Chandigarh News: हाई कोर्ट ने कहा, पर्याप्त संसाधनों वाली सुयोग्य पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : Chandigarh News: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा पत्नी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार है, बशर्ते वह दोबारा शादी न कर ले और खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो। इस दौरान भले ही उसने तलाक की कार्यवाही के दौरान अपने इस अधिकार का त्याग कर दिया हो। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि पर्याप्त संसाधनों वाली सुयोग्य पत्नी और आर्थिक तंगी में न दिखने वाली पत्नी धारा 125 के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। हाई कोर्ट के जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने चंडीगढ़ निवासी एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला दिया।
दिव्यांग बेटे की देखभाल का दिया हवाला
पीठ को बताया गया कि याचिकाकर्ता, जो योग्यता से डाक्टर है, प्रैक्टिस नहीं कर रही क्योंकि उसका बेटा दिव्यांग है और उसे चौबीस घंटे देखभाल की आवश्यकता थी। कोर्ट को बताया गया कि मई 2003 में एक ‘सशर्त समझौते’ के बाद आपसी सहमति से तलाक दिया गया था। खुद और अपने बेटे का भरण-पोषण करने में असमर्थ का हवाला देते हुए, पत्नी ने वर्ष 2008 में धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 10 हजार रुपये भरण-पोषण का आदेश दिया लेकिन पति ने इस आदेश के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका दायर की।
पत्नी किसी भी वित्तीय कठिनाई में नहीं दिखती
याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बराड़ ने जोर देकर कहा कि भरण-पोषण के मुद्दे पर विचार करते समय मजिस्ट्रेट को यह जानना आवश्यक है कि क्या पति के पास पर्याप्त साधन हैं और क्या उसकी ओर से पत्नी का भरण-पोषण करने में लापरवाही या इनकार किया गया है और पत्नी अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। जस्टिस बराड़ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि महिला के पास खुद के और अपने बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। इसके अलावा, पति अपने विकलांग बेटे के भरण-पोषण के लिए हर महीने 15,000 रुपये का भुगतान कर रहा था।
जस्टिस बराड़ ने आदेश जारी करने से पहले कहा कि पत्नी किसी भी वित्तीय कठिनाई में नहीं दिखती। जस्टिस बराड़ ने निष्कर्ष निकाला, “न केवल वह अच्छी तरह से योग्य है, बल्कि उसके पास तलाक से पहले जिस जीवन स्तर की वह आदी थी, उसके अनुरूप खुद का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त संसाधन भी हैं, इस प्रकार, यह न्यायालय उसे भरण-पोषण का हकदार नहीं मानता।
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