सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर लगाई रोक, बताया असंवैधानिक, सर्वसम्मति से सुनाया फैसला

नई दिल्ली, BNM News: Supreme Court Judgement Electoral bonds: चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बहुत बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच सालों के चंदे का हिसाब-किताब भी मांग लिया है। अब निर्वाचन को बताना होगा कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से पूरी जानकारी जुटाकर इसे अपनी वेबसाइट पर साझा करे। शीर्ष अदालत के इस फैसले को उद्योग जगत के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है। चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी साल में अंसवैधानिक करार देना, केंद्र सरकार को बड़ा झटका है। कोर्ट ने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मामले की सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सर्वसम्मत निर्णय पर पहुंचे हैं। मेरे फैसले का समर्थन जस्टिस गवई, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा द्वारा किया गया है. इसमें दो राय हैं, एक मेरी खुद की और दूसरी जस्टिस संजीव खन्ना की… दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, हालांकि, तर्कों में थोड़ा अंतर है।
किसने उठाए थे चुनावी बॉन्ड योजना पर सवाल
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल रहा। पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड की खूबी
कोई भी डोनर अपनी पहचान छुपाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता है. ये व्यवस्था दानकर्ताओं की पहचान नहीं खोलती और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त है. आम चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बॉन्ड से चंदा हासिल हो सकता है।
क्या फंडिंग में आई पारदर्शिता?
केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है।
कैसे काम करते हैं ये बॉन्ड
एक व्यक्ति, लोगों का समूह या एक कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी करने वाले महीने के 10 दिनों के भीतर एसबीआई की निर्धारित शाखाओं से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। जारी होने की तिथि से 15 दिनों की वैधता वाले बॉन्ड 1000 रुपए, 10000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किए जाते हैं। ये बॉन्ड नकद में नहीं खरीदे जा सकते और खरीदार को बैंक में केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) फॉर्म जमा करना होता है।
भुनाने पर खाते में जाता है पैसा
सियासी दल एसबीआई में अपने खातों के जरिए बॉन्ड को भुना सकते हैं। यानी ग्राहक जिस पार्टी को यह बॉन्ड चंदे के रूप में देता है वह इसे अपने एसबीआई के अपने निर्धारित एकाउंट में जमा कर भुना सकता है। पार्टी को नकद भुगतान किसी भी दशा में नहीं किया जाता और पैसा उसके निर्धारित खाते में ही जाता है।
KYC नॉर्म का होता है पालन
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले व्यक्तियों की पैसे देने वालों के आधार और एकाउंट की डिटेल मिलती है। इलेक्टोरल बॉन्ड में योगदान ‘किसी बैंक के अकाउंट पेई चेक या बैंक खाते से इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम’ के द्वारा ही किया जाता है। सरकार ने जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड के नोटिफिकेशन जारी करते समय यह भी साफ किया था कि इसे खरीदने वाले को पूरी तरह से नो योर कस्टमर्स (केवाईसी) नॉर्म पूरा करना होगा और बैंक खाते के द्वारा भुगतान करना होगा।
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