Justice Nirmal Yadav Case: चंडीगढ़ में 17 वर्ष पुराने बहुचर्चित जज नोटकांड में जस्टिस निर्मल यादव बरी, जानें क्या है मामला ?

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़: Justice Nirmal Yadav Case: भारतीय न्याय प्रणाली में निष्पक्षता और ईमानदारी का पक्ष रखने वाले न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ जब आरोप लगते हैं, तो इससे न्यायालय की गरिमा पर आंच आती है। ऐसा ही एक मामला 17 वर्ष पहले सामने आया था, जिसे जज नोटकांड के नाम से जाना जाता है। इस कांड में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की सेवानिवृत्त जस्टिस निर्मल यादव को आरोपित किया गया था। हाल ही में सीबीआइ कोर्ट ने उनके और उनके साथ अन्य चार आरोपितों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। यह फैसला न केवल उनके लिए राहत की सांस था, बल्कि न्यायालय के प्रति लोगों के विश्वास को भी पुनर्जीवित करने में सहायक हो सकता है।
जज नोटकांड की पृष्ठभूमि
यह मामला 13 अगस्त 2008 को शुरू हुआ, जब एक व्यक्ति 15 लाख रुपये से भरा एक पैकेट लेकर जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंचा। आरोप था कि यह राशि हरियाणा के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल ने जस्टिस निर्मल यादव को सौंपने के लिए भिजवाई थी। लेकिन पैकेट गलत तरीके से जस्टिस निर्मलजीत कौर के पास पहुँच गया। जस्टिस निर्मलजीत कौर ने संवेदनशीलता दिखाते हुए तुरंत पुलिस को सूचित किया और मामले को उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस की जानकारी में ले आईं।
सीबीआइ की जांच और उसके परिणाम
पुलिस द्वारा संजीव बंसल के मुंशी से पूछताछ के बाद पता चला कि यह राशि वास्तव में जस्टिस निर्मल यादव के लिए भेजी गई थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन प्रशासक ने इसे सीबीआइ को सौंप दिया। जांच के दौरान कई मोड़ आए, और यह मामला सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में पहुंचा। 2022 में, हाई कोर्ट ने सीबीआइ कोर्ट में मामले के फैसले पर रोक लगा दी, जिससे सुनवाई में और देरी हो गई।
जब तीन साल के बाद सुनवाई फिर से शुरू हुई, तो जांच एजेंसी के लिए यह साबित करना काफी मुश्किल हो गया कि आखिर 15 लाख रुपये किसके थे। चर्चा यह भी थी कि जज निर्मल यादव से जुड़े गवाह अपने बयान से मुकर रहे थे, जिससे सीबीआइ की स्थिति और कमजोर हो गई।
जस्टिस निर्मल यादव का बयान
सीबीआइ कोर्ट के फैसले के बाद जस्टिस निर्मल यादव ने अपनी खुशी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस केस ने उनके जीवन में बहुत बोझ डाला था और उनके ईमानदारी पर सवाल उठाना उन्हें बेहद दुख देता था। “मैंने कभी कुछ गलत नहीं किया था। उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर अपनी स्थिति स्पष्ट की। जज का मानना था कि यदि यह मामला नहीं होता तो उनके रिटायरमेंट के बाद का जीवन कुछ और बेहतर और सुखद हो सकता था।
वास्तविकता पर प्रश्नचिह्न
हालांकि जस्टिस निर्मल यादव और अन्य आरोपितों के बरी होने के फैसले ने उनके वकीलों में उम्मीद की एक नई किरण जगाई है, लेकिन इस केस ने एक बड़ा सवाल भी उठाया है: 15 लाख रुपये आखिर किसके थे? सीबीआइ के पास इस राशि की वास्तविकता को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे, और इस सवाल का उत्तर आज भी अनसुलझा है।
सीबीआइ की चुनौतियां और भविष्य
सीबीआइ के लिए यह एक कठिन समय रहा है। कई गवाह मुकरते रहे और मामले में गवाहों की संख्या में कमी आई। इसके अलावा, सीबीआइ के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम गुप्ता ने भी स्वास्थ्य कारणों से कार्य छोड़ दिया, जिससे उनकी स्थिति और कमजोर हुई। इन सबके बीच, सवाल यह भी है कि क्या सीबीआइ भविष्य में इस तरह के मामलों में अपने विधिक ढांचे में सुधार कर सकेगी या नहीं।
न्यायपालिका की छवि और जनता का विश्वास
जज नोटकांड ने न्यायपालिका की छवि पर एक धब्बा लगाया था। इस तरह के मामलों ने जनता के बीच न्यायपालिका के प्रति विश्वास को हिलाने का काम किया है। यद्यपि जस्टिस निर्मल यादव और अन्य आरोपितों का बरी होना एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इस मामले का अनसुलझा पहलू लोगों के मन में उचित न्याय की प्रक्रिया पर अंकुश लगाता रहेगा।
महत्वपूर्ण मोड़
17 वर्षों के बाद जस्टिस निर्मल यादव को मिली बरी होने की राहत बेशक उनकी व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। हालांकि, यह मामला न्यायपालिका की ईमानदारी, पारदर्शिता और निष्ठा की आवश्यकता को भी दर्शाता है। न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों ताकि आम जनता का विश्वास न्यायिक प्रक्रिया में बना रहे। इस केस ने यह सिद्ध कर दिया कि सचाई की खोज में धैर्य और संघर्ष की आवश्यकता होती है और न्याय की वास्तविकता हमेशा जल्दी प्रकट नहीं होती।
केस टाइमलाइन
13 अगस्त 2008 : जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर गलती से 15 लाख रुपये के नोटों से भरा पैकेट पहुंचा
16 अगस्त 2008 : चंडीगढ़ पुलिस ने एफआइआर दर्ज की
26 अगस्त 2008 : केस सीबीआइ को हस्तांतरित किया गया
17 दिसंबर 2009 : सीबीआइ ने केस में क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी
26 मार्च 2010 : सीबीआइ कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट खारिज की
28 जुलाई 2010 : चीफ जस्टिस आफ इंडिया ने जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी दी
18 जनवरी 2014 : सीबीआइ कोर्ट में जस्टिस निर्मल यादव समेत अन्य आरोपितों के खिलाफ आरोप तय, मुकदमा शुरू
29 मार्च 2025 : सीबीआइ कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया।
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