एक खेत में एक समय में लगा सकते हैं 5 फसलें, सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील ने शुरू की खास तरह की खेती
नरेन्द्र सहारण चंडीगढ। खास खेती के बारे में एडवोकेट हरविंदर सिंह फुल्का ने कहा कि वर्तमान समय में जिस प्रकार से पारंपरिक खेती की जा रही है, उसके अनुसार हमारी बरनाला और भदौड़ क्षेत्र की भूमि पानी की दृष्टि से बंजर होने जा रही है. इसलिए अब समय आ गया है कि पंजाब में खेती के तरीके को बदला जाए.
पंजाब की खेती का धंधा इस समय घाटे का सौदा है. किसान दिन-ब-दिन कर्जदार होते जा रहे हैं. वहीं पानी की समस्या के कारण पंजाब बंजर होता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील हरविंदर सिंह फुल्का ने एक बड़ी मुहिम शुरू की है. उन्होंने इस अभियान की शुरुआत बरनाला जिले के अपने पैतृक गांव भदौड़ में अपने खेतों से की है. एडवोकेट फुल्का ने खेती का नया मॉडल अपनाया है और इस पद्धति के जरिए उन्होंने गेहूं समेत अन्य फसलें लगाई हैं. खेती की फगवाड़ा विधि अपनाकर एडवोकेट फुल्का पानी की बचत के साथ-साथ कम लागत में अधिक आय भी पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि खेती का यह तरीका पारंपरिक खेती से बिल्कुल अलग है. इस तकनीक में हर फसल को बेड बनाकर लगाया जाता है, जिससे पानी की खपत बहुत कम होती है, वहीं फसलों की पैदावार भी अधिक होती है.
इस विधि से एक ही खेत में एक बार में दो से पांच फसलें बोई जा सकती हैं. इससे भी खास बात यह है कि फसल पूरी तरह से ऑर्गेनिक होती है और इस पर किसी भी तरह के रासायनिक खाद और स्प्रे आदि की जरूरत नहीं पड़ती. इससे लागत भी बहुत कम आती है. उन्होंने अपने खेत में लगी गेहूं की फसल और गेहूं में लगे चने को दिखाए, जो सामान्य फसल से ज्यादा उपज देने वाले लग रहे हैं. एडवोकेट फुल्का ने कहा कि पंजाब की जमीन बंजर होने वाली है, जिसे बचाने के लिए हमें आज कदम उठाने की जरूरत है.
कैसी है एचएस फुल्का की खेती?
अपनी खास खेती के बारे में एडवोकेट हरविंदर सिंह फुल्का ने कहा कि वर्तमान समय में जिस प्रकार से पारंपरिक खेती की जा रही है, उसके अनुसार हमारी बरनाला और भदौड़ क्षेत्र की भूमि पानी की दृष्टि से बंजर होने जा रही है. इसलिए अब समय आ गया है कि पंजाब में खेती के तरीके को बदला जाए. धरती से निकाले जा रहे पानी का उपयोग कम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि फगवाड़ा खेती मॉडल एक अच्छा मॉडल है, जो खेती के लिए पानी के उपयोग को कम करता है और फसलों की पैदावार भी बढ़ाता है. ऐसा करके हम पंजाब को बंजर होने से बचा सकते हैं. उन्होंने बताया कि इस खेती विधि से हर फसल को बाट (बैड) बनाकर लगाया जाता है. इससे पानी का उपयोग काफी कम हो जाएगा. उन्होंने बताया कि इस बार उनके खेत में इसी विधि से गेहूं की फसल बोई गई थी. एक एकड़ में मात्र डेढ़ किलो गेहूं का बीज लगा. किसी रासायनिक-स्प्रे की आवश्यकता नहीं है, जबकि इस फसल की पैदावार परंपरागत विधि से अधिक होगी.
फुल्का कहते हैं, इसका मतलब यह है कि इस विधि से कम खर्च, कम पानी में अधिक फसल पैदा की जा सकती है. इसके कारण इस विधि का अधिक से अधिक प्रयोग करने की जरूरत है. उन्होंने पंजाब के किसानों से अपील की कि इसमें केंद्र या पंजाब सरकार का कोई हाथ नहीं है, इसलिए किसानों को खुद आगे आना होगा और बंजर होते पंजाब को बचाने की जरूरत है. एडवोकेट फुल्का ने बताया कि चूंकि इस फसल में किसी भी प्रकार की रासायनिक दवा का प्रयोग नहीं किया जाता है, इसलिए इसका स्वाद भी अन्य फसलों से बेहतर होता है. उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों और परिवार की खुशहाली के लिए खेती की इस पद्धति को अपनाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में पंजाब के किसान अपनी जमीन के कुछ हिस्से में इस विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं.
फगवाड़ा विधि का फायदा
एसएच फुल्का ने कहा कि इस फगवाड़ा मॉडल से सिर्फ गेहूं ही नहीं बल्कि अन्य सभी फसलें भी बोई जा सकती हैं. उन्होंने कहा कि इस विधि से मक्की, नरमा, कपास, गन्ना, सब्जियां और धान भी लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि धान की फसल में सबसे अधिक पानी की खपत होती है. इस विधि से जहां धान रोपने की लागत बचेगी, वहीं पारंपरिक विधि की तुलना में पानी भी बहुत कम लगेगा. इसके साथ ही धान की पराली की समस्या का भी समाधान है क्योंकि धान की पराली को खेत में जोतकर सीधे गेहूं की बुवाई की जा सकती है. इससे भविष्य में गेहूं की फसल अच्छी होगी.
फुल्का ने कहा कि पंजाब के किसान अपने खेतों में आकर प्रदर्शन मॉडल देख सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस विधि से हम एक खेत में एक ही समय में दो से पांच फसल लगा सकते हैं. गेहूं की फसल के साथ चने की फसल भी बोई जा सकती है. इसके अलावा मसरी और मेथा को भी गेहूं के साथ उगाया जा सकता है. इसी प्रकार गन्ने के खेत में गेहूं बोया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस विधि की जानकारी के लिए फगवाड़ा खेती मॉडल बनाने वाले डॉ. अवतार सिंह द्वारा एक पुस्तिका भी प्रकाशित की गई है, जिसे पढ़कर किसान इसका लाभ उठा सकते हैं.