महिलाओं के स्त्रीधन पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, पति का अपनी पत्नी की संपत्ति पर कोई नियंत्रण नहीं

नई दिल्ली, एजेंसी: विवाहित महिलाओं के स्त्रीधन पर उनके अधिकार को मजबूत करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘स्त्रीधन’ दंपत्ति की संयुक्त संपत्ति नहीं बन सकती है और पति का अपनी पत्नी की संपत्ति पर कोई नियंत्रण नहीं है। हालांकि वह मुसीबत के समय स्त्रीधन का इस्तेमाल तो कर सकता है, लेकिन बाद में उसे वापस लौटाना होगा।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने स्त्रीधन को लेकर दायर एक वैवाहिक विवाद पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘महिला को अपने स्त्रीधन पर पूरा अधिकार है, जिसमें शादी से पहले, शादी के दौरान या बाद में मिलीं हुईं सभी चीज़ें शामिल हैं, जैसे कि माता-पिता, ससुराल वालों, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिले उपहार – धन, गहने, जमीन, बर्तन आदि।’ अदालत ने एक महिला के खोए हुए सोने के बदले 25 लाख रुपये लौटाने का निर्देश देते हुए अपने फैसले में यह अहम बात कही है।

‘अगर स्त्रीधन का बेईमानी से दुरुपयोग किया जाता है तो …’

पीठ ने कहा कि ‘यह महिला की पूर्ण संपत्ति है और उसे अपने इच्छानुसार बेचने या रखने का पूरा अधिकार है। पति का उसकी इस संपत्ति पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह मुसीबत के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन फिर भी, उसका यह दायित्व है कि वह उसी संपत्ति या उसके मूल्य को अपनी पत्नी को वापस कर दे। इसलिए, स्त्रीधन पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति नहीं बनती है और पति के पास इसका स्वामित्व या स्वतंत्र अधिकार नहीं है।’ अदालत ने यह भी कहा कि अगर स्त्रीधन का बेईमानी से दुरुपयोग किया जाता है तो पति या उसके परिवार के सदस्यों पर IPC की धारा 406 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में फैसला अपराधिक मामलों की तरह ठोस सबूतों के आधार पर नहीं, बल्कि इस बात की संभावना के आधार पर किया जाना चाहिए कि पत्नी का दावा ज्यादा मजबूत है।

पति और उसकी मां पर आभूषणों की हेराफेरी के आरोप

महिला के मुताबिक, शादी की पहली रात उसके पति ने सभी गहने अपने कब्जे में ले लिए। गहनों को सुरक्षित रूप से सहेजने के नाम पर उसने गहने अपनी मां को दे दिए। महिला के आरोप के मुताबिक पति और उसकी सास ने अपनी पुराने कर्जों का निपटारा करने के लिए उसके गहनों का दुरुपयोग किया। मामला अदालत में पहुंचने के बाद फैमिली कोर्ट ने 2011 में पारित फैसले में महिला के आरोपों को सही पाया। कोर्ट ने पति और उसकी मां से उक्त दुरुपयोग से हुए नुकसान की भरपाई करने का निर्देश दिया। बाद में मामला केरल उच्च न्यायालय पहंचा। यहां अदालत ने पारिवारिक अदालत से मिली राहत को आंशिक रूप से खारिज कर कहा कि महिला पति और उसकी मां द्वारा सोने के आभूषणों की हेराफेरी को साबित करने में असफल रही।

पत्नी के ‘स्त्रीधन’ पर पति का अधिकार नहीं

हालांकि, मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो शीर्ष अदालत ने कहा, ‘स्त्रीधन’ पत्नी और पति की संयुक्त संपत्ति नहीं है। पति के पास मालिक के रूप में ऐसी संपत्ति पर कोई स्वतंत्र प्रभुत्व नहीं होता। अदालत ने साफ किया कि किसी महिला को शादी से पहले, शादी के समय या विदाई के समय या उसके बाद उपहार में दी गई संपत्तियां स्त्रीधन संपत्तियां हैं। यह महिला की पूर्ण संपत्ति है। उसे अपनी खुशी के अनुसार इनका निपटान करने का पूरा अधिकार है। पति का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है।

तीन अदालतों में मुकदमा हुआ, 13 साल बाद मिला इंसाफ

दरअसल, इस मामले में महिला ने दावा किया कि शादी के समय उसके परिवार ने 89 सोने के सिक्के उपहार में दिए थे। साथ ही पिता ने पति को दो लाख रुपये का चेक भी दिया था। संपत्ति से जुड़ा यह विवाद पहले केरल की फैमिली कोर्ट में गया, जहां महिला का दावा सही पाया गया। इसके बाद केरल उच्च न्यायालय ने इस आदेश को पलट दिया। केरल हाईकोर्ट के आदेश से असंतुष्ट महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया, जहां अदालत ने उसका दावा सही पाया।
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