हरियाणा चुनाव में सिर्फ जाति ही नहीं कई और फैक्टर कर रहे हैं काम, जानें क्यों दलों को बदलनी पड़ रही रणनीति

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Assembly Election 2024: सिर्फ जातिवाद के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता। यह सन्देश हरियाणा के मतदाताओं ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में स्पष्ट रूप से दे दिया था। चुनाव में राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरणों के आधार पर उम्मीदवारों को उतारा, लेकिन जाट और गैर-जाट जैसे जातिगत कारकों का प्रभाव सीमित रहा। मतदाताओं ने उत्कृष्ट छवि वाले अन्य जातियों के उम्मीदवारों को भी समर्थन दिया, जिससे जातिवाद की राजनीति पर एक सशक्त प्रहार हुआ। अब विधानसभा चुनाव में जातिवादी राजनीति करने वाले दलों को सबक सिखाने का एक महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध है।

लोकसभा चुनाव में जातिवाद को नकारने की पहल

विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और भाजपा की रणनीति एक-दूसरे के उम्मीदवारों की घोषणा का इंतजार कर रही है, ताकि सामाजिक समीकरणों का लाभ उठाकर जीत सुनिश्चित की जा सके। क्षेत्रीय दल जननायक जनता पार्टी (JJP) और इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) भी इसी दिशा में काम कर रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि लोकसभा चुनावों में जातिवाद को नकारने की जो पहल की गई थी, उसे विधानसभा चुनावों में भी जारी रखना आवश्यक है।

जातिवाद की राजनीति को चुनौती

 

2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जातिगत समीकरणों का महत्वपूर्ण प्रभाव था। भाजपा ने मोदी लहर के साथ इसका पूरा लाभ उठाया, परिणामस्वरूप लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटें जीती और विधानसभा चुनाव में भी सबसे अधिक सीटें प्राप्त कर हरियाणा में सरकार बनाई। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ जातीय समीकरण को तोड़ते हुए अपनी रणनीति अपनाई। परिणामस्वरूप, भाजपा और कांग्रेस दोनों को समान संख्या में सीटें मिलीं, और जातिगत वोट बैंक का सीधा समर्थन किसी एक पार्टी को नहीं मिला। इस प्रकार, हरियाणा के मतदाताओं ने जातिवाद की राजनीति को चुनौती दी है और आगामी विधानसभा चुनाव में भी इसी दिशा में आगे बढ़ने की उम्मीद है।

बदले समीकरणों ने बिगाड़ा राजनीतिक दलों का गणित

 

  •  कुरुक्षेत्र में सबसे अधिक साढ़े 4 लाख जाट मतदाता होने के बावजूद इनेलो के अभय चौटाला तीसरे स्थान पर रहे, जबकि जाट बहुल विधानसभा क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी डा.सुशील गुप्ता और नवीन जिंदल को लीड मिली। इस चुनाव में नवीन जिंदल ने जीत हासिल की थी।
  •  भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर भाजपा ने जाट प्रत्याशी धर्मबीर सिंह और कांग्रेस ने अहीर प्रत्याशी राव दान सिंह को उतारा। राव दान सिंह अपने हलके महेंद्रगढ़ के साथ ही अटेली, नारनौल और नांगल चौधरी में हार गए, जिस क्षेत्र में यादव वोट सबसे ज्यादा हैं। वहीं, भिवानी जिले की जाट बाहुल्य सीटों चरखी दादरी, बाढ़ड़ा और लोहारू में चौधरी धर्मबीर सिंह पिछड़ गए। यादव बहुल विधानसभा क्षेत्रों के सहारे धर्मबीर लोकसभा पहुंचने में सफल रहे।
  •  आरक्षित अंबाला और सिरसा में अनुसूचित जाति और सामान्य जाति के साथ सिख, जाट और एससी मतदाताओं की एकजुटता ने दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में डाल दी।
  •  हिसार सीट पर कई बड़े प्रत्याशी जाट चेहरे थे, लेकिन यहां पर बिश्नोई समाज, पिछड़ा समाज और एससी समाज ने कांग्रेस को वोट देकर अपने हलकों में लीड दिलाई।
  •  रोहतक से कांग्रेस सांसद बने दीपेंद्र हुड्डा को कोसली और झज्जर में अहीरों ने दिल खोलकर वोट दिए। ब्राह्मणों, सैनी समाज और अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने भी जाट चेहरे दीपेंद्र को खूब समर्थन दिया।
  • जाट बाहुल्य सोनीपत संसदीय क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही प्रत्याशी ब्राह्मण समाज से थे। भाजपा के मोहन लाल बड़ौली को ब्राह्मणों के साथ ही वैश्य समाज के खूब वोट मिले, जबकि कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी की जीत में जाट और अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई।

 

हरियाणा में जातिगत समीकरण

 

जाट -22.2 प्रतिशत
अनुसूचित जाति -21 प्रतिशत
पंजाबी -8 प्रतिशत
ब्राह्मण -7.5 प्रतिशत
अहीर -5.14 प्रतिशत
वैश्य -5 प्रतिशत
जाट सिख -4 प्रतिशत
मेव और मुस्लिम -3.8 प्रतिशत
राजपूत-3.4 प्रतिशत
गुर्जर-3.35 प्रतिशत
बिश्नोई -0.7 प्रतिशत
अन्य -15.91 प्रतिशत

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