Russian Ukraine War: यूक्रेनी दुस्साहस से हिली रूस की बुनियाद: परमाणु युद्ध की कगार पर दुनिया

वोलोदिमीर जेलेंस्की और ब्लादिमीर पुतिन। फाइल
नई दिल्ली/ मास्को : लगभग 40 महीनों से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध अब एक ऐसे खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचा है, जहां न केवल रूस के महाशक्ति होने के आसन पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं बल्कि पूरी दुनिया एक संभावित परमाणु संघर्ष की विभीषिका के मुहाने पर खड़ी दिखाई दे रही है। रविवार को यूक्रेन द्वारा रूस के पांच वायुसेना अड्डों पर किए गए समन्वित और विनाशकारी हमले विशेषकर बेलाया एयरबेस पर परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम 40 से अधिक बमवर्षक विमानों की कथित तबाही, ने इस संघर्ष को एक नई और भयावह ऊंचाई प्रदान की है। यह हमला न केवल रूस की सैन्य प्रतिष्ठा पर एक गहरा आघात है, बल्कि उसकी रणनीतिक गहराई और हवाई सुरक्षा क्षमताओं पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। इस घटनाक्रम ने क्रेमलिन को अभूतपूर्व दबाव में ला दिया है और ऐसी आशंकाएं प्रबल हो गई हैं कि अपनी प्रतिष्ठा बचाने और युद्ध का रुख अपनी ओर मोड़ने की हताशा में रूस सीमित परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। इस बीच अमेरिका और पश्चिमी देशों की बढ़ती सक्रियता, रूस पर नए आर्थिक प्रतिबंधों की तैयारी और इन प्रतिबंधों के दायरे में भारत और चीन जैसे देशों के आने की संभावना ने इस क्षेत्रीय संघर्ष को एक वैश्विक संकट में तब्दील कर दिया है।
यूक्रेनी पलटवार: रेडलाइन के पार?
रविवार को हुए यूक्रेनी हमले रूस के लिए एक अप्रत्याशित और बड़ा झटका थे। एक साथ पांच वायुसेना अड्डों को निशाना बनाना और उनमें से एक बेलाया एयरबेस पर खड़े लंबी दूरी के रणनीतिक बमवर्षकों (संभवतः Tu-95 या Tu-160 श्रेणी के जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं) को नष्ट करना यूक्रेन की बढ़ती क्षमता और दुस्साहस का प्रतीक है। इन बमवर्षकों का इस्तेमाल यूक्रेन के नागरिक बुनियादी ढांचे और शहरों पर मिसाइल हमले करने के लिए किया जाता रहा है। इनकी क्षति रूस की आक्रामक क्षमताओं को सीमित करेगी और यूक्रेन को कुछ राहत प्रदान कर सकती है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हमला रूस द्वारा खींची गई तथाकथित ‘रेडलाइन’ के उल्लंघन के करीब पहुंच गया है। रूसी सैन्य सिद्धांत के अनुसार, यदि रूसी क्षेत्र विशेष रूप से उसके रणनीतिक महत्व के ठिकानों, पर पारंपरिक हथियारों से भी ऐसा हमला होता है जिससे देश की संप्रभुता या अस्तित्व को खतरा हो तो वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर विचार कर सकता है। बेलाया एयरबेस न केवल रणनीतिक बमवर्षकों का अड्डा है बल्कि यह रूस की परमाणु त्रयी का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।
यूक्रेन का अगला निशाना ?
इसके अतिरिक्त संकेत मिल रहे हैं कि यूक्रेन का अगला निशाना रूस का कोई बड़ा नौसैनिक अड्डा हो सकता है, जहां परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम पनडुब्बियों का बेस है। यदि ऐसा कोई हमला होता है तो यह स्थिति को और भी विस्फोटक बना देगा। रूस के काला सागर बेड़े को पहले ही यूक्रेनी मिसाइलों और ड्रोनों से भारी नुकसान उठाना पड़ा है, जिसमें उसके फ्लैगशिप ‘मोस्कवा’ का डूबना भी शामिल है। यदि उसकी परमाणु पनडुब्बियों के बेस पर हमला होता है तो यह रूस के लिए असहनीय हो सकता है।
परमाणु युद्ध का बढ़ता खतरा और अंतरराष्ट्रीय चिंताएं
इन हमलों के परिणामस्वरूप यूक्रेन पर रूस के परमाणु हमले का खतरा बढ़ गया है। अमेरिका के दो प्रभावशाली सीनेटरों रिपब्लिकन पार्टी के लिंडसे ग्राहम और डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथाल ने रविवार को इस आशय के स्पष्ट संकेत दिए। इन दोनों सीनेटरों ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात के बाद पेरिस में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से भी भेंट की। सोमवार को हुई इस मुलाकात में भी इस बात पर गहरी सहमति जताई गई कि आने वाले दिन यूक्रेन में भीषण हमलों और संघर्ष के और तेज होने की आशंका है।
सीनेटर ग्राहम और ब्लूमेंथाल ने एसोसिएटेड प्रेस के साथ बातचीत में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रपति मैक्रों भी उनकी इस राय से 100 प्रतिशत सहमत हैं कि युद्ध और अधिक क्रूर हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से युद्धविराम के लिए बढ़ते दबाव के बीच रूस की कोशिश है कि वह वार्ता की मेज पर बैठने से पहले यूक्रेन की ज्यादा से ज्यादा जमीन पर कब्जा कर ले। अधिक जमीन पर कब्जा होने से उसे सौदेबाजी में ऊपरी हाथ मिलेगा। इसी रणनीति के तहत उसने पिछले तीन हफ्तों में यूक्रेन पर लगातार बड़े पैमाने पर हमले किए हैं, जिसमें ऊर्जा संयंत्रों और नागरिक ठिकानों को निशाना बनाया गया है।
रूस के सैन्य ओहदे को भारी चोट
रविवार के यूक्रेनी पलटवार ने रूस की इस रणनीति और उसके सैन्य ओहदे को भारी चोट पहुंचाई है। इस हमले की सफलता ने स्वाभाविक रूप से यूक्रेन का हौसला बढ़ाया है, जिससे युद्ध के और अधिक भयंकर और अप्रत्याशित होने का खतरा भी बढ़ गया है। यदि निकट भविष्य में यूक्रेन ने फिर से ऐसा ही कोई दुस्साहसिक कदम उठाया तो रूस के लिए ‘बड़े हमले’ वाले जवाब से बचना मुश्किल हो जाएगा। यह ‘बड़ा हमला’ सीमित सामरिक परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का हो सकता है, जिनका दुनिया में सबसे बड़ा भंडार रूस के पास है।
सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने स्पष्ट कहा कि उन्हें जो खुफिया सूचनाएं मिल रही हैं, उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक बड़े और निर्णायक युद्ध की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यह समय न केवल राष्ट्रपति पुतिन के लिए मुश्किल भरा है बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए भी एक अत्यंत संकटपूर्ण और अनिश्चित दौर हो सकता है। परमाणु युद्ध की किसी भी संभावना चाहे वह कितनी भी सीमित क्यों न हो के वैश्विक परिणाम भयावह होंगे, जिसमें रेडियोधर्मी विकिरण का फैलाव, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक खाद्य संकट शामिल हैं।
रूस पर बढ़ते प्रतिबंध और भारत-चीन की दुविधा
सैन्य दबाव के साथ-साथ रूस पर आर्थिक दबाव भी लगातार बढ़ता जा रहा है। जानकारों के अनुसार, रूस पर हाल ही में यूरोपीय संघ और ब्रिटेन द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंधों से राष्ट्रपति पुतिन पर दबाव और बढ़ा है। यदि इन प्रतिबंधों में अमेरिका भी पूरी तरह से शामिल हो गया तो रूस की आर्थिक मुश्किलें कई गुना बढ़नी तय हैं।

कड़े प्रतिबंध लगाने की धमकी
एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के पेट्रोलियम उत्पादों को खरीदने वाले देशों पर कड़े प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है। यदि यह नीति अमल में आती है, तो भारत और चीन जैसे देश जो रियायती दरों पर रूसी कच्चे तेल का बड़े पैमाने पर आयात कर रहे हैं सीधे तौर पर इन प्रतिबंधों के दायरे में आ सकते हैं। विकल्प के तौर पर उन पर 500 प्रतिशत तक का भारी आयात शुल्क लगाया जा सकता है, जिससे रूसी तेल खरीदना आर्थिक रूप से अव्यावहारिक हो जाएगा।
विधेयक पहले से ही तैयार
चिंताजनक बात यह है कि अमेरिका में इस आशय का एक विधेयक पहले से ही तैयार है और अमेरिकी संसद (कांग्रेस) का बहुमत इसके पक्ष में बताया जा रहा है। यदि यह विधेयक पारित होता है तो यह न केवल रूस के लिए, बल्कि भारत और चीन जैसे उसके व्यापारिक भागीदारों के लिए भी एक गंभीर स्थिति पैदा करेगा। सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथाल भी इस राय से सहमत हैं कि अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के प्रतिबंध रूस की कमर तोड़ने वाले साबित हो सकते हैं। उनका मानना है कि इन प्रतिबंधों से रूसी अर्थव्यवस्था घरेलू बाजार तक ही सिमटकर रह जाएगी, जिससे उसकी युद्ध लड़ने की क्षमता और वैश्विक प्रभाव में भारी कमी आएगी।
रूस की अर्थव्यवस्था पर असर
सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने इस प्रस्तावित विधेयक की कठोरता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अपने लंबे संसदीय जीवन में उन्होंने इससे ज्यादा सख्त विधेयक नहीं देखा है। अमेरिका का स्पष्ट मानना है कि चीन और भारत द्वारा रूस से ऊर्जा और अन्य वस्तुओं की खरीद को रोककर ही वह रूसी युद्ध मशीन को प्रभावी ढंग से ठप कर सकता है। यदि अमेरिकी संसद यह विधेयक पारित करती है तो भारत और चीन के लिए रूस से किसी भी वस्तु की खरीद अत्यंत मुश्किल हो जाएगी। इसका सीधा और विनाशकारी असर रूस की अर्थव्यवस्था और युद्ध के लिए उसके धन अर्जन की क्षमता पर पड़ेगा। यह भारत और चीन के लिए भी एक कूटनीतिक और आर्थिक चुनौती होगी, जिन्हें ऊर्जा सुरक्षा और रूस के साथ अपने रणनीतिक संबंधों के बीच संतुलन साधना होगा।
महाशक्ति को चुनौती: यूक्रेनी हमलों का इतिहास
रविवार को रूसी वायुसेना के पांच अड्डों पर हुआ हमला कोई अकेली घटना नहीं है। पिछले लगभग 40 महीनों के युद्ध के दौरान यूक्रेन ने कई ऐसे दुस्साहसिक और सफल हमलों को अंजाम दिया है, जिन्होंने रूस की सैन्य अजेयता के मिथक को तोड़ा है और उसकी महाशक्ति की छवि को चुनौती दी है।
काला सागर में रूसी युद्धपोत ‘मोस्कवा’ का डूबना (अप्रैल 2022): यह युद्ध के शुरुआती चरण की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी। यूक्रेन ने दावा किया था कि उसने अपनी नेप्च्यून एंटी-शिप मिसाइलों से रूसी काला सागर बेड़े के प्रमुख युद्धपोत ‘मोस्कवा’ को निशाना बनाया, जिससे उसमें आग लग गई और बाद में वह डूब गया। रूस ने हालांकि मिसाइल हमले की बात स्वीकार नहीं की और कहा कि जहाज पर गोला-बारूद में विस्फोट के कारण आग लगी। कारण जो भी रहा हो, इस विशालकाय और अत्याधुनिक युद्धपोत का डूबना रूस के लिए एक बड़ा सैन्य और प्रतीकात्मक झटका था। इसने काला सागर में रूस की नौसैनिक प्रभुत्व को भी चुनौती दी।
कर्च ब्रिज पर हमला (अक्टूबर 2022 और जुलाई 2023): रूस को क्रीमिया प्रायद्वीप से जोड़ने वाला कर्च ब्रिज न केवल रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि यह रूसी इंजीनियरिंग क्षमता और क्रीमिया पर उसके दावे का प्रतीक भी है। समुद्र पर बना यह 19 किलोमीटर लंबा ब्रिज रूसी राष्ट्रपति पुतिन की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक था। अक्टूबर 2022 में एक ट्रक बम विस्फोट ने ब्रिज के एक हिस्से को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया जिससे सड़क और रेल यातायात बाधित हुआ। जुलाई 2023 में समुद्री ड्रोनों द्वारा ब्रिज पर पुनः हमला किया गया, जिससे इसके एक हिस्से को फिर क्षति पहुंची। इन हमलों ने रूस की क्रीमिया तक सैन्य आपूर्ति लाइनों को बाधित करने के साथ-साथ उसकी प्रतिष्ठा को भी धूमिल किया।
सेवेस्तोपोल नौसैनिक अड्डे पर हमला (मार्च 2024 और उससे पहले): क्रीमिया स्थित सेवेस्तोपोल रूसी काला सागर बेड़े का मुख्य अड्डा है। यूक्रेन ने ड्रोन और मिसाइलों का उपयोग कर इस अड्डे पर कई बार हमले किए हैं। मार्च 2024 में एक बड़े हमले में रूस के तीन महत्वपूर्ण युद्धपोतों (लैंडिंग शिप्स ‘अज़ोव’ और ‘यामल’ तथा खुफिया जहाज ‘इवान खुर्स’) को भारी नुकसान पहुंचा। ये युद्धपोत वहां पर नियमित रखरखाव या ऑपरेशनल तैनाती के लिए लंगर डाले हुए थे। इन हमलों ने रूस की सबसे सुरक्षित माने जाने वाले नौसैनिक अड्डों की सुरक्षा क्षमताओं पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
इनके अतिरिक्त यूक्रेन ने रूसी सीमावर्ती क्षेत्रों में तेल डिपो, सैन्य ठिकानों और यहां तक कि मॉस्को के पास भी ड्रोन हमले किए हैं। ये सभी हमले दर्शाते हैं कि यूक्रेन न केवल रक्षात्मक लड़ाई लड़ रहा है बल्कि वह रूस के अंदर तक प्रहार करने की क्षमता भी विकसित कर चुका है, भले ही यह सीमित पैमाने पर हो।
युद्ध की अनिश्चितता और वैश्विक निहितार्थ
रूस यूक्रेन युद्ध अब एक ऐसे चरण में पहुंच चुका है, जहां दोनों पक्षों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है। रूस अपनी प्रतिष्ठा, क्षेत्रीय लाभ और वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। दूसरी ओर यूक्रेन अपनी संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
भविष्य में कई संभावित परिदृश्य उभर सकते हैं:
संघर्ष का और तेज होना: जैसा कि अमेरिकी सीनेटरों और फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने आशंका जताई है, युद्ध और अधिक भीषण हो सकता है। रूस खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने और निर्णायक बढ़त हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर हमले कर सकता है, जिसमें विवादास्पद हथियारों का उपयोग भी शामिल हो सकता है। यूक्रेन भी पश्चिमी हथियारों की मदद से और अधिक दुस्साहसिक हमले कर सकता है।
परमाणु हथियारों का सीमित उपयोग: यह सबसे भयावह संभावना है। यदि रूस को लगता है कि उसकी संप्रभुता या रणनीतिक हित गंभीर खतरे में हैं तो वह सामरिक परमाणु हथियारों का उपयोग करने का निर्णय ले सकता है। इसके परिणाम अकल्पनीय होंगे और यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार होगा जब परमाणु हथियारों का युद्ध में इस्तेमाल किया जाएगा।
थकाऊ और लंबा युद्ध: यदि कोई भी पक्ष निर्णायक बढ़त हासिल नहीं कर पाता है तो यह युद्ध एक लंबा और थकाऊ संघर्ष बन सकता है, जैसा कि पिछले कुछ समय से देखने को मिल रहा है। इसमें दोनों पक्षों को भारी जन-धन की हानि उठानी पड़ेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहेगा।
वार्ता और समझौता: अंतरराष्ट्रीय दबाव और युद्ध की बढ़ती लागत के कारण दोनों पक्ष अंततः वार्ता की मेज पर आ सकते हैं। हालांकि, वर्तमान स्थिति को देखते हुए किसी स्थायी और संतोषजनक समझौते की संभावना कम ही नजर आती है क्योंकि दोनों पक्षों की मांगें एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं।
इस युद्ध के वैश्विक निहितार्थ भी गहरे हैं। इसने वैश्विक ऊर्जा और खाद्य बाजारों को अस्थिर कर दिया है, मुद्रास्फीति को बढ़ावा दिया है और विभिन्न देशों के बीच भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया है। भारत जैसे देशों के लिए यह एक जटिल स्थिति है, जिन्हें अपने राष्ट्रीय हितों, रूस के साथ पारंपरिक संबंधों और पश्चिमी देशों के साथ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी के बीच संतुलन साधना पड़ रहा है।
दुनिया एक खतरनाक चौराहे पर
यूक्रेन में जारी संघर्ष ने रूस के महाशक्ति के आसन को निश्चित रूप से हिला दिया है। यूक्रेन के साहसिक और सफल हमलों ने न केवल रूस की सैन्य कमजोरियों को उजागर किया है बल्कि उसके नेतृत्व पर भी भारी दबाव डाला है। परमाणु युद्ध का खतरा पहले से कहीं अधिक वास्तविक प्रतीत हो रहा है और दुनिया एक खतरनाक चौराहे पर खड़ी है। आने वाले सप्ताह और महीने यह तय करेंगे कि यह संघर्ष किस दिशा में जाएगा। क्या कूटनीति और विवेक प्रबल होगा या दुनिया एक और विनाशकारी युद्ध की ओर बढ़ेगी, यह देखना अभी बाकी है। इस बीच रूस पर बढ़ते आर्थिक प्रतिबंध विशेष रूप से भारत और चीन जैसे देशों को लक्षित करने वाले संभावित अमेरिकी कदम, वैश्विक शक्ति संतुलन और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों को भी पुनर्परिभाषित कर सकते हैं। यह संकट न केवल यूक्रेन और रूस के लिए बल्कि संपूर्ण विश्व व्यवस्था के लिए एक परीक्षा की घड़ी है।