समय से पहले गर्मी की लहर से रबी फसलों पर मंडराया खतरा, किसानों और सरकार को सता रही चिंता

नरेंद्र सहारण , चंडीगढ़। दिसंबर और जनवरी के महीनों में बहुत कम बारिश होने और शुष्क मौसम रहने के बाद, फरवरी में तापमान में तेजी से वृद्धि ने किसानों के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी चिंता बढ़ा दी है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो इसका रबी फसलों और संबद्ध क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। गेहूं और दालें सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली फसलें हैं।

रबी फसलों की बुआई आम तौर पर अक्टूबर और दिसंबर के बीच होती है, जबकि जनवरी और फरवरी का समय फसल के पकने का होता है। कटाई मार्च और अप्रैल के बीच की जाती है। रबी फसलों में मुख्य रूप से गेहूं, दालें, चना, मटर, जौ, सरसों, अलसी, आलू और तिलहन शामिल हैं। हालांकि, इस वर्ष, शुरुआत से ही, उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों को रबी फसलों की बुआई के दौरान शुष्क मौसम का सामना करना पड़ा है। जनवरी का महीना सूखे में बीत गया और फरवरी में भी अभी तक कोई वर्षा नहीं हुई है। इसके अलावा, तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिससे रबी फसलों को नुकसान हो सकता है।

विशेष रूप से, उत्तर प्रदेश और बिहार सहित कई राज्यों में गेहूं की फसल में अभी बालियां आ रही हैं। इष्टतम विकास और अनाज की उचित परिपक्वता के लिए, इन फसलों को 7 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान की आवश्यकता होती है। हालांकि, भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार, मध्य फरवरी तक उत्तर भारत के कई राज्यों में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 29 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है।

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि गेहूं की अच्छी उपज के लिए इस तरह का तापमान फरवरी के अंत और मार्च के पहले सप्ताह में होना चाहिए। आईएमडी के पूर्वानुमान संकेत देते हैं कि अगले सप्ताह में भी कई राज्यों में न्यूनतम और अधिकतम तापमान में वृद्धि जारी रहने की संभावना है। यदि ऐसा होता है, तो फसलों में स्टार्च की मात्रा कम हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप अनाज अधूरा और छोटा रह सकता है। अनाज के उचित भरने के लिए पर्याप्त स्टार्च सामग्री आवश्यक है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष नौ लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर गेहूं की फसल बोई गई है। इसी तरह, दालों की फसल भी सामान्य से अधिक गर्मी से प्रभावित होने की संभावना है। अनाज के परिपक्व होने से पहले ही फसल मुरझा सकती है।

इस वर्ष कोई ज्‍यादा सर्दी नहीं पड़ी

 

निजी एजेंसी स्काईमेट के अनुसार, पिछले 19 महीनों में से 18 में तापमान सामान्य से ऊपर रहा है। इसके अतिरिक्त इस वर्ष कोई महत्वपूर्ण सर्दी नहीं पड़ी है। दिसंबर के अंत और जनवरी के पहले सप्ताह में बहुत कम समय के लिए ठंडी स्थितियां देखी गईं, जिसके बाद तापमान फिर से बढ़ने लगा। फरवरी के मध्य तक, तापमान मार्च के स्तर तक पहुँच गया है। इस स्थिति से जानवरों का जीवन भी प्रभावित हो सकता है। यदि इस अवधि के दौरान बारिश होती है, तो इससे तापमान को विनियमित करने में मदद मिल सकती है।

गेहूं और दालों की उपज में कमी का खतरा

 

कृषि विशेषज्ञ इस स्थिति से चिंतित हैं, क्योंकि इससे गेहूं और दालों की उपज में महत्वपूर्ण कमी हो सकती है, जिससे किसानों की आय और देश की खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, यह स्थिति दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रयासों को भी बाधित कर सकती है, जो सरकार के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता रही है।

सरकार इस स्थिति पर बारीकी से नजर रख रही है और संभावित नुकसान को कम करने के लिए कदम उठा रही है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने किसानों के लिए एक सलाह जारी की है, जिसमें उन्हें सिंचाई के माध्यम से अपनी फसलों को आवश्यक नमी प्रदान करने और बढ़ते तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए अन्य उपयुक्त उपाय करने की सलाह दी गई है। मंत्रालय राज्यों की सरकारों के साथ भी समन्वय कर रहा है ताकि वे यह सुनिश्चित कर सकें कि किसानों को उनके खेतों तक निर्बाध बिजली आपूर्ति मिले ताकि वे अपनी फसलों की सिंचाई कर सकें।

इसके अलावा, सरकार ने फसलों के नुकसान से प्रभावित किसानों को राहत प्रदान करने के लिए फसल बीमा योजनाओं के कवरेज का विस्तार करने का भी निर्णय लिया है। यह कदम प्रभावित किसानों को एक वित्तीय सुरक्षा जाल प्रदान करने और उनके नुकसान को कम करने में मदद करेगा।

बारीकी से नजर

 

कृषि विशेषज्ञ और मौसम विज्ञानी स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं और आने वाले दिनों में तापमान और वर्षा के पैटर्न का विश्लेषण कर रहे हैं। वे किसानों को सर्वोत्तम कार्यप्रणाली पर सलाह भी दे रहे हैं ताकि वे बढ़ते तापमान के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकें और अपनी उपज को अधिकतम कर सकें।

हालांकि, स्थिति चिंताजनक बनी हुई है और रबी फसलों पर समय से पहले गर्मी की लहर के प्रभाव को पूरी तरह से कम करने के लिए निरंतर प्रयासों और सरकार, किसानों और कृषि विशेषज्ञों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसानों को उनकी फसलों की रक्षा करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सहायता और मार्गदर्शन मिले।

प्रभाव और चिंताएं

तापमान में इस असामान्य वृद्धि के कई दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:

कम उपज: गेहूं और दालों के लिए उच्च तापमान गंभीर समस्याएँ पैदा करता है। गेहूं को इष्टतम अनाज विकास के लिए ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि दालों को अत्यधिक गर्मी से पहले परिपक्व होने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
आर्थिक प्रभाव: फसल की कम उपज सीधे किसानों की आय को प्रभावित करती है। व्यापक फसल की विफलता खाद्य कीमतों में मुद्रास्फीति का कारण बन सकती है, जो उपभोक्ताओं को प्रभावित करती है।
खाद्य सुरक्षा चिंताएं: भारत दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। प्रतिकूल मौसम इन प्रयासों को पटरी से उतार सकता है, जिससे आयात पर निर्भरता हो सकती है।
शमन के लिए सरकारी उपाय

केंद्र सरकार इस स्थिति को गंभीरता से ले रही है और इसके प्रभाव को कम करने के लिए सक्रिय उपाय कर रही है:

सलाह: कृषि मंत्रालय ने बढ़ती गर्मी से निपटने में मदद के लिए सिंचाई रणनीतियों और अन्य सुरक्षात्मक उपायों पर किसानों के लिए विशिष्ट सलाह जारी की है।
बिजली आपूर्ति: सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ काम कर रही है कि किसानों को सिंचाई के लिए लगातार बिजली की आपूर्ति मिले।
बीमा कवरेज: फसल बीमा योजनाओं का विस्तार करके, सरकार का लक्ष्य फसल के नुकसान से पीड़ित किसानों के लिए एक वित्तीय सुरक्षा जाल प्रदान करना है।
निगरानी और सलाह: मौसम विज्ञानी और कृषि विशेषज्ञ तापमान के रुझानों की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं और किसानों को सबसे अच्छे कृषि तौर-तरीकों पर मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं।

 महत्वपूर्ण चुनौती

 

फरवरी में शुरुआती गर्मी की लहर ने भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश की है, विशेष रूप से रबी फसलों के लिए। स्थिति की गंभीरता के लिए सरकार, किसानों और विशेषज्ञों से समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। अब तात्कालिक चिंता फसल की उपज को कम करना है, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है और देश की आर्थिक भलाई को बनाए रखना है।

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