विश्व विख्यात तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन, 2023 में मिला था पद्म विभूषण; तीन ग्रैमी अवॉर्ड विनर भी रहे
नई दिल्ली। विश्व विख्यात तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का सोमवार सुबह निधन हो गया। उनकी मौत की खबर पहले रविवार को सामने आई थी, लेकिन बाद में उनके परिवार ने इसे खारिज कर दिया था। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी पहले उनके निधन की सूचना दी थी, लेकिन बाद में पोस्ट डिलीट कर दी। आखिरकार सोमवार सुबह उनके परिवार ने उनके निधन की पुष्टि की। उस्ताद जाकिर हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक बीमारी से पीड़ित थे। परिवार के मुताबिक, वह पिछले दो हफ्तों से सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में भर्ती थे। हालत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में रखा गया था। वहीं पर उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
प्रारंभिक जीवन और संगीत की दुनिया में पदार्पण
9 मार्च 1951 को मुंबई में जन्मे उस्ताद जाकिर हुसैन का जीवन संगीत और कला को समर्पित रहा। उनके पिता, उस्ताद अल्लाह रक्खा कुरैशी, भी एक महान तबला वादक थे। उनकी मां का नाम बीवी बेगम था। जाकिर ने अपनी शुरुआती शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से प्राप्त की। बाद में उन्होंने ग्रेजुएशन सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से किया।
संगीत में उनकी दिलचस्पी बचपन से ही थी। उनकी उंगलियां किसी भी सपाट सतह पर धुन बनाने लगती थीं। वह तवा, हांडी, थाली जैसे घरेलू बर्तनों पर भी तबले की तरह बजाने का अभ्यास करते थे। महज 11 साल की उम्र में उन्होंने अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट दिया। 1973 में उन्होंने अपना पहला एल्बम लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड लॉन्च किया।
प्रतिष्ठित पुरस्कार और उपलब्धियां
जाकिर हुसैन को 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें चार ग्रैमी अवॉर्ड भी मिले, जिनमें से तीन एक साथ मिले थे। उनके पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा के साथ उनका तालमेल भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व मंच पर ले गया।
2016 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय संगीतकार थे।
संघर्ष और समर्पण की कहानियां
जाकिर हुसैन का जीवन संघर्ष और समर्पण से भरा रहा। अपने शुरुआती दिनों में वह जनरल कोच में सफर करते थे और फर्श पर सो जाते थे। उनका तबला उनकी गोद में होता था, ताकि किसी का पैर न लग जाए। उन्होंने एक बार कहा था कि जब वह 12 साल के थे, तब एक कॉन्सर्ट में उन्हें 5 रुपये मिले थे। उन्होंने इसे अपनी जिंदगी की सबसे कीमती कमाई बताया।
अभिनय में भी आजमाए हाथ
जाकिर हुसैन ने संगीत के अलावा कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया। 1983 में उन्होंने ब्रिटिश फिल्म हीट एंड डस्ट में अभिनय किया, जिसमें शशि कपूर भी थे। 1998 की फिल्म साज में उन्होंने शबाना आजमी के प्रेमी का किरदार निभाया। उन्हें फिल्म मुगल-ए-आजम (1960) में सलीम के छोटे भाई का रोल ऑफर हुआ था, लेकिन उनके पिता ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि वह चाहते थे कि उनका बेटा संगीत पर ही ध्यान दे।
संगीत की दुनिया में योगदान
जाकिर हुसैन ने शास्त्रीय संगीत को एक नई पहचान दी। उन्होंने तबला वादन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लोकप्रिय बनाया। उनकी प्रतिभा और मेहनत का नतीजा है कि आज भारतीय शास्त्रीय संगीत विश्वभर में पहचाना जाता है।
अंतिम दिनों की संघर्ष गाथा
जाकिर हुसैन को इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक दुर्लभ बीमारी थी। इसके चलते वह काफी समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे थे। सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उनके परिवार ने उनकी हालत को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया था। हालांकि, उनके निधन से पहले उनके परिवार ने स्थिति गंभीर होने की पुष्टि की थी।
एक अमिट छाप छोड़ गए
उस्ताद जाकिर हुसैन का जाना भारतीय संगीत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी मेहनत और प्रतिभा ने तबला वादन को जो ऊंचाई दी, वह हमेशा याद की जाएगी। उनके द्वारा सिखाई गई विधियां और उनकी शैली आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।
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