Haryana Politics: हरियाणा में इनेलो के चुनाव चिन्ह पर जजपा की नजर: दुष्यंत चौटाला बोले- इस बार भी 6% वोट नहीं मिले तो सिंबल पर हम दावा करेंगे
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Politics: हरियाणा में राजनीतिक प्रतिष्ठित चौटाला परिवार में इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) यानी इनेलो पर अधिकार की लड़ाई शुरू होने वाली है। इसके संकेत इनेलो से निकाले गए पूर्व डिप्टी सीएम और जननायक जनता पार्टी (JJP) के वरिष्ठ नेता दुष्यंत चौटाला ने दिए हैं। ऐसे में चाचा अभय चौटाला और भतीजा दुष्यंत चौटाला खुलकर सामने आ गए हैं। आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले चौटाला परिवार के एकजुट होने की संभावना जताई गई थी। बाद में यह संभावना खत्म हो गई और चाचा- भतीजा खुलकर सामने आ गए हैं।
चश्मे पर जजपा करेगा दावा
दुष्यंत चौटाला ने कहा कि चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार 2 लोकसभा इलेक्शन में 6% से ज्यादा वोट शेयर की जरूरत होती है। मगर, इनेलो के 2019 लोकसभा चुनाव में 2 प्रतिशत के लगभग वोट आए थे। दुष्यंत चौटाला ने कहा कि इस चुनाव में भी इनेलो के वोट शेयर 2 प्रतिशत तक रह सकते हैं। ऐसे में इनेलो का सिंबल छिन सकता है। अगर अगर इनेलो का सिंबल चश्मा चुनाव आयोग छीनता है तो जजपा इस पर दावा ठोक सकती है।
इनेलो के चुनाव चिन्ह छिनने का गणित
चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार किसी भी पार्टी को लगातार 2 चुनाव (लोकसभा व विधानसभा) में निर्धारित वोट नहीं मिलते हैं तो राज्य पार्टी का दर्जा छिन जाता है। लोकसभा चुनाव में 6% वोट और एक सीट या 8% वोट की जरूरत होती है। विधानसभा में 6% वोट और 2 सीटें होनी चाहिए। नियम के अनुसार, अगर लगातार 2 चुनाव (2 लोस व 2 विस) में ये सब नहीं होता है तो पार्टी का चुनाव चिह्न भी छिन सकता है।
इनेलो ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 1.89% और विधानसभा चुनाव में 2.44% ही वोट हासिल किए थे। इसके अलावा 2019 के चुनाव भाजपा की लहर ने हरियाणा में सभी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया। 10 की 10 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी हुए। इस चुनाव में इनेलो को एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद विधानसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव में इनेलो के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन यहां भी निराशा हाथ लगी। अभय चौटाला के अलावा सभी प्रत्याशी हार गए। इस बार भी कम से कम 6% वोट और एक सीट या 8% वोट नहीं मिले तो राज्य पार्टी का दर्जा व चश्मे का चुनाव निशान तक छिन सकता है।
हरियाणा में मुश्किल में चौटाला परिवार की दोनों पार्टियां
कभी हरियाणा की राजनीति की दशा-दिशा तय करने वाली इनेलो के लिए अब अस्तित्व बचाने की चुनौती है। इनेलो के लिए चश्मा चुनाव चिन्ह बचाना मुश्किल हो रहा है। जिसके लिए उन्हें इस बार 6% मत हासिल करना इसलिए जरूरी है। 4 महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में सिंबल छिन गया तो इनेलो के लिए मुश्किल हो सकती है। इसी वजह से अभय चौटाला खुद कुरूक्षेत्र से चुनाव लड़ रहे, जबकि परिवार की दूसरी सदस्य सुनैना चौटाला को हिसार से चुनाव लड़ाया गया है। इनेलो ने 5 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें अंबाला, कुरुक्षेत्र, सिरसा, हिसार की सीटें शामिल हैं, जबकि करनाल में एनसीपी के वीरेंद्र मराठा को इनेलो ने अपना समर्थन दे रखा है
सरकार से साथ टूटने पर बगावत से जूझती जजपा
वहीं दूसरी तरफ जजपा साढ़े 4 साल सत्ता का सुख लेने के बाद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अलग हो गई। इसके बाद जजपा में ही बगावत शुरू हो गई। जजपा के 10 में से 5 विधायक बागी हो गए। इनमें से विधायक जोगीराम सिहाग ने खुलकर भाजपा की समर्थन किया।
रामकुमार गौतम ने देशहित के बहाने भाजपा के समर्थन की बात की। देवेंद्र बबली ने इशारों में कांग्रेस को समर्थन का ऐलान किया। बाकी बचे रामनिवास सुरजाखेड़ा और ईश्वर सिंह ने सीधे किसी का समर्थन नहीं किया, लेकिन पार्टी के प्रति बागी तेवर बरकरार हैं। इनमें से विधायक सुरजाखेड़ा और सिहाग की तो विधानसभा सदस्यता भंग करने के लिए भी जजपा ने स्पीकर को चिट्ठी लिख दी है। जजपा नेतृत्व के साथ बाकी 5 विधायक, जिनमें खुद दुष्यंत चौटाला, उनकी मां नैना चौटाला, अनूप धानक, रामकरण काला और अमरजीत ढांडा हैं। इस बार जजपा प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दुष्यंत की मां नैना चौटाला हिसार से उम्मीदवार है।
परिवार में आपसी कलह से टूटी थी इनेलो
2018 में पारिवार में आपसी कलह के चलते इनेलो में बड़ी टूट हुई थी। अभय चौटाला के भाई अजय चौटाला ने अपने बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के अलावा कई अन्य नेताओं के साथ पार्टी को अलविदा कह दिया। इसके बाद हरियाणा में जन नायक जनता पार्टी यानि जजपा का गठन हुआ। अब स्थिति ये है कि हरियाणा में न इनेलो का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है और न ही जजपा का। जजपा और इनेलो में फूट का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा और कांग्रेस को हुआ है।
2019 विधानसभा चुनाव में जजपा ने जीती थी 10 सीटें
इनेलो टूटने के बाद बनी जजपा ने पहली बार 2019 में विधानसभा लड़ा था। जजपा ने प्रदेश की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में जजपा ने 10 सीटें जीते थी। हिसार के सांसद रहे दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में यह चुनाव लड़ा गया था। इस चुनाव में उचाना, टोहाना, बाढड़ा, नारनौंद, बरवाला, जुलाना, गुहला, उकलाना, नरवाना और शाहबाद विधानसभा सीटें जीते थीं। 10 विधायक चुने जाने के बाद जजपा ने भाजपा को समर्थन देकर हरियाणा में 2019 में नई सरकार का गठन किया था। नई सरकार में दुष्यंत चौटाला को भाजपा ने डिप्टी सीएम बनाया था। साढ़े चार साल बाद जजपा हरियाणा सरकार से अलग हो गई। 2024 का लोकसभा चुनाव जजपा अकेले लड़ रही है।
कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
दरअसल, इसके लिए केंद्रीय चुनाव आयोग के नियम 1968 का पालन किया जाता है। इसके मुताबिक किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल करने के लिए 4 या उससे ज्यादा राज्यों में लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव लड़ना होता है। इसके साथ ही इन चुनावों में उस पार्टी को कम से कम 6 प्रतिशत वोट हासिल करने होते हैं।
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