Kurukshetra Loksabha Seat: कुरुक्षेत्र के चुनावी महाभारत में दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा, त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी है यह सीट
नरेन्द्र सहारण, कुरुक्षेत्र। Kurukshetra Loksabha Seat: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे पर एक महान ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थान है कुरुक्षेत्र। यह वह भूमि है, जिस पर महाभारत की लड़ाई लड़ी गई थी और भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्योतिसर में कर्म के दर्शन का ज्ञान दिया था। करीब 18 लाख मतदाताओं वाली कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट देश की प्रमुख हाट सीटों में शामिल है, जहां से देश के प्रमुख उद्योगपति एवं दो बार सांसद रह चुके नवीन जिंदल भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। करीब 20 साल पहले साल 2004 में नवीन जिंदल से ही पराजित हो चुके इनेलो उम्मीदवार अभय सिंह चौटाला एक बार फिर उनके सामने चुनावी रण में ताल ठोंक रहे हैं। वहीं आम आदमी पार्टी ने यहां आइएनडीआइए गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में पूर्व राज्यसभा सदस्य डा. सुशील गुप्ता को चुनाव मैदान में उतारा है।
तिकोने मुकाबले में फंसी हुई है यह सीट
कुरुक्षेत्र सीट पर छठे चरण में 25 मई को मतदान होगा है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी यहां से मौजूदा सांसद हैं, जिनके लिए पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने करनाल विधानसभा सीट खाली की है। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए नायब सैनी को छह माह के भीतर विधानसभा की सदस्यता ग्रहण करनी है, इसलिए नायब सैनी करनाल विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ रहे हैं। जाट, सैनी, ब्राह्मण और रोड बाहुल्य इस लोकसभा सीट पर नायब सैनी ने साल 2019 में 56 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस के चौधरी निर्मल सिंह को 31 प्रतिशत मतों के भारी अंतर से पराजित किया था। फिलहाल यह सीट जातीय समीकरणों के साथ-साथ राष्ट्रीय व क्षेत्रीय मुद्दों के आधार पर तिकोने मुकाबले में फंसी हुई है।
कुरुक्षेत्र से दो बार सांसद रह चुके हैं नवीन जिंदल
साल 2004 और 2009 में उद्योगपति नवीन जिंदल ने कांग्रेस के टिकट पर कुरुक्षेत्र से दो बार लोकसभा चुनाव जीता था, जबकि 2014 के चुनाव में भाजपा के तत्कालीन सांसद राजकुमार सैनी के हाथों पराजित होकर तीसरे नंबर पर खिसक गए थे। 2004 में नवीन जिंदल ने इनेलो के अभय चौटाला को 1.60 लाख मतों के अंतर से पराजित किया था। राजकुमार सैनी अब भाजपा छोड़कर अपनी स्वयं की पार्टी बना चुके हैं, जिनका कोई खास राजनीतिक अस्तित्व नहीं रह गया है। 2014 के बाद से जिंदल ने स्वयं को सक्रिय राजनीति से थोड़ा अलग कर लिया था, लेकिन अपनी राष्ट्र प्रेम की विचारधारा के चलते वे न केवल भाजपा के संपर्क में थे, बल्कि कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट के लोगों से उन्होंने अपना जु़ड़ाव कभी कम नहीं होने दिया।
वैश्य वोटों में बंटवारे की संभावना
साल 2019 में मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर का लाभ मिला और वह सांसद चुन लिए गए। जिंदल स्टील एंड पावर के चेयरमैन नवीन जिंदल के प्रयासों की ही देन है कि न्यायपालिका ने सभी भारतीयों के लिए वर्ष के सभी दिनों में तिरंगे को प्रदर्शित करने का अधिकार दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित राष्ट्र के नारे और विकास की गारंटी के साथ भगवान श्रीराम मंदिर के निर्माण के लाभ नवीन जिंदल को मिलता दिखाई दे रहा है। हालांकि वैश्यों के मत आइएनडीआइए गठबंधन के उम्मीदवार डा. सुशील गुप्ता के पक्ष में बंटने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन जिंदल का जुड़ाव यहां से बेहद पुराना है। यहां तक कि कांग्रेस से जुड़े वैश्य भी जिंदल के चुनाव में पूरी तरह से साथ देते नजर आ रहे हैं। सुशील गुप्ता बाहरी उम्मीदवार होने का दंश झेल रहे हैं। उनके चुनाव लड़ने का आधार भाजपा की बुराई करने के साथ हरियाणा खासकर कुरुक्षेत्र को दिल्ली की तरह विकसित करने का वादा है, जो मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित करता दिखाई नहीं दे रहा है। उद्योगपति नवीन जिंदल को भाजपा के मजबूत संगठन और पूर्व में सांसद रहते कराए गए कार्यों से जीत की आस है, जबकि डा. सुशील गुप्ता के लिए आप कार्यकर्ताओं के साथ कुछ कांग्रेसी भी प्रयास करने की औपचारिकता निभा रहे हैं।
इनेलो ने भी लगाया दांव
1998 से दो बार यह सीट इंडिया नेशनल लोकदल (इनेलो) के खाते में रह चुकी है। अभय सिंह चौटाला जाट हैं। उन्हें वैश्य मतों में बिखराव का लाभ मिलने की पूरी आस बनी हुई है। साल 2019 में अभय सिंह ने अपने बेटे अर्जुन चौटाला को कुरुक्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़वाया था, लेकिन हार गए थे। अभय चौटाला का संगठन हालांकि पूरे प्रदेश में है, लेकिन इनेलो व जजपा की आपसी लड़ाई ने इस परिवार को राजनीतिक बिखराव के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। अभय सिंह चौटाला फिर भी हिम्मत नहीं हारे और लगातार पार्टी को संघर्ष के दौर से उबारने के लिए प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं। कुरुक्षेत्र सीट कभी कैथल के नाम से हुआ करती थी। नफे सिंह राठी की हत्या के बाद अभय सिंह चौटाला ने अपने पुराने साथी रामपाल माजरा की इनेलो में वापसी कराकर उन्हें इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंप दिया है, जिसका उन्हें लाभ मिलने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। किसान संगठनों के आंदोलन को भुनाने की कोशिश कर रहे अभय चौटाला भाकियू के समर्थन से मजबूत हुए हैं।
कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर यह है जातीय समीकरण
कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर जाट 14 प्रतिशत, ब्राह्मण 8 प्रतिशत, वैश्य 5 प्रतिशत और सैनी 8 प्रतिशत होने के बावजूद ओबीसी मतदाता निर्णायक भूमिका में हो सकते हैं। 4 प्रतिशत जाट सिख, 3 प्रतिशत रोड और डेढ़ प्रतिशत राजपूत भी समीकरण को गड़बड़ा सकते हैं। ओबीसी मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है। 8 प्रतिशत सैनी समुदाय के मतदाताओं के अलावा सिख सैनी मतदाताओं की संख्या 2.3 प्रतिशत है। कंबोज 1.5 और कंबोज सिख मतदाता भी 1.5 प्रतिशत है। कश्यप राजपूत मतदाताओं की संख्या 3 प्रतिशत है। गुर्जर वोटरों की संख्या पर नजर डालें तो इनकी संख्या भी 3 प्रतिशत है। वहीं, लबाना और रामगढ़िया मतदाताओं की संख्या करीब 2 प्रतिशत है, जिन्हें हर राजनीतिक दल लुभाने के प्रयासों में है।
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