भाखड़ा नहर के पानी पर हरियाणा-पंजाब में विवाद से केंद्र सरकार के सामने मुश्किलें बढ़ीं

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पंजाब के सीएम भगवंत मान।
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : पहलगाम आतंकी हमले के पश्चात पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सिंधु जल संधि पर कड़ा रुख अपना चुकी केंद्र सरकार के समक्ष अब एक नई चुनौती आ खड़ी हुई है। यह चुनौती हरियाणा और पंजाब के बीच गहराते भाखड़ा जल विवाद के रूप में सामने आई है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) द्वारा हरियाणा के हिस्से का साढ़े पांच हजार क्यूसिक पानी रोके जाने से उत्पन्न यह विवाद केंद्र सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है, खासकर ऐसे समय में जब राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद पर ध्यान केंद्रित है।
लिखित शिकायत दर्ज कराई
इस विवाद की गंभीरता इस बात में निहित है कि मानसून के दौरान भाखड़ा जलाशय के अतिरिक्त पानी को पाकिस्तान जाने से रोकना तकनीकी रूप से कठिन होगा। इसके अलावा, यदि हरियाणा के हिस्से का पानी लंबे समय तक बाधित रहा तो इसका सीधा असर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जनजीवन पर भी पड़ेगा, क्योंकि दिल्ली भी हरियाणा से होकर आने वाले इस पानी पर कुछ हद तक निर्भर है। इन तमाम जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए हरियाणा सरकार ने बुधवार को बीबीएमबी के समक्ष आधिकारिक तौर पर लिखित शिकायत दर्ज कराई है। बीबीएमबी के अधिकारियों ने भी मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को इससे अवगत करा दिया है।
सख्त बयान सामने आया
इस गंभीर स्थिति पर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल का सख्त बयान सामने आया है। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि यदि इस मामले का शीघ्र ही समाधान नहीं निकाला गया, तो केंद्र सरकार स्वयं हस्तक्षेप कर निर्णय लेगी। उनका यह बयान केंद्र सरकार की चिंता और इस विवाद को जल्द से जल्द सुलझाने की मंशा को दर्शाता है।
गहरी चिंता व्यक्त की
उधर, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी इस जल विवाद को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने आशंका जताई है कि यदि भाखड़ा बांध के जल भंडार में पर्याप्त जगह नहीं होगी, तो मानसून के दौरान आने वाला अतिरिक्त पानी हरिके-पत्तन के रास्ते पाकिस्तान की ओर बह जाएगा। मुख्यमंत्री सैनी ने इसे न केवल पंजाब के हित के खिलाफ बताया, बल्कि राष्ट्रीय हित के लिए भी हानिकारक करार दिया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना के बाद, पंजाब को पाकिस्तान जाने वाले पानी को रोकने की दिशा में काम करना चाहिए और इसके बजाय उस पानी को हरियाणा को उपलब्ध कराना चाहिए, जो वर्तमान में पानी की कमी से जूझ रहा है।
मान का एक वीडियो सामने आया
इस पूरे विवाद के केंद्र में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) की संरचना और उसमें पंजाब की बड़ी हिस्सेदारी है। बीबीएमबी द्वारा हरियाणा के पानी को रोकने के बाद, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का एक वीडियो सामने आया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि पंजाब के पास हरियाणा को देने के लिए कोई अतिरिक्त पानी नहीं है और हरियाणा पहले ही अपने हिस्से का पूरा पानी इस्तेमाल कर चुका है। पंजाब के मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पंजाब पर हरियाणा का पानी रोकने के राजनीतिक मकसद से प्रेरित आरोप लगाया। उन्होंने दोहराया कि यदि बीबीएमबी प्रदेश की मांग के अनुसार शेष पानी उपलब्ध कराता है, तो यह भाखड़ा बांध के कुल जल भंडार का मात्र 0.0001 प्रतिशत होगा, जिससे जल भंडार पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा। मुख्यमंत्री सैनी ने यह भी महत्वपूर्ण तर्क दिया कि जून से पहले जल भंडार को खाली करना आवश्यक होता है, ताकि मानसून के दौरान होने वाली भारी बारिश के पानी को संग्रहित किया जा सके और बाढ़ जैसी स्थितियों से बचा जा सके।
मामला नहीं सुलझा तो केंद्र लेगा कड़ा निर्णय: मनोहर लाल
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल ने इस विवाद पर अपनी राय स्पष्ट करते हुए कहा कि पंजाब सरकार अनुचित दबाव बना रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि यह मामला आपसी बातचीत से नहीं सुलझता है तो केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करके अंतिम निर्णय लेना होगा। उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर हरियाणा को 6800 क्यूसिक पानी मिलता है लेकिन पंजाब सरकार ने इसमें भी कटौती करके दबाव बनाने की कोशिश की है। केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि यदि बीबीएमबी पर किसी भी तरह का दबाव आता है और वे स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पाते हैं तो केंद्र सरकार के पास संवैधानिक अधिकार है कि वह अपनी ओर से निर्णय लेकर पानी का बंटवारा करे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य के हिस्से का पानी लेना नहीं चाहती है बल्कि पाकिस्तान को जाने वाले पानी को बचाकर सभी जरूरतमंद प्रदेशों में वितरित करना चाहती है, ताकि जहां भी पानी की कमी हो, उसे कम किया जा सके।
पानी पर राजनीति न करें भगवंत मान: नायब सिंह सैनी
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी इस मुद्दे पर एक वीडियो जारी करके पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पीने वाले पानी के संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति न करने की सलाह दी है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हरियाणा के कांटेक्ट प्वाइंट पर पानी की आपूर्ति कम होती है, तो इससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की जलापूर्ति भी गंभीर रूप से प्रभावित होगी। मुख्यमंत्री सैनी ने इस संदर्भ में राजनीतिक आरोप लगाते हुए कहा कि जब तक दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार थी, तब तक दिल्ली को जाने वाले पानी पर पंजाब की आप सरकार को कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन अब, दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार आने के बाद, दिल्ली की जनता को “सजा” देने के लिए इस तरह के तथ्यहीन और भ्रामक बयान दिए जा रहे हैं।
दिल्ली, राजस्थान और पंजाब को मिलता है इतना पानी
इस जल विवाद की तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया गया है कि जो पानी बीबीएमबी द्वारा हेड रेगुलेटरी प्वाइंट (एचसीपी) पर भेजा जाता है, उसमें दिल्ली के पीने का पानी 500 क्यूसिक, राजस्थान का 800 क्यूसिक और पंजाब का खुद का 400 क्यूसिक पानी शामिल होता है। इस आवंटन के बाद, हरियाणा को जो पानी मिलता है, उसकी कुल मात्रा लगभग 6800 क्यूसिक रह जाती है। यह भी उल्लेखनीय है कि विभिन्न राज्यों की पानी की मांग हर 15 दिनों में मौसम और आवश्यकता के अनुसार कम या ज्यादा होती रहती है, जिसे एक तकनीकी कमेटी द्वारा सावधानीपूर्वक तय किया जाता है। हालांकि, पिछले एक सप्ताह में हरियाणा को केवल 4000 क्यूसिक पानी ही प्राप्त हुआ है, जो उसकी कुल मांग का लगभग 60 प्रतिशत है, जिससे राज्य में जल संकट गहरा गया है।
केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त चुनौती
यह भाखड़ा जल विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब केंद्र सरकार पहले से ही पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर कड़ा रुख अपनाए हुए है। ऐसे में एक अंतर-राज्यीय जल विवाद का बढ़ना केंद्र सरकार के लिए एक अतिरिक्त चुनौती पेश करता है, जिसे सावधानीपूर्वक और निष्पक्ष रूप से हल करने की आवश्यकता है ताकि किसी भी राज्य के हितों का हनन न हो और राष्ट्रीय एकता बनी रहे। यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस जटिल मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और क्या पंजाब और हरियाणा के बीच आपसी सहमति से कोई समाधान निकल पाता है या फिर केंद्र को हस्तक्षेप करके कोई निर्णायक कदम उठाना पड़ता है। इस विवाद का दिल्ली की जलापूर्ति पर पड़ने वाला संभावित प्रभाव भी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, जिस पर केंद्र सरकार को विशेष ध्यान देना होगा।
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