Haryana News: एक पिता ने चार मासूम बच्चों के साथ मौत को गले लगा लिया, यह कारण आया सामने

नरेंद्र सहारण, फरीदाबाद/बल्लभगढ़: Haryana News: औद्योगिक नगरी फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में मंगलवार की दोपहर मानो इंसानियत और ममता दोनों ने ही दम तोड़ दिया। एक पिता जो अपने बच्चों के लिए दुनिया की हर खुशी चाहता है, उसी पिता ने चार मासूम बच्चों के साथ चलती ट्रेन के आगे कूदकर जीवन लीला समाप्त कर ली। यह हृदय विदारक घटना बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन से लगभग एक किलोमीटर दूर, एल्सन चौक फ्लाईओवर के नीचे घटी। इस घटना ने न केवल एक परिवार को उजाड़ दिया बल्कि समाज के सामने कई गंभीर और असहज करने वाले सवाल भी खड़े कर दिए हैं। आखिर वो कौन सी परिस्थितियां थीं कौन सा अवसाद था या कौन सा गुस्सा था जिसने एक पिता को अपने ही जिगर के टुकड़ों का कातिल और खुद का हत्यारा बना दिया?
मौत की पटरी पर वो आखिरी सफर
मंगलवार की दोपहर जब शहर अपनी रफ्तार से चल रहा था, तब दिल्ली-आगरा रेलवे लाइन पर खौफनाक मंजर अपनी पटकथा लिख रहा था। बिहार के लखीसराय जिले के बैरिया गांव का मूल निवासी 35 वर्षीय मनोज महतो अपने चार बेटों 10 साल का पवन, 9 साल का कारू, 5 साल का मुरली और महज 3 साल का छोटू के साथ रेलवे ट्रैक के किनारे चल रहा था। प्रत्यक्षदर्शियों और बाद में ट्रेन के लोको पायलट ने जो बताया वो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। मनोज ने दो छोटे बच्चों मुरली और छोटू को अपने कंधों पर बैठा रखा था और दो बड़े बेटों पवन और कारू का हाथ मजबूती से पकड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था मानो कोई पिता बच्चों को घुमाने निकला हो, लेकिन उसके दिमाग में चल रही उथल-पुथल का अंदाजा किसी को नहीं था।
जैसे ही पलवल की ओर से आ रही गोल्डन टेंपल एक्सप्रेस तेज गति से बल्लभगढ़ स्टेशन की ओर बढ़ी लोको पायलट की नजर ट्रैक के किनारे चल रहे इस परिवार पर पड़ी। खतरे को भांपते हुए लोको पायलट लगातार हॉर्न बजाता रहा, इस उम्मीद में कि वह व्यक्ति बच्चों के साथ पटरियों से दूर हट जाएगा। लेकिन मनोज अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। उसकी चाल में एक अजीब सी ठान थी एक ऐसा निश्चय जिसने मौत को चुन लिया था। जैसे ही ट्रेन कुछ ही मीटर की दूरी पर रह गई, मनोज ने एक झटके में अपने चारों बच्चों सहित ट्रेन के आगे छलांग लगा दी। ट्रेन की तेज रफ्तार और भारी-भरकम इंजन के सामने पांचों जिंदगियां पलक झपकते ही मांस के लोथड़ों में तब्दील हो गईं। मौके पर ही पांचों की दर्दनाक मौत हो गई और पीछे रह गया सिर्फ चीत्कार, खून और एक अनसुलझा सवाल।
घर का झगड़ा बना मौत का कारण
इस सामूहिक आत्महत्या की जड़ें मनोज के घर की चारदीवारी में पनप रही थीं। मनोज पत्नी प्रीति के साथ बल्लभगढ़ की अज्जी कॉलोनी में एक किराए के मकान में रहता था। उनकी शादी को 16 साल हो चुके थे। मनोज दिहाड़ी मजदूर था, जो बेलदारी का काम करके छह लोगों के परिवार का पेट पालता था। पुलिस की शुरुआती जांच और पत्नी प्रीति के बयानों से जो कहानी सामने आई वह घरेलू कलह और शक की एक दुखद गाथा है।
प्रीति ने रोते-बिलखते हुए पुलिस को बताया कि उसका पति मनोज पिछले कुछ समय से उसके चरित्र पर शक करने लगा था। यह शक उसके मन में इस कदर घर कर गया था कि वह प्रीति का किसी रिश्तेदार से फोन पर बात करना भी बर्दाश्त नहीं कर पाता था। मंगलवार सुबह भी घर में कुछ ऐसा ही हुआ। प्रीति के पास किसी रिश्तेदार का फोन आया और वह उनसे बात करने लगी। यह देखते ही मनोज आग-बबूला हो गया और उसने प्रीति से झगड़ा शुरू कर दिया। दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई। हालांकि, कुछ देर बाद मनोज अचानक चुप हो गया। उसकी यह खामोशी किसी आने वाले तूफान का संकेत थी, जिसे प्रीति भांप नहीं पाई।
उस मनहूस दोपहर करीब 12:30 बजे, मनोज ने चारों बच्चों को तैयार किया और प्रीति से कहा कि वह बच्चों को पार्क में घुमाने ले जा रहा है। प्रीति को लगा कि शायद सुबह के झगड़े के बाद अब सब कुछ सामान्य हो गया है और पति का गुस्सा शांत हो गया है। उसने खुशी-खुशी बच्चों को पिता के साथ भेज दिया, यह जाने बिना कि यह उनकी आखिरी विदाई है। वह इंतजार करती रही, लेकिन घंटे भर बाद जो खबर आई, उसने उसके पैरों तले जमीन खिसका दी।
आत्महत्या से पहले मासूमों को आखिरी दुलार
इस घटना का सबसे मार्मिक और दिल को झकझोर देने वाला पहलू यह है कि मौत को गले लगाने से ठीक पहले मनोज ने अपने बच्चों पर पिता का प्यार भी लुटाया। मौके पर मौजूद लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने मनोज को अपने चारों बच्चों के साथ एल्सन चौक रेलवे फ्लाईओवर के नीचे काफी देर तक बैठे देखा था। वहां मनोज ने बच्चों को उनकी पसंदीदा चिप्स और कोल्ड ड्रिंक दिलाई। बच्चे खुशी-खुशी चिप्स खा रहे थे और कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे, इस बात से पूरी तरह अनजान कि उनका पिता उनके लिए क्या भयानक योजना बना चुका है।
वे आखिरी पल क्या रहे होंगे? क्या उन बच्चों ने अपने पिता से कुछ कहा होगा? क्या मनोज ने एक बार भी अपने मासूम बच्चों के चेहरों को देखकर अपना इरादा बदलने की नहीं सोची? यह सोचना भी भयावह है कि जिन बच्चों को वह दुनिया की हर खुशी देना चाहता था, उन्हीं को मौत से पहले आखिरी नाश्ता करा रहा था। करीब 1 बजकर 10 मिनट पर, जैसे ही ट्रेन नजदीक आई, उसने बच्चों की सारी खुशियों, उनके सपनों और उनकी जिंदगियों को एक झटके में खत्म कर दिया।
पुलिस की कार्रवाई और जांच
ट्रेन के लोको पायलट ने तुरंत इस भयानक घटना की सूचना रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को दी, जिन्होंने आगे यह संदेश जीआरपी (गवर्नमेंट रेलवे पुलिस) और आरपीएफ (रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स) को दिया। सूचना मिलते ही जीआरपी के डीएसपी राजेश चेची, आरपीएफ इंस्पेक्टर श्रवण कुमार और जीआरपी थाना प्रभारी राजपाल अपनी टीमों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे।
दृश्य बेहद वीभत्स था। पटरियों पर बिखरे शवों को पहचानना भी मुश्किल हो रहा था। जीआरपी थाना प्रभारी राजपाल ने बताया कि तलाशी के दौरान मृतक मनोज की जेब से उसका आधार कार्ड और एक पर्ची मिली। उस पर्ची पर एक मोबाइल नंबर लिखा हुआ था। जब पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो फोन मनोज की पत्नी प्रीति ने उठाया। पुलिस ने सावधानी से उसे घटना की जानकारी दी। खबर सुनते ही प्रीति बदहवास हालत में घटनास्थल की ओर भागी। पति और चारों बच्चों के क्षत-विक्षत शवों को देखकर वह वहीं अचेत होकर गिर पड़ी।
पुलिस ने पांचों शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए बादशाह खान सिविल अस्पताल भेज दिया है। डीएसपी राजेश चेची ने बताया कि घटना की जानकारी मनोज के भाई, बहन और बिहार में रहने वाले अन्य रिश्तेदारों को दे दी गई है। उनके आने के बाद ही शवों का पोस्टमार्टम कराया जाएगा। पुलिस पत्नी प्रीति से लगातार पूछताछ कर रही है ताकि घटना के हर पहलू को समझा जा सके।
मनोविश्लेषण: शक, गरीबी और मानसिक स्वास्थ्य
यह घटना सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं है बल्कि यह हमारे समाज के ताने-बाने पर भी एक गंभीर टिप्पणी है। मनोज के इस कदम के पीछे कई परतें हो सकती हैं
चरित्र पर शक: यह इस मामले का सबसे प्रमुख कारण बनकर उभरा है। भारतीय समाज में खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में, पितृसत्तात्मक सोच गहरी जड़ें जमाए हुए है। पत्नी पर शक और उसे अपनी ‘संपत्ति’ समझने की मानसिकता अक्सर हिंसक और विनाशकारी रूप ले लेती है। मनोज का अपनी पत्नी को रिश्तेदारों से भी बात करने से रोकना इसी असुरक्षा और अधिकार जमाने की भावना को दर्शाता है।
आर्थिक दबाव: मनोज एक दिहाड़ी मजदूर था। इस तरह के काम में आय की अनिश्चितता और लगातार बना रहने वाला आर्थिक दबाव व्यक्ति को मानसिक रूप से तोड़ सकता है। गरीबी और लाचारी से उपजा तनाव अक्सर घरेलू कलह को बढ़ाता है और व्यक्ति को अवसाद की ओर धकेल सकता है। हो सकता है कि मनोज को यह महसूस हो रहा हो कि वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने में असमर्थ है और इस निराशा ने उसे यह कदम उठाने पर मजबूर किया हो।
मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी: भारत में मानसिक स्वास्थ्य को आज भी एक कलंक के रूप में देखा जाता है। तनाव, अवसाद या किसी अन्य मानसिक समस्या से जूझ रहे व्यक्ति को समय पर मदद नहीं मिल पाती। मनोज जिन परिस्थितियों से गुजर रहा था, संभवतः वह गंभीर मानसिक अवसाद में था, जिसे किसी ने पहचाना नहीं। अगर उसे सही समय पर मनोवैज्ञानिक परामर्श या सहायता मिली होती तो शायद इन पांच जिंदगियों को बचाया जा सकता था।
प्रतिशोध की भावना: कई बार ऐसे मामलों में व्यक्ति अपने साथी को ‘सबसे बड़ी सजा’ देने की सोचता है। उसे लगता है कि उसके बच्चों को मारकर और खुद मरकर, वह अपनी पत्नी को जीवन भर का दर्द दे जाएगा। यह एक विकृत मानसिकता है, जिसमें निर्दोष बच्चे प्रतिशोध का हथियार बन जाते हैं।
एक उजड़ा हुआ आशियाना और अनगिनत सवाल
अज्जी कॉलोनी की उस तंग गली में अब मातम पसरा है। प्रीति का संसार एक ही पल में लुट गया। जिस पति के साथ उसने 16 साल गुजारे, वही उसके चार बच्चों का कातिल बन गया। अब उसके सामने एक अंधकारमय भविष्य है। वह इस सदमे से कैसे उबरेगी? उसका जीवन कैसे कटेगा?
यह घटना अपने पीछे कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गई-
क्या हमारा समाज पुरुषों पर परिवार चलाने का इतना दबाव डाल देता है कि वे टूटने की कगार पर पहुंच जाते हैं?
हम घरेलू हिंसा और शक की प्रवृत्ति को कब तक ‘पारिवारिक मामला’ कहकर नजरअंदाज करते रहेंगे?
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाने और सुलभ सहायता प्रदान करने के लिए हम कब गंभीर होंगे?
क्या गरीबी और सामाजिक असुरक्षा लोगों को इस हद तक निराशावादी बना रही है कि उन्हें मौत ही एकमात्र रास्ता नजर आती है?
बल्लभगढ़ की यह घटना एक चेतावनी है। यह हमें बताती है कि हमारे समाज में बहुत कुछ ठीक नहीं है। जब तक हम इन मूल कारणों पर ध्यान नहीं देंगे, तब तक मनोज जैसे लोग निराशा और गुस्से में खुद को और अपने मासूम बच्चों को मौत के मुंह में धकेलते रहेंगे, और हम सिर्फ शोक और संवेदना व्यक्त करने के लिए विवश रहेंगे।