मणिशंकर अय्यर की नई पुस्तक में बड़ा खुलासा: 2012 में प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता तो …

नई दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने अपनी नई पुस्तक “ए मैवरिक इन पालिटिक्स” में कई महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं। अय्यर ने कहा है कि 2012 में जब राष्ट्रपति पद रिक्त हुआ था, तब प्रणब मुखर्जी को संप्रग-दो सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था। उनका मानना है कि अगर ऐसा हुआ होता तो संप्रग सरकार ‘शासन के पंगु बनने’ की स्थिति में नहीं पहुंचती।

पुस्तक में 83 वर्षीय अय्यर ने लिखा है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजने का निर्णय संप्रग की तीसरी बार सरकार बनाने की संभावना खत्म करने वाला साबित हुआ। उन्होंने लिखा, “2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मल्टीपल कोरोनरी बाईपास सर्जरी करानी पड़ी। वह कभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सके। इससे उनकी काम करने की गति धीमी हो गई और शासन प्रभावित हुआ। लगभग उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी बीमार पड़ीं, लेकिन पार्टी ने इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की।”

‘सक्रिय प्रधानमंत्री की जरूरत थी’: अय्यर

अय्यर ने लिखा कि उस समय शासन में स्पष्ट नेतृत्व का अभाव था और सरकार कई संकटों का प्रभावी ढंग से सामना नहीं कर पाई। उन्होंने विशेष रूप से अन्ना हजारे के ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन का जिक्र किया, जिससे संप्रग सरकार को काफी नुकसान हुआ। उन्होंने सुझाव दिया कि 2012 में प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाना बेहतर होता क्योंकि सरकार को उस समय एक ऊर्जावान और सक्रिय नेता की जरूरत थी।

अय्यर ने कहा कि प्रणब मुखर्जी के संस्मरणों से यह स्पष्ट होता है कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने की संभावना पर विचार किया गया था। उन्होंने लिखा कि प्रणब मुखर्जी का अनुभव और नेतृत्व क्षमता उस समय सरकार को मजबूत कर सकती थी। लेकिन, मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद पर भेजने के निर्णय से संप्रग सरकार कमजोर हो गई।

गांधी परिवार के समर्थन से बने और बिगड़े करियर

अय्यर ने अपने राजनीतिक जीवन के बारे में बात करते हुए कहा कि गांधी परिवार ने ही उनका करियर बनाया और बिगाड़ा। उन्होंने लिखा, “पिछले दस वर्षों में मुझे सोनिया गांधी से मिलने और राहुल गांधी के साथ सार्थक समय बिताने का अवसर नहीं दिया गया। मुझे पार्टी में पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया, हालांकि मैं आज भी पार्टी का सदस्य हूं और कभी भाजपा में नहीं जाऊंगा।”

अय्यर ने राजनीति में अपनी असफलता का कारण बताते हुए कहा, “अगर आप राजनीति में सफल होना चाहते हैं तो आपका आधार बहुत मजबूत होना चाहिए। आपके पास एक संसदीय क्षेत्र होना चाहिए जहां आप अपराजेय हों, या आपके पास जातिगत या धार्मिक समर्थन हो। मेरे पास इनमें से कुछ भी नहीं था। मुझे सिर्फ संरक्षण मिला। पहले राजीव गांधी का, फिर सोनिया गांधी का। लेकिन जब 2010 में सोनिया गांधी नाराज हो गईं, तो यह संरक्षण भी वापस ले लिया गया। हालांकि, पूरी तरह नहीं।”

मोदी पर ‘चायवाला’ टिप्पणी का सच

अय्यर ने अपनी पुस्तक में 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई कथित ‘चायवाला’ टिप्पणी का भी जिक्र किया। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने कभी मोदी को ‘चायवाला’ नहीं कहा और न ही यह कहा कि चायवाला होने के कारण वह प्रधानमंत्री नहीं बन सकते।

उन्होंने लिखा, “2014 में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को स्पष्ट विजेता के रूप में प्रचारित किया जा रहा था। मैं इस बात से भयभीत था कि जिस व्यक्ति की छवि गुजरात में 2002 के मुसलमानों के नरसंहार के कारण दागदार है, वह महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के भारत का नेतृत्व करने की आकांक्षा रख सकता है।”

अय्यर ने कहा कि जनवरी 2014 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्ण अधिवेशन के दौरान उन्होंने मजाक में कहा था, “अगर चुनाव हारने के बाद भी मोदी चाय परोसना चाहते हैं, तो हम उनके लिए कुछ व्यवस्था कर सकते हैं।” लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते क्योंकि वह चायवाले थे।

मोदी ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया बयान

अय्यर ने दावा किया कि मोदी ने उनकी टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और इसे अपने चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया। उन्होंने लिखा कि वास्तव में, “अपने आपको ‘चायवाला’ कहने वाले खुद नरेंद्र मोदी थे। यह पूरी तरह झूठ है कि मैंने मोदी को ‘नीच जाति’ का व्यक्ति कहा था।”

‘कांग्रेस को नेतृत्व पर पुनर्विचार की जरूरत’

अय्यर ने कांग्रेस पार्टी के भविष्य पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि पार्टी को अपने नेतृत्व और कार्यशैली पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि पार्टी को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ संवाद बढ़ाना चाहिए और जनता से जुड़ने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए।

संप्रग-3 की संभावना खत्म क्यों हुई?

अय्यर का मानना है कि 2012 में लिए गए गलत निर्णयों ने 2014 के चुनावों में कांग्रेस की हार का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने लिखा कि अगर उस समय प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाता तो संप्रग सरकार मजबूत स्थिति में होती और तीसरी बार सत्ता में आने की संभावना बरकरार रहती।

पुस्तक ने खड़ा किया राजनीतिक विवाद

अय्यर की यह पुस्तक राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है। कांग्रेस के भीतर और बाहर उनके विचारों पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कई नेता उनकी आलोचना कर रहे हैं, जबकि कुछ उनके तर्कों का समर्थन कर रहे हैं। अय्यर की यह पुस्तक न केवल कांग्रेस के इतिहास और नेतृत्व पर एक नई दृष्टि प्रस्तुत करती है, बल्कि भारतीय राजनीति के कई अनछुए पहलुओं को भी उजागर करती है।

 

 

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