विधायकों को सहेज कर रख पाना उसके लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
राज्यसभा की सीट ने मिलने से सलीम शेरवानी का इस्तीफा
उधर, स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम इकबाल शेरवानी ने भी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी नाराजगी का कारण राज्यसभा प्रत्याशी नहीं बनाया जाना है। रविवार को उन्होंने पत्र में इसका संदर्भ भी दिया। शेरवानी ने पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजे इस्तीफे में लिखा कि कई बार मुस्लिम समाज के लिए राज्यसभा सीट का अनुरोध किया था। भले ही मेरे नाम पर विचार नहीं करते लेकिन, पार्टी किसी एक मुस्लिम पर तो विचार करती…! राज्यसभा में जिस तरह टिकट दिया गया, उससे प्रदर्शित होता है कि आप खुद ही पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को कोई महत्व नहीं देते हैं। इससे यह प्रश्न उठता है कि आप भाजपा से अलग कैसे हैं? एक मजबूत विपक्षी गठबंधन बनाने का प्रयास बेमानी साबित हो रहा है। ऐसा लगता है कि विपक्ष सत्ता पक्ष की गलत नीतियों से लड़ने की तुलना में एक-दूसरे से लड़ने में अधिक रुचि रखता है। धर्मनिरपेक्षता दिखावटी बन गई है।
अगले कुछ हफ्तों के भीतर फैसला करुंगा
मैंने हमेशा बताना चाहा कि मुस्लिम उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उनमें यह भावना बढ़ती जा रही कि धर्म निरपेक्ष मोर्चे में कोई भी उनके जायज मुद्दे उठाने को तैयार नहीं है। वर्तमान परिस्थिति में मैं अपने समुदाय की स्थिति में कोई बदलाव नहीं जा सकता, इसलिए राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा देकर अगले कुछ हफ्तों के भीतर अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में निर्णय लूंगा।
सलीम इकबाल शेरवानी दिल्ली में रहते हैं मगर, बदायूं को उन्होंने राजनीतिक मैदान बनाया। एक बार कांग्रेस से जीते, इसके बाद चार बार सपा से सांसद बने थे। वर्ष 2014 और 2019 को चुनाव वह कांग्रेस के टिकट से लड़े मगर, हार गए थे। बीते विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पूर्व सपा में आने पर महासचिव बना दिए गए। शनिवार को उन्होंने अपने करीबी नेताओं को बदायूं से दिल्ली बुलाया, इसके बाद रविवार को पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी।
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