कैथल की नहर में मिला चार माह का नर भ्रूण, समाज और व्यवस्था पर उठे गंभीर प्रश्न

भ्रूण का संस्कार करते जीवन रक्षक दल के सदस्य

नरेन्‍द्र सहारण, कैथल: Kaithal News: हरियाणा के कैथल जिले के गांव सौंगल के समीप बहती नहर ने एक ऐसी हृदय विदारक घटना को उजागर किया है, जिसने न केवल स्थानीय क्षेत्र बल्कि संपूर्ण सभ्य समाज को झकझोर कर रख दिया है। 11 मई, 2025 की शाम, जब कुछ युवा नहर में स्नान करने गए, तो उन्हें पानी में तैरता हुआ एक अविकसित मानव भ्रूण मिला। यह दृश्य इतना भयावह था कि इसने उन युवाओं के रौंगटे खड़े कर दिए। प्रारंभिक जांच और चिकित्सकीय परीक्षण के उपरांत यह स्पष्ट हुआ कि यह लगभग चार माह का नर भ्रूण था, जिसे किसी अज्ञात व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा पहचान छिपाने और संभवतः किसी अवांछित कृत्य पर पर्दा डालने के उद्देश्य से निर्दयतापूर्वक नहर के ठंडे जल में फेंक दिया गया था। इस घटना ने न केवल मानवीय संवेदनाओं को तार-तार किया है, बल्कि समाज में व्याप्त कई गंभीर मुद्दों, जैसे कि अवैध गर्भपात, सामाजिक कलंक का डर, और मानवीय जीवन के प्रति घटती संवेदनशीलता की ओर भी एक भयावह इशारा किया है। राजौंद थाना पुलिस ने इस संबंध में अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर अपनी जांच शुरू कर दी है, लेकिन यह घटना अपने पीछे कई अनसुलझे प्रश्न और एक गहरी सामाजिक चिंता छोड़ गई है।

नहर में तैरता जीवन का अंश और तत्काल कार्रवाई

 

घटना का वह भयावह क्षण 11 मई, 2025 की शाम को घटित हुआ। गांव सौंगल और निकटवर्ती गांव भाना के बीच से गुजरने वाली नहर, जो अमूमन स्थानीय युवाओं के लिए गर्मी से राहत पाने का एक स्थान होती है, उस दिन एक अकल्पनीय त्रासदी की साक्षी बनी। रोज की तरह कुछ युवक नहर के किनारे पहुंचे और स्नान करने के लिए पानी में उतरे। कुछ देर बाद, उनमें से किसी एक की नजर पानी में बहती हुई एक असामान्य वस्तु पर पड़ी। कौतूहलवश जब उन्होंने उसे निकट जाकर देखा, तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। वह कोई वस्तु नहीं, बल्कि एक मानव भ्रूण था, जीवन का एक नन्हा, अविकसित अंश, जिसे क्रूरतापूर्वक जलधारा के हवाले कर दिया गया था।

इस अप्रत्याशित और दिल दहला देने वाले दृश्य से युवा सन्न रह गए। हालांकि, उन्होंने तुरंत हिम्मत और जिम्मेदारी का परिचय देते हुए भ्रूण को सावधानीपूर्वक पानी से बाहर निकाला। इस अमानवीय कृत्य को देखकर उनका क्षोभ और वेदना चरम पर थी। उन्होंने बिना समय गंवाए तत्काल स्थानीय पुलिस को इस वीभत्स घटना की सूचना दी। सूचना मिलते ही राजौंद थाना पुलिस की एक टीम अविलंब मौके पर पहुंची। पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, प्रारंभिक पूछताछ की और भ्रूण को अपने कब्जे में ले लिया। उस नन्हे, निष्प्राण शरीर को देखकर मौके पर मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम थीं और मन में आक्रोश था कि आखिर कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। पुलिस ने पंचनामा तैयार करने के उपरांत भ्रूण को पोस्टमार्टम के लिए कैथल के नागरिक अस्पताल भिजवा दिया, ताकि उसकी आयु, लिंग और मृत्यु के संभावित कारणों के बारे में अधिक जानकारी जुटाई जा सके। इसी दौरान, गांव सौंगल निवासी पवन कुमार नामक व्यक्ति ने पुलिस को इस संबंध में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर राजौंद थाने में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया गया। प्राथमिक जांच में यह अनुमान लगाया गया कि भ्रूण को संभवतः तीन से चार दिन पहले नहर में फेंका गया होगा, क्योंकि उसका कुछ हिस्सा गल चुका था, जो जल में रहने की अवधि की ओर संकेत कर रहा था।

पहचान और परिस्थितियों पर प्रकाश

 

नागरिक अस्पताल में चिकित्सकों की एक टीम द्वारा मृत भ्रूण का पोस्टमार्टम किया गया। अगले दिन, 12 मई 2025 को, जब पुलिस अपनी जांच के दूसरे दिन में प्रवेश कर चुकी थी, पोस्टमार्टम की प्रारंभिक रिपोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर किया। सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह था कि भ्रूण नर था। इस जानकारी ने जांच की दिशा को थोड़ा और केंद्रित किया, हालांकि इसने अपराध की जघन्यता को किसी भी रूप में कम नहीं किया। चिकित्सकों ने यह भी पुष्टि की कि भ्रूण की अनुमानित आयु लगभग चार माह थी। यह एक ऐसा चरण होता है जब भ्रूण के अंग विकसित होने लगते हैं और उसमें जीवन के स्पष्ट संकेत होते हैं।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि भ्रूण का कुछ हिस्सा पानी में रहने के कारण गलना शुरू हो गया था, जो इस अनुमान को पुष्ट करता था कि उसे नहर में फेंके हुए कई दिन बीत चुके थे, संभवतः तीन से चार दिन। यह तथ्य जांचकर्ताओं के लिए एक चुनौती भी प्रस्तुत करता है, क्योंकि इतने समय में पानी का बहाव भ्रूण को काफी दूर तक ले जा सकता है, जिससे यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि उसे वास्तव में किस स्थान पर नहर में फेंका गया था। इसके अतिरिक्त, पानी में रहने के कारण भ्रूण पर मौजूद सूक्ष्म जैविक या परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी नष्ट हो सकते हैं, जो अपराध की गुत्थी सुलझाने में महत्वपूर्ण हो सकते थे। पोस्टमार्टम के निष्कर्षों ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह एक अमानवीय कृत्य था, जिसमें एक विकसित हो रहे जीवन को बेरहमी से समाप्त कर दिया गया और फिर साक्ष्य मिटाने की कोशिश की गई। इस खुलासे के बाद पुलिस पर अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़ने का दबाव और बढ़ गया।

पुलिस जांच की वर्तमान दिशा और चुनौतियां

 

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भ्रूण के नर होने और उसकी अनुमानित आयु का पता चलने के बाद, राजौंद थाना पुलिस ने अपनी जांच को और तेज कर दिया है। थाना प्रभारी राजकुमार के नेतृत्व में पुलिस टीमें विभिन्न कोणों से मामले की पड़ताल में जुटी हुई हैं। जांच का एक मुख्य केंद्र बिंदु आसपास के गांवों, विशेष रूप से सौंगल, भाना और राजौंद क्षेत्र के अन्य निकटवर्ती गांवों में हाल ही में गर्भवती रही या प्रसव करवा चुकी महिलाओं के बारे में जानकारी जुटाना है। पुलिसकर्मी स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, आशा वर्कर्स, आंगनवाड़ी सेविकाओं और यहां तक कि पारंपरिक दाइयों से भी संपर्क साध रहे हैं ताकि ऐसी किसी महिला का पता चल सके जिसके गर्भधारण और प्रसव के बारे में विरोधाभासी जानकारी हो या जो संदिग्ध परिस्थितियों में हो। यह एक अत्यंत संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसमें गोपनीयता और मानवीय दृष्टिकोण दोनों का ध्यान रखना आवश्यक है।

इसके अतिरिक्त, पुलिस टीमें दूसरे थानों से भी संपर्क स्थापित कर रही हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या आस-पास के जिलों या कस्बों में पिछले कुछ दिनों में किसी नवजात शिशु के लापता होने या अवैध गर्भपात से संबंधित कोई सूचना दर्ज की गई है। नहरों का जाल काफी दूर तक फैला होता है, और यह संभावना भी है कि भ्रूण को किसी अन्य क्षेत्र में फेंका गया हो और वह बहकर सौंगल गांव तक पहुंच गया हो। स्थानीय अस्पतालों और निजी क्लीनिकों के रिकॉर्ड भी खंगाले जा रहे हैं, विशेष रूप से ऐसे मामलों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जहां गर्भावस्था के उन्नत चरण में गर्भपात किया गया हो या प्रसव के बाद शिशु की मृत्यु संदिग्ध परिस्थितियों में हुई हो।

हालांकि, पुलिस के समक्ष अनेक चुनौतियां भी हैं। नहर का विस्तृत नेटवर्क और पानी का निरंतर प्रवाह अपराध के मूल स्थान का पता लगाना लगभग असंभव बना देता है। भ्रूण के आंशिक रूप से गल चुके होने के कारण उस पर किसी प्रकार के विशिष्ट निशान या फॉरेंसिक साक्ष्य मिलना भी मुश्किल हो गया है, जो यह बता सके कि गर्भपात किसी प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा किया गया था या किसी अनाड़ी व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से। सबसे बड़ी चुनौती अपराधियों की पहचान करना है, क्योंकि ऐसे मामलों में दोषी व्यक्ति अपनी पहचान छिपाने की हर संभव कोशिश करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर सामाजिक कलंक और लोकलाज के डर से लोग जानकारी साझा करने से कतराते हैं, जो जांच प्रक्रिया को और जटिल बना देता है। पुलिस को उम्मीद है कि तकनीकी निगरानी और मुखबिर तंत्र के माध्यम से उन्हें कोई महत्वपूर्ण सुराग मिल सकेगा।

नैतिक पतन और सामाजिक दबाव

 

कैथल की नहर में मिला चार माह का नर भ्रूण केवल एक आपराधिक घटना नहीं है, बल्कि यह समाज के नैतिक ताने-बाने में आ रही गिरावट और कुछ हिस्सों में व्याप्त अमानवीयता का एक क्रूर प्रतिबिंब है। यद्यपि यह भ्रूण नर था, जिससे कन्या भ्रूण हत्या की आशंका प्रथम दृष्टया खारिज होती है, तथापि यह घटना कई अन्य गंभीर सामाजिक प्रश्नों को जन्म देती है। आखिर वे कौन सी परिस्थितियाँ या सामाजिक दबाव होते हैं जो किसी महिला या उसके परिवार को ऐसा जघन्य कदम उठाने पर विवश कर देते हैं?

एक संभावित कारण अवांछित गर्भधारण हो सकता है। यह गर्भधारण विवाह पूर्व संबंधों, यौन शोषण या गर्भनिरोधक उपायों की विफलता का परिणाम हो सकता है। ऐसे मामलों में, सामाजिक कलंक, पारिवारिक सम्मान की झूठी धारणा और भविष्य की अनिश्चितता के डर से कई बार महिलाएं या उनके परिजन गर्भपात का अवैध और असुरक्षित रास्ता अपनाते हैं। यदि गर्भपात किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा किया जाता है, तो यह न केवल महिला के जीवन के लिए खतरा पैदा करता है, बल्कि भ्रूण की मृत्यु के बाद उसके गुप्त निस्तारण की नौबत भी आ सकती है, जैसा कि इस मामले में प्रतीत होता है।

इसके अतिरिक्त, अत्यधिक गरीबी, पहले से कई संतानें होना और एक और बच्चे के पालन-पोषण में असमर्थता भी ऐसे कठोर निर्णयों का कारण बन सकती है। हालांकि, किसी भी परिस्थिति में एक विकसित हो रहे जीवन को इस प्रकार समाप्त कर देना और उसे लावारिस फेंक देना किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता। यह घटना यह भी दर्शाती है कि सुरक्षित और कानूनी गर्भपात सेवाओं तक पहुंच और उनके बारे में जागरूकता का अभी भी अभाव है, या लोग सामाजिक भय के चलते इन सेवाओं का लाभ उठाने से हिचकिचाते हैं।

इस पूरे प्रकरण में उस महिला की मानसिक और शारीरिक स्थिति की कल्पना करना भी भयावह है, जिसने इस भ्रूण को जन्म दिया या जिसका यह गर्भपात हुआ। चाहे वह किसी दबाव में हो या अपनी इच्छा से, इस प्रक्रिया से गुजरना और फिर उसके परिणाम को इस तरह छुपाना एक गहरे मनोवैज्ञानिक आघात का सूचक है। यह घटना समाज में महिलाओं के लिए सहायक प्रणालियों, परामर्श सेवाओं और सहानुभूतिपूर्ण वातावरण की तत्काल आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।

अवैध गर्भपात और भ्रूण निस्तारण के गंभीर परिणाम

 

भारतीय कानून व्यवस्था में इस प्रकार के कृत्यों को अत्यंत गंभीरता से लिया जाता है और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान है। प्रस्तुत मामले में, पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 318 के तहत मामला दर्ज किया है, जो “शव को गुप्त रूप से ठिकाने लगाकर जन्म छिपाने” से संबंधित है। इस धारा के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर दो वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।

यदि जांच में यह बात सामने आती है कि यह एक अवैध गर्भपात का मामला था, तो इसमें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम, 1971 के प्रावधानों का उल्लंघन भी शामिल होगा। एमटीपी अधिनियम कुछ विशेष परिस्थितियों और निर्धारित समय सीमा के भीतर पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा ही गर्भपात की अनुमति देता है। इसका उल्लंघन करने पर, अर्थात अवैध रूप से गर्भपात करने या करवाने पर, आईपीसी की धारा 312 (गर्भपात कारित करना), धारा 313 (स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात कारित करना), धारा 314 (गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा हुई मृत्यु) और अन्य संबंधित धाराएं लागू हो सकती हैं, जिनमें तीन वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।

भ्रूण की आयु चार माह होने के कारण, यदि यह साबित होता है कि उसे जीवित अवस्था में फेंका गया था या उसकी मृत्यु गर्भपात के दौरान हुई जो कानूनी नहीं था, तो यह और भी गंभीर अपराध की श्रेणी में आएगा। पुलिस का प्रयास है कि सभी वैज्ञानिक और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को एकत्र कर दोषियों की पहचान की जाए और उन्हें कानून के कटघरे में खड़ा किया जाए। इस प्रकार के मामलों में न्याय सुनिश्चित करना न केवल पीड़ित भ्रूण (जिसे जीवन का अधिकार था) के प्रति एक कर्तव्य है, बल्कि समाज में एक कड़ा संदेश देने के लिए भी आवश्यक है कि ऐसे जघन्य कृत्यों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

 

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