Janki Devi Memorial College: देश की स्वदेशी परंपराओं और सांस्कृतिक प्रथाओं को संरक्षित किया जाए : प्रो.स्वाति पाल

जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित करतीं प्राचार्या प्रो. स्वाति पाल।
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज : Janki Devi Memorial College: भारत की धरती, अपनी विशाल विविधताओं और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के लिए जानी जाती है। इस परंपरा का संरक्षण और प्रवर्धन आज की आवश्यकता है, जैसा कि जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज के अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कार्यक्रम केंद्र द्वारा आयोजित “स्वदेशी ज्ञान प्रणाली और सांस्कृतिक लचीलापन: एक सतत भविष्य के लिए अतीत से सबक” विषय पर हाल ही में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया। इस सम्मेलन का उद्घाटन कॉलेज की प्राचार्या प्रो. स्वाति पाल, आईक्यूएसी समन्वयक प्रो. पायल नागपाल, और सीआईएनपी की निदेशक प्रो. वी. राज्यलक्ष्मी ने किया। इस उद्घाटन समारोह में ओरिएंटल यूनिवर्सिटी, उज्बेकिस्तान और शेरुबत्से कॉलेज, भूटान से आमंत्रित प्रतिनिधिमंडल मौजूद थे।
स्वदेशी परंपराओं का महत्व
समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो.स्वाति पाल ने भारत की स्वदेशी परंपराओं और सांस्कृतिक प्रथाओं को संरक्षित करने के महत्व पर जोर दिया। उनका कहना था कि ये परंपराएं हमारे इतिहास में गहराई से निहित हैं और इन्हें भूलना या अनदेखा करना गलत होगा। भारत की ये परंपराएं न केवल हमारी विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं, बल्कि वे जीवन जीने के स्थायी तरीकों के बारे में महत्वपूर्ण दृष्टिकोण भी प्रदान करती हैं।
तेजी से विकसित हो रही दुनिया में सांस्कृतिक धरोहर
एक तेजी से विकसित हो रही दुनिया में, जहां नई तकनीक और नवाचार बहुत तेजी से सामने आ रहे हैं, वहां बहुत आसान है कि हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं को भूल जाएं। प्रो. पाल ने बताया कि हमें अपने अतीत से सबक लेते हुए भविष्य की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम पर्यावरण, स्वदेशी ज्ञान प्रणाली, मनोविज्ञान, स्थिरता, लिंग मुद्दे और गांधी दर्शन जैसे विषयों पर समझ विकसित करें।
विद्वानों और शोधार्थियों का भागीदारी
यह सम्मेलन भारत और विदेशों के विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों, शोध विद्वानों और संकाय सदस्यों की भागीदारी के साथ संपन्न हुआ। सम्मेलन में आईआईटी रुड़की, जादवपुर विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, और एमिटी लॉ स्कूल के शोध विद्वालों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा, शेरुबत्से कॉलेज, रॉयल यूनिवर्सिटी ऑफ भूटान, और ओरिएंटल यूनिवर्सिटी, उज्बेकिस्तान के प्रतिनिधियों ने भी इस मंच पर अपनी आवाज उठाई।
सांस्कृतिक स्थिरता: एक विविध दृष्टिकोण
कार्यक्रम का उद्देश्य सांस्कृतिक स्थिरता को बढ़ावा देना था। प्रतिनिधियों ने कई विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिसमें “कश्मीर में संरक्षण की सूफी परंपराएं”, “स्वदेशी पेटेंट के माध्यम से जैव विविधता की रक्षा”, “संरक्षण के आदिवासी तरीकों के माध्यम से प्रकृति को बनाए रखना” और अन्य विविध विषय शामिल थे। इन खोजों ने यह स्पष्ट किया कि सांस्कृतिक स्थिरता एक व्यापक और बहुआयामी विषय है, जिसे विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जाना चाहिए।
स्वदेशी ज्ञान प्रणालियां और उनका महत्व
स्वदेशी ज्ञान प्रणालियां न केवल पारंपरिक चिकित्सा या कृषि प्रथाओं तक सीमित हैं बल्कि वे प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग, पर्यावरण संरक्षण, और जन जीवन पर विस्तृत प्रभाव डालती हैं। शोध पत्रों में यह दिखाया गया कि किस प्रकार स्वदेशी ज्ञान का उपयोग करके वर्तमान पर्यावरणीय मुद्दों का समाधान किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए एक शोध पत्र में बताया गया कि कैसे स्थानीय कृषि पद्धतियों के संरक्षण से जैव विविधता को संवर्धित किया जा सकता है। यह शोध बताते हैं कि स्थानीय समुदायों में प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन किस प्रकार से पर्यावरणीय लचीलापन को बढ़ावा दे रहा है।
पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक का तालमेल
इसी सम्मेलन में यह भी चर्चा की गई कि पारंपरिक ज्ञान कैसे आधुनिक तकनीक के साथ मिलकर काम कर सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने पुराने ज्ञान को आधुनिक संदर्भों में देख सकें और उन परंपराओं को सहेज सकें जो कृषि, चिकित्सा, और अन्य क्षेत्रों में उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।
एक सतत भविष्य के लिए मार्गदर्शन
इस प्रकार इस सम्मेलन ने भारतीय संस्कृति और स्वदेशी ज्ञान प्रणाली के संरक्षण की अनिवार्यता को उजागर किया। ये ज्ञान प्रणालियां न केवल हमारे अतीत का हिस्सा हैं, बल्कि वे हमारे भविष्य के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी और स्थानीय समुदायों के ज्ञान का सम्मान करते हुए हम एक मजबूत और स्थायी भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस दिशा में प्रयासरत रहें और एक नई दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ें।
निष्कर्ष
अंत में यह सम्मेलन भारतीय संस्कृति, स्वदेशी ज्ञान प्रणाली और सांस्कृतिक लचीलापन के प्रति प्रतिबद्धता को स्पष्ट करता है। अब समय आ गया है कि हम अपने अतीत से सबक लें और उन धरोहरों को संरक्षित करें जो हमारी पहचान का हिस्सा हैं। हमारे सांस्कृतिक मूल्य और परंपराएं हमें एक स्थायी और स्वस्थ भविष्य की दिशा में ले जाने में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
यह सम्मेलन न केवल विचारों का आदान-प्रदान था, बल्कि यह एक नई सोच और दृष्टिकोण को भी जन्म देने का अवसर था। हमें उम्मीद है कि इस प्रकार के कार्यक्रम आगे भी आयोजित किए जाएंगे ताकि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोते रहें और आने वाली पीढ़ियों को उसे सहेजने का मार्ग प्रदर्शित करें।
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