यौन उत्पीड़न को साबित करने को वीर्य का होना आवश्यक नहीं, हाई कोर्ट ने की कठोर टिप्पणी


चंडीगढ़, बीएनएम न्यूज। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने आठ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की दोषसिद्धि बरकरार रखी है। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि यौन उत्पीड़न को साबित करने के लिए वीर्य का होना आवश्यक शर्त नहीं है। सिर्फ इसलिए कि वीर्य का पता नहीं चला, यह नहीं कहा जा सकता कि यौन उत्पीड़न नहीं हुआ। पाक्सो एक्ट के अनुसार, किसी बच्चे के गुप्तांग या शरीर के किसी हिस्से में कोई गलत हरकत करना यौनाचार है।

रिकार्ड पर साक्ष्य से पता चलता है कि किसी नाबालिग लड़की के साथ कुछ गलत हुआ

पेनेट्रेटिव यौन हमले को परिभाषित करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, आरोपित ने आठ साल से कम उम्र की पीड़िता के साथ यौन अपराध किया है, जो पाक्सो एक्ट के तहत दंडनीय है। अभियोजन के मुताबिक, वर्ष 2016 में पड़ोसी व्यक्ति पीड़िता को अपने साथ ले गया था। बच्ची के बरामद होने के बाद आरोपित ने माना कि उसने झाड़ियों में बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था। रिकार्ड पर मौजूद सुबूतों के बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपित को दंडनीय अपराध के लिए दोषी पाया। अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया चूंकि पीड़िता की जांच के समय वीर्य का पता नहीं चला, इसलिए स्पष्ट रूप से साबित होता है कि आरोपित ने पीड़िता के खिलाफ कोई यौन हमला नहीं किया। हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता बाल गवाह है, लेकिन भरोसेमंद है, जिसने घटना के बारे में विस्तार से बताया। वीर्य स्खलन के बिना भी यदि रिकार्ड पर साक्ष्य से पता चलता है कि किसी नाबालिग लड़की के साथ कुछ गलत हुआ है तो वह यौन उत्पीड़न का अपराध बनने के लिए पर्याप्त है।

 

 

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