दिल्ली में पुराने वाहनों पर प्रतिबंध: सरकार ने लिया यू-टर्न और नागरिकों की बढ़ती चिंताएं

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज: दिल्ली सरकार ने पुराने पेट्रोल और डीजल वाहनों को जब्त करने और ईंधन देने पर प्रतिबंध लगाने के अपने हालिया आदेश को तत्काल प्रभाव से रोक दिया है। यह निर्णय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा द्वारा लिखे गए एक पत्र और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के हस्तक्षेप के बाद आया है, जिन्होंने नागरिकों को हो रही भारी कठिनाइयों का हवाला दिया। यह कदम दिखाता है कि प्रदूषण नियंत्रण जैसे गंभीर मुद्दों पर भी जमीनी हकीकत और जनता की सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण एक गंभीर और दीर्घकालिक समस्या है, जिसके समाधान के लिए सरकारें समय-समय पर विभिन्न उपाय करती रही हैं। इसी कड़ी में, 1 जुलाई, 2025 से एक नया निर्देश लागू किया गया था, जिसके तहत 10 से 15 साल पुराने पेट्रोल और डीजल वाहनों को जब्त करने और उन्हें ईंधन न देने का प्रावधान था। इस निर्देश का उद्देश्य दिल्ली की सड़कों से प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को हटाना था, लेकिन इसे लागू करने के महज दो दिन बाद ही सरकार को इस पर यू-टर्न लेना पड़ा है।
तत्काल निलंबन: जनहित और व्यवहार्यता का मुद्दा
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बृहस्पतिवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को एक पत्र लिखकर परिवहन विभाग के निर्देश संख्या 89 के क्रियान्वयन को रोकने का आग्रह किया। यह निर्देश 1 जुलाई, 2025 से लागू किया गया था और इसका सीधा प्रभाव दिल्ली में लाखों पुराने वाहनों पर पड़ रहा था।
सिरसा ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि यद्यपि दिल्ली सरकार CAQM के उद्देश्यों के अनुरूप है और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए प्रतिबद्ध है, इस विशेष निर्देश (EoL वाहनों को ईंधन के आधार पर पहचानना – डीजल के लिए 10 साल और पेट्रोल के लिए 15 साल) के कार्यान्वयन में कई परिचालन और ढांचागत चुनौतियां हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि “वर्तमान में इस आदेश को लागू करना संभव नहीं होगा। वास्तव में, निर्देश संख्या 89 का तत्काल कार्यान्वयन अपरिपक्व और संभावित रूप से प्रतिकूल होगा।”
इस निर्णय पर पुनर्विचार के पीछे मुख्य कारण नागरिकों को हो रही कठिनाइयां थीं। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “दिल्ली के नागरिकों को हो रही कठिनाइयों को देखते हुए सरकार ने सीएक्यूएम को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि उम्र पूरी कर चुके वाहनों को ईंधन न देने के निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए। यह निर्णय लाखों परिवारों की रोजमर्रा की ज़िंदगी और आजीविका को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है।”
“एंड ऑफ लाइफ” वाहन (EoL) और उनके पंजीकरण रद्द करने का मुद्दा
दिल्ली हाई कोर्ट भी लंबे समय से “एंड ऑफ लाइफ” (EoL) वाहनों का पंजीकरण रद्द करने और यह सुनिश्चित करने के निर्देशों का पालन कर रहा है कि वे दिल्ली की सड़कों पर न चलें। दिल्ली सरकार भी इस बात पर सहमत है कि धीरे-धीरे प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को सड़क से हटाया जाए और इसके लिए एक व्यापक वायु प्रदूषण शमन कार्य योजना भी लागू की गई है। हालांकि, समस्या उस तरीके में है जिस तरह से इस विशेष निर्देश को लागू करने का प्रयास किया गया।
निर्देश संख्या 89 विशेष रूप से EoL वाहनों को ईंधन के आधार पर (डीजल के लिए 10 साल और पेट्रोल के लिए 15 साल) पहचान कर उन पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित था। यह वह बिंदु था जहां व्यवहार्यता संबंधी चुनौतियां सामने आईं।
परिचालन और ढांचागत चुनौतियां
पर्यावरण मंत्री सिरसा ने अपने पत्र में जिन परिचालन और ढांचागत चुनौतियों का जिक्र किया, वे कई स्तरों पर हो सकती हैं:
ANPR प्रणाली का अभाव: सिरसा ने अपने पत्र में विशेष रूप से ANPR (ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन) प्रणाली का उल्लेख किया। उन्होंने CAQM से आग्रह किया कि “निर्देश संख्या 89 के क्रियान्वयन को तब तक तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए, जब तक कि ANPR प्रणाली पूरे एनसीआर में सहज रूप से एकीकृत न हो जाए।” यह दर्शाता है कि पुराने वाहनों की पहचान करने और उन्हें ईंधन देने से रोकने के लिए एक मजबूत और एकीकृत तकनीकी प्रणाली की कमी है। ANPR प्रणाली के बिना, यह सुनिश्चित करना बेहद मुश्किल होगा कि कौन से वाहन 10 या 15 साल से अधिक पुराने हैं और उन्हें ईंधन नहीं मिलना चाहिए।
लाखों वाहनों की पहचान और प्रबंधन: दिल्ली में लाखों पुराने वाहन चल रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में वाहनों को तुरंत पहचानना, उनके मालिकों को सूचित करना, और यह सुनिश्चित करना कि उन्हें ईंधन न मिले, एक विशाल प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चुनौती है।
ईंधन स्टेशनों पर कार्यान्वयन: पेट्रोल पंपों पर इस आदेश को लागू करना अत्यंत जटिल होगा। पंप मालिकों को हर वाहन की उम्र सत्यापित करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता होगी, जिससे ईंधन भरने की प्रक्रिया धीमी होगी और ग्राहकों के साथ विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
नागरिकों पर तत्काल आर्थिक बोझ: लाखों परिवार अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों और आजीविका के लिए इन पुराने वाहनों पर निर्भर हैं। अचानक उन पर प्रतिबंध लगाने से उन्हें तत्काल परिवहन के विकल्प खोजने और नए वाहन खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिससे उन पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा, खासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों पर।
पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन विकल्प का अभाव: यदि इतनी बड़ी संख्या में निजी वाहनों को सड़क से हटा दिया जाता है, तो दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पर अप्रत्याशित दबाव पड़ेगा। मौजूदा सार्वजनिक परिवहन शायद ही इतनी बड़ी अतिरिक्त मांग को पूरा करने में सक्षम हो, जिससे दैनिक यात्रियों को भारी असुविधा होगी।
स्क्रैपेज नीति की तैयारी: पुराने वाहनों को हटाने के लिए एक सुचारु और कुशल स्क्रैपेज नीति का होना आवश्यक है। यदि वाहन मालिकों को अपने पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के लिए प्रोत्साहन और आसान प्रक्रियाएं प्रदान नहीं की जाती हैं, तो वे अवैध रूप से वाहनों का उपयोग जारी रख सकते हैं या उन्हें बेचने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे समस्या और बढ़ सकती है।
सरकार की प्रतिबद्धता और संतुलित दृष्टिकोण
दिल्ली सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है कि वह वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और स्वच्छ, टिकाऊ परिवहन को बढ़ावा देने के लिए गंभीर है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने अपने बयान में कहा, “हमारी सरकार वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है और स्वच्छ, टिकाऊ परिवहन के लिए दीर्घकालिक समाधान पर कार्य कर रही है, लेकिन किसी भी निर्णय को लागू करते समय नागरिकों की सामाजिक व आर्थिक आवश्यकताओं के साथ संतुलन बनाए रखना उतना ही आवश्यक है।”
यह बयान सरकार के संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है। सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लक्ष्य से पीछे नहीं हट रही है, बल्कि वह ऐसे समाधान चाहती है जो प्रभावी हों और साथ ही नागरिकों के जीवन पर अनुचित बोझ न डालें। इसका अर्थ यह है कि भविष्य में ऐसे उपाय लागू किए जा सकते हैं, जो अधिक चरणबद्ध हों, नागरिकों को पर्याप्त समय दें, और एक मजबूत ढांचागत समर्थन पर आधारित हों।
आगे की राह
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने अपने पत्र के माध्यम से आग्रह किया है कि जनहित को सर्वोपरि रखते हुए इस आदेश को तत्काल स्थगित किया जाए और सभी हितधारकों से विचार-विमर्श कर व्यावहारिक, न्यायसंगत और चरणबद्ध समाधान दिया जाए।
यह सुझाव एक महत्वपूर्ण बिंदु पर प्रकाश डालता है: किसी भी बड़े नीतिगत बदलाव को लागू करने से पहले व्यापक विचार-विमर्श आवश्यक है। इसमें वाहन मालिक, ट्रांसपोर्टर, ईंधन स्टेशन संचालक, तकनीकी विशेषज्ञ और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे सभी हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए। इस तरह के विचार-विमर्श से ही ऐसे समाधान निकल सकते हैं जो न केवल प्रभावी हों, बल्कि व्यावहारिक और स्वीकार्य भी हों।
भविष्य में, दिल्ली सरकार निम्नलिखित कदमों पर विचार कर सकती है:
ANPR प्रणाली का तेजी से विकास और एकीकरण: एक मजबूत तकनीकी ढांचा, जैसे कि पूरे एनसीआर में ANPR प्रणाली, पुराने वाहनों की पहचान और निगरानी के लिए महत्वपूर्ण है।
चरणबद्ध कार्यान्वयन: एक साथ सभी पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, एक चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है, जिसमें पहले बहुत पुराने वाहनों को लक्षित किया जाए, और फिर धीरे-धीरे दायरे को बढ़ाया जाए।
प्रोत्साहन और स्क्रैपेज नीति: पुराने वाहनों को स्क्रैप करने और इलेक्ट्रिक वाहनों या नए, कम प्रदूषणकारी वाहनों को खरीदने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और आसान प्रक्रियाएं प्रदान की जानी चाहिए।
सार्वजनिक परिवहन का विस्तार और सुधार: निजी वाहनों पर निर्भरता कम करने के लिए दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क (मेट्रो, बसें) का और विस्तार और सुधार करना आवश्यक है।
जागरूकता अभियान: नागरिकों को प्रदूषण के दुष्प्रभावों और पुराने वाहनों के प्रतिबंध के महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए, ताकि उन्हें नीतिगत परिवर्तनों को स्वीकार करने के लिए तैयार किया जा सके।
विकल्पों की उपलब्धता: पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाने से पहले, सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नागरिकों के पास परिवहन के लिए पर्याप्त और किफायती विकल्प उपलब्ध हों।
एक सबक और आगे बढ़ने का रास्ता
दिल्ली में पुराने वाहनों पर प्रतिबंध के आदेश को स्थगित करना एक महत्वपूर्ण सबक है। यह दर्शाता है कि प्रदूषण नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए केवल कठोर कानून बनाना पर्याप्त नहीं है। उन्हें जमीनी हकीकत, नागरिकों की आवश्यकताओं और लागू करने की व्यवहार्यता के साथ संतुलित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
सरकार का यह यू-टर्न नागरिकों के प्रति उसकी संवेदनशीलता और जनहित को सर्वोपरि रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अब चुनौती यह है कि सभी हितधारकों के साथ मिलकर एक ऐसा दीर्घकालिक और न्यायसंगत समाधान खोजा जाए जो दिल्ली को स्वच्छ हवा प्रदान करे, लेकिन साथ ही लाखों परिवारों की आजीविका और रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर अनुचित बोझ न डाले। दिल्ली सरकार के पास अब एक अवसर है कि वह एक ऐसी व्यापक नीति तैयार करे, जो तकनीकी रूप से मजबूत, सामाजिक रूप से न्यायसंगत और पर्यावरणीय रूप से प्रभावी हो, ताकि राष्ट्रीय राजधानी के नागरिक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में सांस ले सकें।
भाजपा को सरकार चलानी नहीं आती
आप की वरिष्ठ नेता व दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने कहा कि भाजपा दिल्ली में सरकार नहीं, फुलेरा की पंचायत चला रही है। ये किसी दिन वाहनों को जब्त कर स्क्रैप करने का फैसला लेते है। फिर खुद ही कहते हैं कि यह फैसला गलत है। हम किसी को चिट्ठी लिख रहे हैं, लेकिन अभी तक 10 व 15 साल पुरानी पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों को सड़क से हटाने का आदेश वापस नहीं लिया गया है। भाजपा यूटर्न की सरकार है। अब जब जनता के दबाव में यूटर्न लिया है, तो कम से कम आदेश तो जारी कर दें।
आतिशी ने कहा कि भाजपा की सांठगांठ कार बेचने वाले, बनाने वाले, स्क्रैप करने वाले के साथ हैं। दिल्ली में 62 लाख दुपहिया और चार पहिया वाहनों को सड़क से हटाने का फैसला सिर्फ और सिर्फ इस साठगांठ के कारण लिया गया है। आज भी हमारा यही सवाल है कि कार बनाने वाले, बेचने वाले और स्क्रैप करने वाले से भाजपा ने कितना चंदा लिया है? दिल्ली वालों को वो जवाब दें।
इससे पहले एक प्रेस वार्ता कर आप नेता मनीष सिसोदिया ने कहा कि पुराने वाहनों को ईंधन न देने का अभियान भाजपा और आटो कंपनियों के बीच सांठगांठ का परिणाम है। भाजपा आटो कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए दिल्ली के 61 लाख मध्यवर्गीय लोगों को नई गाड़ियां खरीदने के लिए मजबूर कर रही है। जबकि इनमें से कई गाड़ियां बहुत कम चली हैं और प्रदूषण भी नहीं कर रहीं हैं, लेकिन भाजपा सरकार उनको खराब बताकर स्क्रैप करने को कहती रही है।