हरियाणा में लोग गांव छोड़ने को तैयार नहीं: बोले- छोड़कर नहीं जाएंगे; ASI ने गांव खाली करने का ऑर्डर भेजा

कैथल का गांव पोलड़ काे नोटिस दिया गया है।
नरेन्द्र सहारण, कैथल: Kaithal News: हरियाणा के कैथल जिले में स्थित पोलड़ गांव जो सदियों से अपने इतिहास, संस्कृति और परंपराओं का परिचायक रहा है आज एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 15 मई को जारी आदेश के बाद से इस गांव में हड़कंप मच गया है। 206 घरों को खाली करने का नोटिस जारी होने से ग्रामीणों में भय और अनिश्चितता का माहौल व्याप्त है। यह मामला न केवल स्थानीय प्रशासन और पुरातत्व विभाग के बीच का है, बल्कि यह ग्रामीण समुदाय की पहचान, उनके इतिहास और उनके जीवन यापन के तरीके से भी जुड़ा है। इस लेख में हम इस जटिल स्थिति का विश्लेषण करेंगे, गांव के ऐतिहासिक महत्व, वर्तमान चुनौतियों, स्थानीय जनता की भावनाओं और सरकार की नीतियों का विस्तृत अवलोकन करेंगे।
पोलड़ गांव का ऐतिहासिक और भौगोलिक परिचय
पोलड़ गांव का इतिहास सदियों पुराना है। ग्रामीणों के अनुसार, यह गांव 1947 में स्वतंत्रता के बाद बसाया गया, जबकि कुछ का मानना है कि यह स्थान हड़प्पा काल या महाभारत काल से जुड़ा हो सकता है। इतिहासकारों का मानना है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल में एक महत्वपूर्ण नगर रहा है, जिसे प्राकृतिक आपदाओं ने उजाड़ दिया। बाद में इसे पुनः बसाया गया और इसका नाम ‘थेह पोलड़’ पड़ा, जिसका अर्थ है ‘वह स्थान जहां कभी कोई बस्ती रही हो।’
गांव की भौगोलिक स्थिति और आबादी
पोलड़ गांव कैथल के पास सीवन कस्बे के निकट है। यह गांव कुल मिलाकर करीब 600 घरों का समूह है, जिसमें लगभग 7000 लोग रहते हैं। इनमें से लगभग 2500 वोटर्स हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने अपने पूर्वजों से मिली जमीन पर मेहनत कर इस गांव का निर्माण किया है। गांव का अधिकांश भाग पक्का मकानों से भरा हुआ है, और यहाँ की मिट्टी और जलवायु खेती के लिए अनुकूल है। ग्रामीण समुदाय का 90% हिस्सा अनुसूचित जाति का है। यह गांव बिना पंचायत और नगरपालिका के अधीन आता है, जिसकी वजह से यहां का प्रशासनिक तंत्र कमजोर है।
इतिहास और सांस्कृतिक महत्व
पोलड़ गांव का इतिहास और सांस्कृतिक विरासत अत्यंत समृद्ध है। इतिहासकार प्रो. बृजबिहारी भारद्वाज के अनुसार, यह क्षेत्र पुलस्त्य मुनि की तपोभूमि रहा है। पुलस्त्य मुनि, जो रावण के दादा थे ने यहां सरस्वती नदी के किनारे स्थित इक्षुमति तीर्थ पर तपस्या की थी। इस स्थल का महाभारत काल में उल्लेख है, और यह स्थान रावण के जीवन से भी जुड़ा हुआ है। गांव में एक प्राचीन मंदिर है, जिसमें सदियों पुराना शिवलिंग स्थित है, जिसका निर्माण महंत राघवदास ने करवाया था। मंदिर का संरक्षण नागा साधु महंत देवीदास कर रहे हैं। इन ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण और उनके महत्व को समझना आवश्यक है, क्योंकि यह स्थल न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।
ASI का दावा और जमीन का विवाद
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का दावा है कि उसने 1926 में मुआवजा देकर 48.31 एकड़ भूमि खरीदी थी, जिसमें गांव का बड़ा भाग शामिल है। इस दावे के अनुसार, यह जमीन ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व की है, इसलिए इसे संरक्षित करना आवश्यक है। ASI का मानना है कि यहां खुदाई से पुरातात्विक वस्तुएं मिलने की संभावना है, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद करेंगी। इसके तहत, उन्होंने गांव के कुछ हिस्सों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है और 15 मई को आदेश जारी कर 206 घरों को खाली करने का निर्देश दिया है। ये घर सरस्वती नदी के किनारे बसे हैं, और इन्हें इस क्षेत्र का हिस्सा माना गया है।
यह आदेश ग्रामीणों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि उन्होंने अपनी जमीन पर सदियों से अपना जीवन बिताया है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने इस जमीन को अपने पूर्वजों से विरासत में पाया है और यहां का जीवन उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है। उनके अनुसार, यह जमीन किसी कंपनी या सरकारी विभाग की नहीं है, बल्कि उनका अपना स्वामित्व है।
ग्रामीणों का प्रतिरोध और भावनात्मक जुड़ाव
पोलड़ गांव के लोग अपने जीवन का आधार, अपनी परंपराएं और अपनी पहचान इस जमीन से जोड़ते हैं। उनके लिए यह घर नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों की स्मृति, उनकी मेहनत और उनके संस्कार हैं। गांव में रहने वाले अधिकतर लोग अपने घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि वे यहां जन्मे, यहां बड़े हुए, और यहीं मरेंगे। उनके मन में यह भी डर है कि जमीन खाली करने के बाद उन्हें कहीं और बसाने का इंतजाम नहीं किया जाएगा।
वे अपनी जमीन और अपने इतिहास का सम्मान करते हैं और इसे छोड़ना उनके लिए असंभव सा लग रहा है। उनके अनुसार, यह गांव उनकी पहचान है, और वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे। स्थानीय विधायक और प्रशासनिक अधिकारी भी इस स्थिति को समझते हैं, लेकिन उनके पास कानूनी या प्रशासनिक उपायों की सीमाएं हैं।
सरकार का रुख और कानूनी जटिलताएं
कैथल की जिला अधिकारी प्रीति ने कहा है कि वे कानून के दायरे में रहकर लोगों की मदद करेंगी। उनका कहना है कि सरकार जनता के हित में ही कार्रवाई करेगी, लेकिन स्पष्ट रूप से उन्होंने यह नहीं कहा है कि प्रभावित लोगों को क्या राहत दी जाएगी।
वहीं, गुहला के विधायक देवेंद्र हंस ने कहा है कि वे उनके साथ हैं। यदि स्थिति ऐसी बनती है कि गांव छोड़ना पड़े, तो वे सरकार से अपील करेंगे कि उन्हें कहीं और बसाने का प्रबंध किया जाए। उनका मानना है कि सरकार को ग्रामीणों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और उनके जीवन को सुरक्षित बनाने के उपाय करने चाहिए।
कानूनी और प्रशासनिक जटिलताएं
यह मामला केवल एक पुरातात्विक संरक्षण का मामला नहीं है, बल्कि इसमें शामिल हैं भूमि का स्वामित्व, ग्रामीण समुदाय का अस्तित्व, ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और स्थानीय प्रशासन की भूमिका। ग्रामीणों के पास रजिस्ट्रेशन नहीं है, जिससे उनका कानूनी संघर्ष और भी कठिन हो गया है। जमीन का स्वामित्व विवाद, ऐतिहासिक महत्व, और ग्रामीणों का भावात्मक जुड़ाव इस समस्या को जटिल बना रहा है।
विभिन्न पक्षों की राय
पुरातत्व विभाग का तर्क: यह जमीन ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व की है, इसलिए इसे संरक्षित करना जरूरी है। खुदाई से नई जानकारियां मिल सकती हैं, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करेंगी।
ग्रामीण समुदाय का तर्क: यह जमीन उनके पूर्वजों की विरासत है, जिसे उन्होंने मेहनत से बनाया है। वे इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उनके पास जमीन का रजिस्ट्रेशन भी नहीं है, इसलिए कानूनी लड़ाई भी कठिन है।
स्थानीय प्रशासन का दृष्टिकोण: प्रशासन इस संकट को संवेदनशीलता से देख रहा है। DC प्रीति का कहना है कि वे नियमों के तहत कार्य करेंगी। विधायक का समर्थन ग्रामीणों के साथ है, और वे सरकार से जल्द समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।
इतिहासकारों और विशेषज्ञों का मत: यह स्थल महाभारत काल, हड़प्पा या मुगल काल से जुड़ा हो सकता है। इसकी ऐतिहासिक महत्ता को समझना जरूरी है, ताकि संरक्षण और विकास के बीच संतुलन कायम किया जा सके।
आगे का रास्ता: समाधान की दिशा
इस जटिल परिस्थिति में समाधान निकालने के लिए सभी पक्षों को मिलकर आगे बढ़ना होगा। सरकार को चाहिए कि वह ग्रामीण समुदाय के साथ संवाद स्थापित करे, उनके सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंधों का सम्मान करे और एक दीर्घकालिक समाधान निकाले।
संभावित उपाय
- गांव के पुनर्वास के लिए नई जगह की व्यवस्था
- जमीन का वैध स्वामित्व का सत्यापन और रजिस्ट्रेशन
- पुरातात्विक स्थल का संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देना
- ग्रामीणों के जीवन यापन के लिए आर्थिक सहायता और रोजगार के विकल्प
- स्थानीय समुदाय और पुरातत्व विभाग के बीच समन्वय स्थापित करना
जटिल मामला
पोलड़ गांव का संकट एक जटिल मामला है, जिसमें ऐतिहासिक विरासत, ग्रामीण जीवन, कानूनी जटिलताएं और प्रशासनिक कदम सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। यह स्थिति हमें यह भी सिखाती है कि हमारी धरोहरों का संरक्षण जरूरी है, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि स्थानीय समुदाय का जीवन और उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाए। सही संतुलन और समझदारी से इस समस्या का समाधान संभव है, ताकि न केवल पुरातात्विक स्थल संरक्षित रहें, बल्कि ग्रामीण समुदाय भी सुरक्षित और सम्मानित जीवन जी सके।
अंत में यह आवश्यक है कि सभी संबंधित पक्ष मिलकर इस संकट का समाधान खोजें, ताकि इतिहास की धरोहर और ग्रामीण जीवन दोनों सुरक्षित रह सकें। सरकार, पुरातत्व विभाग, स्थानीय प्रशासन और ग्रामीण जनता की सामूहिक भागीदारी से ही इस जटिल स्थिति का समाधान संभव है।