Faridabad Loksabha Seat: महेंद्र प्रताप के कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होते ही मुकाबला हुआ दिलचस्प, 20 साल बाद दो प्रतिद्वंद्वी आमने-सामने

नरेन्द्र सहारण, फरीदाबाद। Faridabad Loksabha Seat: लोकसभा के मुकाबले में 20 साल बाद दो कट्टर प्रतिद्वंद्वी चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह (Chaudhary Mahendra Pratap Singh) और कृष्णपाल गुर्जर (Krishnapal Gurjar) फिर आमने-सामने होंगे। नौ बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके, पांच बार विधायक, भजनलाल की सरकार और भूपेंद्र हुड्डा की सरकार में मंत्री रहे चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह को कांग्रेस ने फरीदाबाद संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित कर दिया है। इससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है। चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह फिलहाल 79 वर्ष के हैं। भाजपा और कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। वहीं यहां से आइएलएनडी (INLD ) के सुनील तेवतिया और जननायक जनता पार्टी के नलिन हुड्डा भी चुनावी मैदान में हैं। सुनील तेवतिया शहीद नाहर सिंह की छठी पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं।

महेंद्र प्रताप सिंह के निवास पर आतिशबाजी

 

भाजपा ने पहले ही मौजूदा सांसद और केंद्र में राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर को प्रत्याशी घोषित कर रखा है। अब कांग्रेस के प्रत्याशी भी आने से मुकाबला रोचक हो गया है। गुरुवार देर रात को कांग्रेस पार्टी द्वारा घोषणा के बाद सैनिक कॉलोनी स्थित महेंद्र प्रताप सिंह के निवास पर खूब आतिशबाजी हुई।

2019 चुनाव के नतीजे

 

आपको बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की थी. बीजेपी के कृष्णपाल गुर्जर ने कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना को 6,38,239 वोटों से हराया था। कृष्णपाल गुर्जर को 9,13,222 लाख वोट मिले थे, जबकि अवतार सिंह भड़ाना को 2,74,983 लाख वोट प्राप्त हुए थे। वहीं, तीसरे नंबर पर बसपा के मंधिर मान थे। उन्हें 86,752 हजार वोट मिले थे।

फरीदाबाद सीट का राजनीतिक इतिहास

फरीदाबाद लोकसभा सीट पर हमेशा कांग्रेस और भाजपा में कड़ी टक्कर रही है। 1977 में यह सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर 1977 से 2019 तक कुल 12 लोकसभा चुनाव हुए। छह बार कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया। वहीं भाजपा को पांच बार जीत मिली है. 2014 से यहां पर बीजेपी का दबदबा रहा है।

करण सिंह दलाल भी थे टिकट की होड़ में

वैसे महेंद्र प्रताप सिंह 2019 में चुनावी राजनीति से संन्यास ले चुके थे, जब उनकी राजनीतिक विरासत को उस साल हुए विधानसभा चुनाव में विजय प्रताप सिंह ने संभालते हुए बड़खल सीट से चुनाव लड़ा था। लोकसभा चुनाव की टिकट के पैनल में नाम भी विजय प्रताप सिंह का गया था, पर पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा चाहते थे कि महेंद्र प्रताप सिंह ही लोकसभा चुनाव लड़ें, इसलिए उन्हें मनाया गया और अब उनके नाम की घोषणा भी हो गई। टिकट की दौड़ में विधायक और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रिश्तेदार करण सिंह दलाल भी थे, इसीलिए फरीदाबाद में प्रत्याशी के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था, जिसका आखिरकार पर्दा अब उठ गया है।

लोकसभा में पहली बार दोनों दिग्गज भिड़ेंगे

महेंद्र प्रताप और कृष्णपाल के बीच यूं तो विधानसभा चुनाव में कई मुकाबले हुए हैं, पर लोकसभा चुनाव में दोनों के बीच पहली बार भिड़ंत होगी। ये दोनों 20 साल बाद चुनावी रण में आमने- सामने होंगे। इससे पहले 2004 के विधानसभा चुनाव में दोनों में तत्कालीन मेवला महाराजपुर विधानसभा सीट पर मुकाबला हुआ था, जिसमें महेंद्र प्रताप सिंह 63 हजार वोटों के अंतर से विजयी हुए थे।

21 साल की उम्र में महेंद्र बने थे सरपंच

महेंद्र प्रताप सिंह फरीदाबाद के नेहरू कॉलेज से स्नातक हैं। मात्र 21 साल की उम्र में 1966 में अपने गांव नवादा कोह के सरपंच बन गए थे और फिर 1972 में ब्लॉक समिति के लिए चुने गए। 1977 में उन्होंने पहली बार मेवला महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा, पर उन्हें गजराज बहादुर नागर के सामने हार का सामना करना पड़ा। खैर अगले वर्ष 1982 में इसी सीट से महेंद्र प्रताप सिंह ने जीत हासिल की और उसके बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अगली बार 1987 में जब चौधरी ताऊ देवीलाल की आंधी थी, तब भी विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे थे।

कांग्रेस ने विधायक दल का नेता भी बनाया

तब  विधानसभा की 90 सीट में से कांग्रेस सिर्फ 5 सीट ही जीत पाई थी और उनमें महेंद्र प्रताप एक थे। तब चौधरी भजन लाल की धर्मपत्नी जसमा देवी भी चुनाव जीत कर विधायक बनीं थी, पर कठिन परिस्थितियों में चुनाव जीतने वाले महेंद्र प्रताप को कांग्रेस ने विधायक दल का नेता बनाया था। महेंद्र प्रताप ने फिर 1991 में भी चुनाव जीत कर विजय की हैट्रिक लगाई और तब भजन लाल सरकार में मंत्री बने।

1996 में महेंद्र प्रताप को कृष्णपाल गुर्जर ने हराया

कृष्णपाल गुर्जर ने 1996 में पहली बार भाजपा के टिकट पर महेंद्र प्रताप सिंह को 26 हजार मतों से हराया था। 2000 के विधानसभा चुनाव में भी महेंद्र प्रताप सिंह को कांग्रेस का टिकट नहीं मिला, पर वो पार्टी से किनारा कर बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गए, मगर कांटे के मुकाबले में 161 मतों से हार गए थे।

2004 प्रताप में महेंद्र ने कृष्णपाल को दी थी शिकस्त

खैर 2004 के चुनाव में महेंद्र प्रताप सिंह ने भाजपा के कृष्णपाल को पराजित कर बदला चुकाया। यह इन दोनों के बीच अंतिम भिड़ंत थी, क्योंकि 2009 के चुनाव से पहले परिसीमन हो गया था और मेवला सीट खत्म हो गई थी। नए परिसीमन के बाद गुर्जर ने तिगांव से चुनाव लड़ा और महेंद्र प्रताप सिंह ने बड़खल से।

2014 में महेंद्र प्रताप को मिली थी हार

महेंद्र प्रताप सिंह ने 2009 का चुनाव भी जीता और तब मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 2014 में भी महेंद्र प्रताप सिंह चुनाव लड़े, पर भाजपा की सीमा त्रिखा से हार का सामना करना पड़ा। अब एक बार फिर लोकसभा के महासमर में महेंद्र प्रताप सिंह और कृष्णपाल गुर्जर आमने-सामने होंगे।

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