Sindhu Jal Samjhauta: भारत से पाकिस्तान नहीं जाएगा एक बूंद पानी, सिंधु जल संधि पर अहम फैसला

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। Sindhu Jal Samjhauta: 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जो दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के बंटवारे का आधार बनी। यह संधि मुख्य रूप से सिंधु नदी के जल वितरण को नियंत्रित करती है, जिसमें छह नदियों का जिक्र किया गया है – सिंधु, झेलम, चेनब, रावी, ब्यास और सतलज। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के जल संसाधनों का न्यायपूर्ण बंटवारा सुनिश्चित करना था, जिसे कई दशकों तक मान्यता प्राप्त रही। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इस संधि की प्रभावशीलता पर कई सवाल उठ चुके हैं। भारत ने यह महसूस किया है कि पाकिस्तान द्वारा इस संधि का दुरुपयोग किया जा रहा है और इसके चलते भारत के जल संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहा है।
सिंधु जल संधि से बाहर निकलने की रणनीति
अब, भारत ने सिंधु जल संधि के संबंध में एक नए दृष्टिकोण को अपनाया है, जिसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान को पानी की एक बूंद भी उपलब्ध नहीं कराना है। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद यह घोषणा की है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस निर्णय को लेकर कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अन्य मंत्रालयों के अधिकारी शामिल थे।
बैठक में चर्चा हुई कि भारत सिंधु जल संधि को ठंडे बस्ते में डालने की दिशा में कई कदम उठाएगा। अमित शाह ने भारत के इस निर्णायक फैसले के क्रियान्वयन के लिए सुझाव दिए, जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष को स्पष्ट और मजबूत तरीके से रखने की बात की गई।
तीन स्तरीय रणनीति: क्रियान्वयन के लिए योजना
भारत ने सिंधु जल समझौते से बाहर निकलने के लिए एक तीन स्तरीय रणनीति बनाई है। इस रणनीति का उद्देश्य तात्कालिक कदम, मध्यम अवधि के कार्य और दीर्घकालिक योजनाओं को समाहित करना है।
तात्कालिक कदम
पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी प्रणाली की सभी छह नदियों के डाटा की साझेदारी तुरंत प्रभाव से रोक दी गई है। इसका अर्थ यह है कि भारत अब मानसून के दौरान बाढ़ जैसी घटनाओं का कोई भी डेटा पाकिस्तान के साथ साझा नहीं करेगा। इसके अलावा नदियों की गाद हटाने और उनकी डीसिल्टिंग का कार्य भी तुरंत शुरू कर दिया गया है, ताकि जल प्रवाह को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सके।
मध्यम अवधि का कार्य
मध्यावधि में भारत मौजूदा बुनियादी ढांचे जैसे बांध और पनबिजली परियोजनाओं की क्षमता का विस्तार करने की योजना बना रहा है। इससे न केवल जल प्रबंधन में सुधार होगा, बल्कि भारत की जल संसाधनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
दीर्घकालिक उपाय
दीर्घकालिक उपायों में नए बांधों का निर्माण नई जल भंडारण परियोजनाओं की शुरूआत और जल प्रबंधन के लिए नए योजनाओं का समावेश होगा। इससे भारत को अपनी जल संसाधनों के प्रबंधन की स्वतंत्रता का लाभ मिलेगा और पाकिस्तान की आपत्तियों को नकार दिया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थिति को मजबूत करना
भारत की रणनीति केवल जल संसाधनों के प्रबंधन तक सीमित नहीं है बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने पद को मजबूत करने का प्रयास करेगी। इस दिशा में, भारत को चाहिए कि वह अपनी नीति को स्पष्टता और मजबूती से पेश करे।
पाटिल ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर भी इस फैसले के बारे में एक पोस्ट जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का यह ऐतिहासिक निर्णय पूरी तरह से कानूनी और भारतीय हितों के अनुरूप है। यह स्पष्ट संदेश पाकिस्तान को भेजता है कि भारत अपनी जल सुरक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित है।
अंत क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता
इस फैसले के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता है। पाकिस्तान के खिलाफ भारत के स्टैंड और समस्याएँ केवल जल ही नहीं, बल्कि सुरक्षा एवं आतंकवाद से भी संबंधित हैं। पिछले दिनों में आतंकी हमलों ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है।
भारत ने सिंधु जल संधि को औपचारिक रूप से स्थगित करने का निर्णय लिया है, जिसका एक मुख्य कारण यह है कि पाकिस्तान की कार्रवाई को रोकना और उसे सख्त संदेश देना है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अब वह अपने जल संसाधनों को लेकर किसी भी तरह की कमी को बर्दाश्त नहीं करेगा।
महत्वपूर्ण कदम
भारत का सिंधु जल संधि से बाहर निकलने का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है जो पाकिस्तान के साथ जल विवादों को स्थायी रूप से सुलझाने का प्रयास करता है। यह न केवल भारत की जल सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा बल्कि पाकिस्तान को भी एक स्पष्ट संदेश देगा कि भारत अपने अधिकारों की रक्षा करने में कोई कोताही नहीं बरतेगा।
सरकारी अधिकारी और नीति निर्धारक अब इस दिशा में कदम उठा रहे हैं, जिससे भारत जल्द से जल्द अपनी जल नीति को लागू कर सके। जल संसाधनों की इस नई रणनीति से भारत न केवल अपनी आंतरिक आवश्यकताओं को पूरा करेगा बल्कि पाकिस्तान के साथ जल विवादों को भी सुलझाने की स्थिति में होगा।
इस संदर्भ में, यह निर्णय न केवल जल संसाधनों के मामले में बल्कि व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय संबंधों के संदर्भ में भी विचारणीय है। आगे बढ़ते हुए भारत को चाहिए कि वह अपनी जल नीति को सशक्त बनाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत करे।