कैथल में शिक्षा और वन अधिकारी को नोटिस:नारको समन्वयक समिति की बैठक से गैरहाजिर, डीसी ने जारी किए आदेश

नरेन्द्र सहारण, कैथल: Kaithal News: कैथल जिला वर्तमान में नशाखोरी की गंभीर सामाजिक बुराई से जूझ रहा है। इस चुनौती की व्यापकता और इसके विनाशकारी परिणामों को स्वीकार करते हुए जिला प्रशासन ने एक बहु-आयामी और दृढ़ संकल्पित अभियान छेड़ दिया है, जिसका लक्ष्य हर गांव को नशा मुक्त बनाना है। इसी कड़ी में हाल ही में उपायुक्त (डीसी) प्रीति की अध्यक्षता में लघु सचिवालय स्थित सभागार में जिला स्तरीय नारको समन्वयक समिति (एनकोर्ड) की एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक आयोजित की गई। यह बैठक न केवल मौजूदा रणनीतियों की प्रगति का मूल्यांकन करने का एक मंच थी, बल्कि भविष्य की कार्रवाई के लिए एक स्पष्ट और कठोर दिशा-निर्देश भी निर्धारित करने वाली साबित हुई। डीसी प्रीति ने इस अवसर पर अधिकारियों को स्पष्ट संदेश दिया कि नशे के खिलाफ इस लड़ाई में किसी भी प्रकार की कोताही या ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी, और इस मिशन की सफलता के लिए सभी संबंधित विभागों को पूर्ण समर्पण और समन्वय के साथ कार्य करना होगा। बैठक की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अनुपस्थित रहने पर उच्च शिक्षा अधिकारी तथा जिला वन अधिकारी को तत्काल प्रभाव से कारण बताओ नोटिस जारी करने के निर्देश दिए गए, जो यह दर्शाता है कि प्रशासन इस मुद्दे को कितनी प्राथमिकता दे रहा है।
अधिकारियों की जवाबदेही और समन्वय
डीसी प्रीति ने बैठक के आरंभ में ही अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी और अंतर-विभागीय समन्वय की महत्ता पर बल दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जिला स्तरीय एनकोर्ड जैसी महत्वपूर्ण बैठकों में वरिष्ठ अधिकारियों की स्वयं उपस्थिति अनिवार्य है। यह निर्देश केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि इस अभियान के प्रति गंभीरता और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि निर्णय त्वरित और प्रभावी ढंग से लिए जा सकें, तथा उनके कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं का तत्काल समाधान किया जा सके।
उन्होंने आगे चेतावनी देते हुए कहा कि यदि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से किसी अधीनस्थ अधिकारी या कर्मचारी को बैठक में भेजना आवश्यक हो, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह प्रतिनिधि अपने विभाग की प्रगति रिपोर्ट और सभी आवश्यक आंकड़ों के साथ पूरी तैयारी से आए। बिना तैयारी या अधूरी जानकारी के साथ बैठक में भाग लेने को गंभीरता से लिया जाएगा और संबंधित विभाग तथा अधिकारी के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि बैठकें केवल चर्चा का मंच न रहकर ठोस परिणामों की ओर अग्रसर हों।
उच्च शिक्षा अधिकारी और जिला वन अधिकारी की अनुपस्थिति पर नोटिस जारी करना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि प्रशासन हर विभाग की भूमिका को इस अभियान में महत्वपूर्ण मानता है। उच्च शिक्षा संस्थानों में युवाओं को नशे के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करने और उन्हें इस बुराई से दूर रखने में शिक्षा विभाग की अहम भूमिका होती है। इसी प्रकार, वन क्षेत्रों का उपयोग कई बार नशीले पदार्थों की अवैध खेती या तस्करी के लिए किया जा सकता है, जिस पर अंकुश लगाने में वन विभाग की सक्रियता आवश्यक है। इन अधिकारियों की अनुपस्थिति को गंभीरता से लेना यह दर्शाता है कि प्रशासन किसी भी स्तर पर लापरवाही को स्वीकार करने के मूड में नहीं है। इस प्रकार की जवाबदेही और कड़े अनुशासन के माध्यम से ही एक प्रभावी और परिणामोन्मुखी तंत्र स्थापित किया जा सकता है, जो नशा मुक्ति के इस जटिल लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।
मिशन हर गांव नशा मुक्त
उपायुक्त प्रीति ने अपने संबोधन में जिला प्रशासन के महत्वाकांक्षी “मिशन हर गांव नशा मुक्त” के दृष्टिकोण को विस्तार से रखा। उन्होंने कहा कि यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक संकल्प है जिसे सामूहिक प्रयासों से वास्तविकता में बदलना है। इस मिशन की सफलता के लिए उन्होंने सभी संबंधित विभागों के अधिकारियों को पूरी मुस्तैदी, निष्ठा और आपसी समन्वय के साथ कार्य करने का आह्वान किया।
इस व्यापक रणनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ पुलिस विभाग है। डीसी ने पुलिस विभाग को कड़े निर्देश देते हुए कहा कि नशा तस्करों और इस अवैध व्यापार में संलिप्त असामाजिक तत्वों के खिलाफ बिना किसी नरमी के कठोरतम कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि केवल नशे की खेप पकड़ना या छोटे-मोटे तस्करों को गिरफ्तार करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि नशे के वास्तविक स्रोतों का पता लगाना और उन पर प्रहार करना अत्यंत आवश्यक है। ड्रग सप्लाई चेन को जड़ से तोड़ने के लिए खुफिया तंत्र को मजबूत करने, सूचनाओं का आदान-प्रदान करने और अंतर-राज्यीय तस्कर गिरोहों पर भी नजर रखने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
बैठक में यह जानकारी दी गई कि जिले के लगभग 214 गांवों को पहले ही ड्रग फ्री घोषित किया जा चुका है। डीसी प्रीति ने इन गांवों में विशेष निगरानी रखने के निर्देश दिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये गांव भविष्य में भी नशा मुक्त बने रहें। इन गांवों में सामुदायिक पुलिसिंग, नियमित गश्त और स्थानीय निवासियों के साथ निरंतर संवाद स्थापित करने की बात कही गई। इसके अतिरिक्त, जिले के शेष 66 गांवों पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए उन्हें भी जल्द से जल्द ड्रग फ्री बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इन गांवों के लिए एक विशेष कार्य योजना तैयार करने, नशे के हॉटस्पॉट चिन्हित करने और वहां केंद्रित कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। इसमें स्थानीय मुखबिरों का नेटवर्क विकसित करने, नशे की प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों की पहचान करने और उन्हें परामर्श व पुनर्वास कार्यक्रमों से जोड़ने जैसी गतिविधियां शामिल हो सकती हैं।
दवाइयों के दुरुपयोग पर अंकुश: एक महत्वपूर्ण मोर्चा
नशे के व्यापक जाल में सिंथेटिक ड्रग्स और नियंत्रित दवाओं का दुरुपयोग एक बढ़ती हुई और गंभीर चिंता का विषय है। इस चुनौती से निपटने के लिए डीसी प्रीति ने जिला औषधि नियंत्रण अधिकारी को विशेष रूप से सक्रिय भूमिका निभाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि जिले की सभी दवा दुकानों (मेडिकल स्टोर्स) की नियमित और औचक चेकिंग सुनिश्चित की जाए। इस चेकिंग का उद्देश्य यह देखना होगा कि कहीं दवा विक्रेता बिना वैध पर्ची के या नियमों का उल्लंघन करते हुए नियंत्रित दवाएं तो नहीं बेच रहे हैं।
इसके साथ ही अधिकृत नशीली दवाइयों, जिनका उपयोग चिकित्सा प्रयोजनों के लिए किया जाता है, की बिक्री की भी गहन मॉनिटरिंग करने के निर्देश दिए गए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन दवाओं का स्टॉक, बिक्री और वितरण का रिकॉर्ड पूरी पारदर्शिता के साथ रखा जाए ताकि इनके अवैध डायवर्जन को रोका जा सके। डीसी ने सभी उप-मंडल मजिस्ट्रेटों (एसडीएम) को भी इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल होने का निर्देश दिया। उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में मेडिकल स्टोरों का औचक निरीक्षण करने और यह जांचने के लिए कहा गया कि क्या सभी दुकानों पर सीसीटीवी कैमरे क्रियाशील अवस्था में लगाए गए हैं। सीसीटीवी कैमरों की अनिवार्यता का उद्देश्य दवा दुकानों पर होने वाली गतिविधियों पर नजर रखना और किसी भी संदिग्ध लेनदेन या अवैध बिक्री की स्थिति में सबूत जुटाना है। जिन मेडिकल स्टोरों पर सीसीटीवी कैमरे नहीं पाए जाते या वे खराब स्थिति में मिलते हैं, उनके खिलाफ नियमानुसार कठोर कार्रवाई करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए, जिसमें लाइसेंस रद्द करने तक की कार्रवाई शामिल हो सकती है।
फार्मास्युटिकल ड्रग्स, जैसे कि दर्द निवारक, कफ सिरप, और कुछ नींद की गोलियां, जिन्हें अक्सर बिना डॉक्टरी सलाह के या अधिक मात्रा में नशे के लिए इस्तेमाल किया जाता है, युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है, बल्कि अन्य गंभीर नशों की ओर पहला कदम भी साबित हो सकती है। प्रशासन का यह कदम दवा विक्रेताओं को जवाबदेह बनाने और नियंत्रित दवाओं की बिक्री में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता
किसी भी सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए केवल प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं होती; इसमें समुदाय की सक्रिय भागीदारी और जन-जागरूकता का होना अत्यंत आवश्यक है। डीसी प्रीति ने इस तथ्य को रेखांकित करते हुए सभी एसडीएम और खंड विकास एवं पंचायत अधिकारियों (बीडीपीओ) को नशा मुक्ति अभियान में ग्राम स्तर पर सक्रिय सहयोग करने और जागरूकता अभियानों का व्यापक आयोजन करवाने के निर्देश दिए।
इन जागरूकता अभियानों का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को नशे के विभिन्न प्रकारों, उनके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक कुप्रभावों के बारे में सरल और प्रभावी ढंग से सचेत करना है। इन अभियानों में नुक्कड़ नाटक, लोकगीत, पोस्टर प्रदर्शनी, व्याख्यान और नशे के चंगुल से सफलतापूर्वक बाहर निकले व्यक्तियों के अनुभव साझा करने जैसे विभिन्न माध्यमों का उपयोग करने की सलाह दी गई। स्कूल और कॉलेज के छात्रों को भी इन अभियानों में शामिल करने पर जोर दिया गया ताकि युवा पीढ़ी को प्रारंभ से ही नशे के खतरों के प्रति आगाह किया जा सके।
ग्राम स्तर पर सरपंचों, पंचों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं, स्वयं सहायता समूहों और स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों को इस अभियान का नेतृत्व करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। उनकी स्थानीय पकड़ और विश्वसनीयता लोगों को नशे के खिलाफ एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह भी महत्वपूर्ण है कि नशे की लत को एक बीमारी के रूप में देखा जाए, न कि केवल एक अपराध के रूप में, ताकि नशे से पीड़ित व्यक्ति बिना किसी सामाजिक कलंक के डर के मदद के लिए आगे आ सकें। जागरूकता अभियानों के माध्यम से इस सोच को बढ़ावा देना भी एक प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए। जब समुदाय स्वयं इस लड़ाई में भागीदार बनेगा, तभी “हर गांव नशा मुक्त” का सपना साकार हो पाएगा।
नशीले पौधों का उन्मूलन और पुनर्वास के प्रयास
नशे की समस्या से निपटने के लिए जहां एक ओर नशे की आपूर्ति श्रृंखला को तोड़ना आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर नशे के उत्पादन या प्राकृतिक उपलब्धता को भी समाप्त करना महत्वपूर्ण है। इसी संदर्भ में, डीसी प्रीति ने सिंचाई विभाग के अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए कि वे मनरेगा योजना के तहत श्रमिकों की सहायता से नहरों, नालों और अन्य सार्वजनिक भूमि के आसपास स्वयं उगने वाले भांग जैसे नशीले पौधों को चिन्हित कर उन्हें जल्द से जल्द नष्ट करवाएं। इन प्राकृतिक रूप से उगने वाले नशीले पौधों तक आसान पहुंच भी कई बार युवाओं को नशे की ओर धकेल सकती है, इसलिए इनका उन्मूलन एक निवारक उपाय के रूप में महत्वपूर्ण है।
अभियान का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू नशे से प्रभावित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें समाज की मुख्यधारा में वापस लाना है। इस दिशा में, स्वास्थ्य विभाग को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के स्थानीय चैप्टर के साथ मिलकर नशे से अत्यधिक प्रभावित गांवों में विशेष स्वास्थ्य और परामर्श शिविर आयोजित करने के निर्देश दिए गए। इन शिविरों का उद्देश्य नशे के आदी व्यक्तियों की पहचान करना, उन्हें उचित चिकित्सा सलाह देना, डिटॉक्सिफिकेशन के लिए प्रेरित करना और यदि आवश्यक हो तो उन्हें नशा मुक्ति केंद्रों में भर्ती करवाना होगा। इन शिविरों में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि नशे की लत के मनोवैज्ञानिक कारणों का समाधान किया जा सके और व्यक्तियों को मानसिक रूप से मजबूत बनाया जा सके।
इसके अतिरिक्त, सभी एसडीएम को अपने-अपने क्षेत्रों में स्थित सरकारी और निजी नशा मुक्ति केंद्रों का नियमित रूप से दौरा करने और वहां उपलब्ध सुविधाओं, उपचार की गुणवत्ता और निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुपालन की जांच करने के निर्देश दिए गए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नशा मुक्ति केंद्र केवल नाम के लिए न चलें, बल्कि वे वास्तव में नशे से पीड़ित व्यक्तियों को प्रभावी उपचार और पुनर्वास प्रदान करने में सक्षम हों। इन केंद्रों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने और मरीजों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने पर भी जोर दिया गया।
कानूनी ढांचा और प्रवर्तन: न्याय और निवारण सुनिश्चित करना
नशा मुक्ति अभियान की सफलता काफी हद तक कानूनी ढांचे के प्रभावी कार्यान्वयन और प्रवर्तन एजेंसियों की सक्रियता पर निर्भर करती है। डीसी प्रीति ने जिला न्यायवादी (डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी) को निर्देश दिए कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की प्रगति की मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से यह उल्लेख होना चाहिए कि कितने मामलों में दोषियों को सजा हुई और कितने मामलों में आरोपी बरी हो गए। इस डेटा का विश्लेषण कर यह समझने में मदद मिलेगी कि अभियोजन पक्ष की कहाँ कमियां रह रही हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है। सजा की दर में वृद्धि न केवल अपराधियों में भय पैदा करेगी बल्कि समाज में कानून के प्रति विश्वास को भी मजबूत करेगी।
बैठक में उपस्थित पुलिस अधीक्षक (एसपी) आस्था मोदी ने भी पुलिस विभाग की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग को पुलिस टीमों के साथ मिलकर गांवों में नशा विरोधी मुहिम को और तेज करना चाहिए। एसपी मोदी ने एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि अधिकांश छोटी-मोटी आपराधिक वारदातों, जैसे चोरी, झपटमारी आदि के पीछे कहीं न कहीं नशे में लिप्त व्यक्तियों का हाथ होता है, जो अपनी नशे की लत को पूरा करने के लिए अपराध का रास्ता अपनाते हैं। इसलिए, सभी थाना प्रभारियों को अपने-अपने क्षेत्रों में ऐसे तत्वों पर विशेष निगरानी रखने और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए।
उन्होंने यह भी कहा कि नशे से संबंधित केसों की पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा गंभीरतापूर्वक और सूक्ष्मता से पैरवी की जानी चाहिए ताकि दोषियों को सजा दिलाई जा सके। एक अन्य महत्वपूर्ण निर्देश यह दिया गया कि जिन मामलों में शिकायतकर्ता या गवाह दबाव में या किसी अन्य कारण से अपने बयानों से मुकर जाते हैं, उनके खिलाफ भी नियमानुसार कानूनी कार्रवाई की जाए। यह कदम न्याय प्रक्रिया को बाधित करने वालों के लिए एक कड़ा संदेश होगा और गवाहों को सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इस प्रकार, कानूनी प्रवर्तन को मजबूत करके एक निवारक प्रभाव पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है।
वृहत्तर सामाजिक प्रभाव और भविष्य की राह
कैथल जिला प्रशासन द्वारा छेड़ा गया यह नशा मुक्ति अभियान केवल कानून व्यवस्था का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका एक गहरा सामाजिक सरोकार है। नशाखोरी न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य को बल्कि उसके परिवार, समाज और अंततः राष्ट्र की प्रगति को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। यह युवाओं की ऊर्जा और क्षमता को नष्ट कर देती है, अपराध दर में वृद्धि करती है और सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करती है।