झारखंड में मुस्लिमों ने सजाई हिंदू की अर्थी, दिया कंधा , राम नाम जपते हुए ले गए श्मशान
जमुआ (गिरिडीह) BNM News : जब लोग जाति मजहब और संप्रदायों में बंटे हुए हैं। कुछ घटनाएं आपसी विश्वास और भाईचारे को जिंदा रखती। झारखंड में बुधवार को हिंदू-मुस्लिम के आपसी सौहार्द्र का नजारा देखने को मिला। इस दृश्य को देखकर वहां मौजूद लोगों की आंखें छलक आईं। गिरिडीह के रहने वाले 90 साल के जागो रविदास का निधन हुआ तो मुस्लिम समाज के लोगों ने न सिर्फ उन्हें कंधा दिया बल्कि राम नाम सत्य का घोष करते हुए उनके शव को श्मशान घाट तक लेकर गए। वहां विधिविधान के साथ उनका अंतिम संस्कार भी कराया।
गिरिडीह का काजीमगहा मुस्लिम बहुल इलाका है। इस गांव में जागो रविदास का केवल एक हिंदू परिवार रहता है। बुधवार को उनका निधन हो गया। उनकी कोई संतान नहीं थी। उनके घर में केवल उनकी 85 वर्षीय पत्नी रधिया ही थीं। पति के निधन से वह वह बेसुध हो गई। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। वह यही सोच रही थी कि दुख की इस घड़ी में अब उनके पति का अंतिम संस्कार कौन करेगा। ऐसी परिस्थिति में काजीमगहा गांव के मुस्लिम परिवार के लोग आगे आए। उनका कहना था कि हम परिवारों का पीढ़ियों का साथ है। जागो के शव को हम श्मशान घाट लेकर जाएंगे। इसके बाद गांव के तमाम मुस्लिम युवक आगे आकर अर्थी सजाने लगे। कोई बांस काट रहा था, कोई फूल लेने चल दिया। इसके बाद जागो के शव को अर्थी में लिटाया और कंधे पर लेकर श्मशान घाट की ओर चल दिए।
इस दौरान वह जाति-धर्म के भेद भूलकर प्रभु का नाम जपते हुए आगे बढ़ रहे थे। अर्थी में शामिल जमालुद्दीन खान, असगर अली और मो मिंटू ने बताया कि मरने वाले की इच्छा थी कि उनके शव को जलाया न जाए, बल्कि दफनाया जाए। इसलिए दफन किया गया। अंतिम संस्कार में जो हिंदू रीति रिवाज होते हैं, उनका पालन किया गया। शव यात्रा में शामिल मोहम्मद इनामुल हक, जमीरउद्दीन खान, नजमुल हक, मो नुरुल सिद्धीकी, मुखिया अबूजर नोमानी का कहना था कि सबसे बड़ा धर्म मानवता है, उसका पालन किया।
काजी मगहा में मात्र एक घर हिंदू
बता दें कि काजी मगहा गांव में जागो रविदास का परिवार ही हिंदू है बाकी पूरी बस्ती मुस्लिम परिवारो की है। जागो के परिवार में पुत्र सहित सभी सदस्यों की धीरे-धीरे मौत हो गई। परिवार में केवल वृद्ध पति-पत्नी बचे थे। बुधवार को जागो रविदास की भी मौत हो गई। जागो रविदास को उनके कई रिश्तेदार गांव छोड़ने की सलाह दी थी लेकिन उन्होंने गांव में ही अंतिम सांस लेना स्वीकार किया।