सिरसा में पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बोले, अपने संस्कार और संस्कृति से खिलवाड़ करना खतरनाक
नरेन्द्र सहारण, सिरसा : बाबा तारा कुटिया में हनुमंत कथा के दूसरे दिन बागेश्वर पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने भक्तों से हनुमान जी की भक्ति, विनम्रता और प्रभु प्रेम के विभिन्न प्रसंगों पर चर्चा की। बाबा सरसाईं नाथ को नमन करते हुए बागेश्वर पीठाधीश्वर ने सुंदरकांड की सुंदरता का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महात्मा के नाम पर सिरसा का नामकरण हुआ यह बड़ी बात है।
सुंदरकांड के महत्व पर व्याख्यान दिया
कथा व्यास पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि भक्त और विप्र की पहचान तिलक देख कर हो जाती है। हनुमानजी की पहचान-साधु संत के तुम रखवारे से हो जाती है। हनुमंत कथा में कथा व्यास ने सुंदरकांड के महत्व पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हनुमान जी को पाने के लिए कुछ खोना नहीं पड़ता, उनका होना पड़ता है। इतना जप करो कि यमराज भी आपकी खाता रद कर दे। अपने दादा गुरु, बागेश्वर बालाजी, संन्यासी बाबा, सीताराम और तारा बाबाजी के चरणों में प्रणाम करते हुए तारकेश्वर धाम में उमड़े भक्तों को नमन किया। उन्होंने कहा कि अलग अलग महात्माओं के दर्शन एक ही स्थल पर सिरसावासियों को हो रहे हैं यह भी भगवान की कृपा हो रही है। तुलसीदास जी ने कहा है, आपके पास चल कर संत आएं तो समझ लेना प्रभु की कृपा है।
तनाव मुक्ति के कारण और उपाय बताए
उन्होंने कहा कि पहला भाग्य मनुष्य योनि में जन्म मिलना है। दूसरा भाग्य भारत में जन्म और तीसरा सनातन धर्म मिलना। बागेश्वर धाम सरकार ने रुद्र अवतार हनुमान के जीवन को प्रेरणादायक बताते हुए एक श्रद्धालु के पत्र की चर्चा की और तनाव मुक्ति के कारण और उपाय बताए।
हनुमानजी ने कभी नहीं किया अभिमान
पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि लाभ चाहते हो तो लाभ का उल्टा यानी भला करो। हनुमानजी के पास आठ सिद्धियां दिन लेकिन कभी अभिमान नहीं किया। विनम्र बने रहे। उन्होंने कहा कि किष्किंधा कांड में केवल विचार है, लंकाकांड में केवल कार्य लेकिन सुंदरकांड में दोनों ही कार्य। पहले विचार करो, फिर काम करो, फिर विचार करो। मनुष्य भक्ति के बिना अधूरा है।
भगवान जिसे चुनते वो कथा का आनंद लेता है
कथा, कीर्तन और सत्संग के महत्व पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जनता जिस नेता को चुनती है वो विधानसभा या संसद में बैठता है। भगवान जिसे चुनते हैं वो कथा में बैठता है। कथा झरना है। इसमें बैठना। बस झरते झरते पाप उतर जाएंगे। बागेश्वर पीठाधीश्वर ने कहा कि हनुमान लंका आए, जला कर आ गए। लेकिन सबसे पीछे रहे। सबको लगता है हमने किया है लेकिन यह काज प्रभु ने किया है। इतनी विनम्रता प्रभु में है। आठ उपाधियां हनुमान जी के पास है। लेकिन विनम्रता नहीं छोड़ते।
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