Wholesale Inflation: लगातार सातवें महीने थोक महंगाई दर शून्य से नीचे, अक्टूबर में घटकर -0.52% पर आई

नई दिल्ली, एजेंसी। देश में महंगाई के मामले में स्थिति नियंत्रित होने लग गई है। खुदरा महंगाई के बाद अक्टूबर महीने के दौरान थोक महंगाई में भी गिरावट दर्ज की गई है। पिछले महीने थोक महंगाई तो लगातार सातवें महीने शून्य से नीचे रही है। मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर महीने के दौरान थोक महंगाई की दर -0.52 प्रतिशत यानी शून्य से 0.52 प्रतिशत नीचे रही है। इस तरह लगातार सातवें महीने थोक महंगाई की दर शून्य से कम रही है। साल भर पहले यानी अक्टूबर 2022 में थोक महंगाई की दर 8.67 प्रतिशत रही थी।  सरकार हर महीने होलसेल प्राइस इंडेक्स यानी WPI के आंकड़े जारी करती है। इससे पहले सोमवार यानी 13 अक्टूबर को रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए गए थे। रिटेल महंगाई भी 5 महीने के निचले स्तर 4.87% पर रही थी।

अक्टूबर में खाद्य महंगाई दर घटी

  • अक्टूबर में खाद्य महंगाई दर सितंबर के मुकाबले 1.54% से घटकर 1.07% रही है।
  • रोजाना जरूरत के सामानों की महंगाई दर 3.70% से घटकर 1.82% रही है।
  • ईंधन और बिजली की थोक महंगाई दर -3.55% से बढ़कर -2.47% रही है।
  • मेन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की महंगाई दर -1.34% से बढ़कर -1.13% रही है।

थोक महंगाई दर का आम आदमी पर असर

थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।

जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।

निगेटिव मंहगाई से भी प्रभावित होती है अर्थव्यवस्था

महंगाई का निगेटिव में रहना भी इकोनॉमी पर प्रभाव डालता है। इसे डिफ्लेशन कहा जाता है। निगेटिव महंगाई तब होती है वस्तुओं की आपूर्ति उन वस्तुओं की मांग से ज्यादा हो जाती है। इससे दाम गिर जाते हैं और कंपनियों का प्रॉफिट घट जाता है। प्रॉफिट घटता है तो कंपनियां वर्कर्स को निकलाती हैं और अपने कुछ प्लांट या स्टोर भी बंद कर देती हैं।

महंगाई कैसे मापी जाती है?

भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।

महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।

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