Sardar Vallabhbhai Patel: आखिर सरदार पटेल क्यों नहीं चाहते थे कश्मीर का भारत में विलय, नेहरू से किस तरह से अलग थे विचार
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। Sardar Vallabhbhai Patel: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370 ) को हटाने को सुप्रीम कोर्ट ने जायज ठहरा दिया है। शीर्ष कोर्ट ने माना है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) राज्य का भारत में संवैधानिक विलय पूर्ण हो चुका है। जब भी जम्मू-कश्मीर की समस्या का सवाल उठता है, एक वर्ग का तर्क होता है कि अगर पटेल ने जम्मू-कश्मीर के विलय को अपने हाथ में लिया होता तो ऐसी स्थिति नहीं होती। हैदराबाद और जूनागढ़ के भारत में विलय को लेकर सरदार पटेल की भूमिका का इसके लिए हवाला दिया जाता है।
जम्मू-कश्मीर के विलय को लेकर सरदार पटेल नहीं थे इच्छुक
कम लोगों को पता है कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को लेकर सरदार पटेल शुरू में इच्छुक नहीं थे। सीमाई राज्य होने और मुस्लिम जनसंख्या बहुसंख्यक होने से सरदार नहीं चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हो। अगर सितंबर 1947 तक जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के साथ मिल गया होता तो पटेल को कोई एतराज नहीं होता। महात्मा गांधी के पोते और पत्रकार राजमोहन गांधी (Rajmohan Gandhi) ने सरदार पटेल की जीवनी ‘पटेल-अ लाइफ’ लिखी है। इसमें राजमोहन गांधी ने लिखा है कि सितंबर 1947 तक सरदार पटेल की कश्मीर में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वहीं वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर (Kudeep Naiyar) ने अपनी आत्मकथा ‘एक ज़िंदगी काफ़ी नहीं’ में लिखा है कि दरअसल कश्मीर के भारत में विलय को लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ज्यादा इच्छुक थे, लेकिन सरदार पटेल इसके पक्ष में नहीं थे।
मुसलमान बहुत होने के कारण पाकिस्तान में मिल जाए तो बेहतर होगा
नैय्यर लिखते हैं कि फरवरी 1971 में उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला (Shekh Abdulla) का इंटरव्यू किया था। इसमें शेख अब्दुल्ला ने कुलदीप नैय्यर को बताया था कि सरदार पटेल ने उनके साथ एक बहस में कहा था कि चूंकि कश्मीर मुसलमानों की बहुसंख्या वाला क्षेत्र है, इसलिए उसे पाकिस्तान में मिला दिया जाए तो बेहतर होगा। लेकिन जब महाराजा ने इसे भारत में मिलाने की इच्छा जाहिर करते हुए नई दिल्ली को बुलावा भेजा, तब भी पटेल ने कहा था कि हमें कश्मीर में टांग नहीं अड़ानी चाहिए। हमारे पास पहले ही बहुत-सी समस्याएं हैं। सरदार पटेल ने भारत के पहले रक्षा मंत्री बलदेव सिंह को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में सरदार ने लिखा है कि अगर कश्मीर किसी दूसरे राष्ट्र का शासन अपनाता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
उस समय भारत की आर्थिक स्थिति की नहीं थी अच्छी
कबायली हमले के बाद भारत ने विलय की शर्त पर कश्मीर की मदद के लिए सेना भेजी। पटेल ने संविधानसभा के सदस्य रहे और विधिवेत्ता एन गोपालस्वामी अयंगार को चिट्ठी लिखी थी। उसमें कहा गया कि भारत की सैन्य हालत बहुत अच्छी नहीं है। उन्हें डर है कि देश के सैन्य संसाधन पर दबाव बढ़ गया है। पटेल इस पत्र में चिंता जताते हुए लिखते हैं कि देश कब तक इस दुर्भाग्यपूर्ण मामले को ढोता रहेगा।
तत्कालीन वायसराय ने देसी रियासतों को दिया था विकल्प
भारत में रियासतों के विलय पर वीपी मेनन ने एक किताब ‘द इंटिग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स’ लिखी है। इसमें मेनन ने लिखा है कि 3 जून 1947 को तत्कालीन वायसराय माउंटबेटन ने देसी रियासतों को विकल्प दिया था कि वे चाहें तो भारत के साथ विलय कर सकते हैं या फिर पाकिस्तान के साथ। वीपी मेनन के मुताबिक, मुस्लिम बहुल प्रजा और हिंदू राजा वाले कश्मीर राज्य के लिए इन दोनों विकल्पों में से एक चुनना कठिन था। हरि सिंह की मंशा शुरू में खुद को आजाद रखने की थी, जबकि पाकिस्तान की निगाह उस पर थी। माउंटबेटन ने महाराजा हरि सिंह से कहा था कि सरदार पाकिस्तान के साथ जाने के कश्मीर के फ़ैसले का विरोध नहीं करेंगे।
बैठक के बाद सरदार पटेल का कश्मीर को लेकर बदला विचार?
दरअसल 15 अगस्त 1947 को जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने के लिए विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिया। पाकिस्तान ने विलय को मंजूरी भी दे दी। इसका सबसे पहले विरोध मुंबई में रह रहे जूनागढ़ के निवासियों ने किया। उन्होंने मुंबई में ‘आरजी हकुमत’ यानी अपने शासन की स्थापना कर दी। जूनागढ़ के हिस्से रहे मंगरोल और मनावदार के लोगों ने भारत में शामिल होने की इच्छा का ऐलान कर दिया। जूनागढ़ की इस हरकत पर सरदार पटेल का कश्मीर को लेकर रुख बदला। उनके निर्देश पर भारतीय सेना और नौसेना ने जूनागढ़ को घेर लिया। इसके बाद जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग निकला। यूएन ढेबर की अगुआई में यहां आंदोलन चला। उनकी मांग और सरदार पटेल की कोशिशों के बाद जूनागढ़ में 9 नवंबर 1947 को जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें जूनागढ़ के भारत में विलय को लोगों ने स्वीकार किया।
कश्मीर के दीवान की शर्त पर भड़क गए नेहरू
राजमोहन गांधी लिखते हैं कि जब पाकिस्तान ने जूनागढ़ के नवाब के विलय के निवेदन को मंजूर कर लिया तो सरदार का रवैया कश्मीर को लेकर सख्त हो गया। वह लिखते हैं कि 26 अक्टूबर 1947 को नेहरू के घर एक बैठक हुई, जिसमें कश्मीर के तत्कालीन दीवान मेहर चंद महाजन ने भारत से सैनिक मदद की मांग रखी। बैठक में महाजन ने शर्त रखी कि अगर भारत उनकी मांग को स्वीकार नहीं करेगा तो कश्मीर मोहम्मद अली जिन्ना से मदद मांगने के लिए स्वतंत्र होगा। महाजन की यह बात सुनकर नेहरू भड़क गए। उन्होंने गुस्से में महाजन को बैठक से निकल जाने के लिए कहा, लेकिन तब सरदार पटेल ने दीवान महाजन को रोका। तब सरदार पटेल ने महाजन से कहा था कि आप पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं। साफ है कि पटेल की राय कश्मीर को लेकर बदल चुकी थी। उसके बाद उन्होंने कश्मीर को भारत में मिलाने के लिए पहल की। उन्होंने कश्मीर के विलय के लिए भारतीय सेना भेजी।