तलाक को लेकर पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने की टिप्पणी

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Punjab High Court: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि पारिवारिक न्यायालय आपसी सहमति से तलाक चाहने वाले दंपती को साथ रहने का निर्देश देकर पुनर्विवाह करने की उनकी स्वतंत्रता को सीमित नहीं कर सकते। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने सोनीपत पारिवारिक न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। एक दंपती जो केवल तीन दिन तक साथ रहा और आपसी सहमति से तलाक चाहता था, लेकिन सोनीपत पारिवारिक न्यायालय ने उनकी मांग खारिज करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) की धारा 14 के तहत तलाक दाखिल करने से पहले विवाह के पश्चात एक वर्ष की अनिवार्य अवधि में ढील देने की याचिका को खारिज कर दिया था।
स्वतंत्रता को सीमित नहीं कर सकते
हाई कोर्ट ने कहा कि जब विवाह से कोई संतान पैदा नहीं हुई हो, जब दोनों युवा हों और आगे उनका करियर अच्छा हो, उनकी पुनर्विवाह करने की स्वतंत्रता को पारिवारिक न्यायालय द्वारा किसी भी तरह के हस्तक्षेप से बाधित नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय द्वारा पक्षों को साथ रहने पर जोर देने का निर्देश इस न्यायालय के विचार से गलत सूचना के आधार पर दिया गया प्रतीत होता है।
सुलह की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता
पारिवारिक न्यायालय ने उनके तलाक के आवेदन को खारिज करते हुए कहा था कि यहां याचिकाकर्ता युवा और शिक्षित व्यक्ति हैं। उनके साथ आने की संभावना और इस स्तर पर उनके बीच सुलह की उचित संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है। ना ही उनके बीच कोई गंभीर मुद्दा है जिसने उन्हें तलाक के लिए ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर किया हो। दंपति ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।
पारिवारिक न्यायालय ने की तथ्यों की अनदेखी
सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने देखा कि उनके बीच सभी वैवाहिक विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिए गए थे और वे विवाह के बाद केवल तीन दिनों तक साथ रहे। हाई कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय के निर्णय में इस तथ्य की अनदेखी की गई कि पक्षों ने तलाक के लिए समझौता पत्र तैयार कर अपने वैवाहिक विवाद को सुलझा लिया था। हाई कोर्ट ने पाया कि पारिवारिक न्यायालय के समक्ष ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया था, जिससे पता चलता है कि पक्षकारों के बीच आपसी समझौते का विलेख दमन या धोखाधड़ी के दोषों से भरा हुआ था।
चुनाव की स्वतंत्रता पर अनावश्यक प्रतिबंध
हाई कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय द्वारा पक्षों को राहत देने से इन्कार करना उनका जीवन साथी के चुनाव की स्वतंत्रता पर अनावश्यक प्रतिबंध है। हाई कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय को यह नहीं मानना चाहिए था कि पक्षकार शिक्षित हैं और इस प्रकार सुलह की संभावना है।
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