पहली शादी रहते हुए दूसरी शादी करने वाली महिला और उसके नए पति को सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई सजा
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज: सुप्रीम कोर्ट ने पहली शादी के रहते दूसरी शादी करने पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने द्विविवाह को गंभीर अपराध मानते हुए इस नए जोड़े को छह-छह महीने की साधारण कैद और दो-दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय द्वारा सिर्फ अदालत उठने तक की कैद को बहुत कम सजा माना और कहा कि आईपीसी की धारा 494 (द्विविवाह) का अपराध गंभीर है, जिसमें सात साल तक की सजा का प्रावधान है। ऐसे में दोषियों को अदालत उठने तक की सजा देना पर्याप्त नहीं है।
सजा अपराध की गंभीरता को देखते हुए दी जानी चाहिएः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सजा अपराध की गंभीरता और समाज पर इसके प्रभाव को देखते हुए दी जानी चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने नए जोड़े के बच्चे की आयु केवल छह वर्ष होने के कारण पति और पत्नी को बारी-बारी से सजा भुगतने का आदेश दिया है। आदेश के अनुसार, पहले पति समर्पण करेगा और उसकी सजा पूरी होने के बाद पत्नी सजा भुगतेगी।
पहले पति की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
यह आदेश न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और संजय कुमार की पीठ ने महिला के पहले पति बाबा नटराजन प्रसाद की याचिका पर सुनाया। इस मामले में पहले पति ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने नए जोड़े को द्विविवाह का दोषी तो माना था, लेकिन निचली अदालत द्वारा दी गई एक-एक वर्ष के कारावास की सजा घटाकर अदालत उठने तक की कैद में बदल दी थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने जुर्माने की राशि दो-दो हजार से बढ़ाकर 20-20 हजार रुपये कर दी थी।
नई शादी के बाद एक बच्चा भी पैदा हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर पाया कि महिला ने पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी कर ली और एक बच्चा भी पैदा किया। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस मामले में गैरजरूरी उदारता दिखाई है। हालांकि, निचली अदालत के फैसले के वक्त बच्चा दो वर्ष से छोटा था। आईपीसी की धारा 494 में न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है और अधिकतम सजा सात वर्ष कैद है। निचली अदालत ने एक-एक वर्ष की सजा सुनाई थी, जिसे संतुलित माना गया था। अब बच्चा छह साल का है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को छह-छह महीने कारावास और दो-दो हजार रुपये जुर्माने की सजा दी है।
पहले पति की तलाक अर्जी परिवार अदालत में लंबित
मामले के अनुसार, पहले पति की तलाक अर्जी कोयंबटूर की परिवार अदालत में लंबित थी और कोर्ट के आदेश पर महिला को पांच हजार रुपये प्रति माह अंतरिम गुजारा भत्ता मिल रहा था। लेकिन तलाक से पहले ही महिला ने दूसरी शादी कर ली। पहले पति ने शादी टूटे बगैर दूसरी शादी करने पर अदालत का दरवाजा खटखटाया। साक्ष्यों में यह सामने आया कि पत्नी ने 13 जुलाई 2017 तक गुजारा भत्ता लिया और नई शादी से नवंबर 2017 में उसे संतान हुई। इसके बाद 22 जनवरी 2019 को पत्नी ने भी पहले पति से तलाक के लिए अर्जी दाखिल की।
ट्रायल कोर्ट ने नए जोड़े को दोषी माना
ट्रायल कोर्ट ने नए जोड़े को दोषी मानते हुए सजा सुनाई और सास-ससुर को बरी कर दिया। दोनों पक्षों ने इसके खिलाफ सत्र अदालत में अपील की, जिसने जोड़े की अपील स्वीकार करते हुए उन्हें बरी कर दिया। पहला पति आदेश के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट पहुंचा, जिसने नए जोड़े को द्विविवाह का दोषी माना और दोनों को अदालत उठने तक की कैद की सजा सुनाई। हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ पहला पति सुप्रीम कोर्ट आया था।
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