Haryana Politics: करनाल उपचुनाव के नतीजों से तय होगा नायब सैनी सरकार का भविष्य, क्या-क्या हो सकती है संभावना

नायब सैनी।

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Politics: लोकसभा चुनाव के साथ ही करनाल विधानसभा सीट के उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में लाक हो गई है। चार जून को मतगणना के बाद जहां केंद्र में नई सरकार की तस्वीर साफ हो जाएगी, वहीं करनाल विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के नतीजे प्रदेश सरकार का भी भविष्य तय करेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के इस्तीफे से रिक्त इस सीट पर उपचुनाव में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी मैदान में हैं, जिन्हें कुर्सी पर बने रहने के लिए हर हाल में जीतना जरूरी है।

रानिया और बादशाहपुर सीट पर नहीं होगा उपचुनाव

 

यहां से भाजपा जीती तो राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही कांग्रेस और जजपा भी बैकफुट पर नजर आएंगी। बिजली मंत्री रणजीत चौटाला के इस्तीफे के बाद रिक्त चल रही रानियां और निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन से रिक्त हुई बादशाहपुर सीट पर उपचुनाव की कोई उम्मीद नहीं है। किसी विधानसभा सीट के रिक्त होने की स्थिति में छह महीने के अंदर उपचुनाव का प्रविधान है। चूंकि अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए दोनों सीटों पर भी साथ ही चुनाव होंगे।

ये है हरियाणा विधानसभा में सरकार का गणित

90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा की सदस्य संख्या 13 मार्च को घटकर 89 हो गई थी जब मनोहर लाल ने मुख्यमंत्री पद से हटने के अगले ही दिन करनाल विधानसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया था। विधानसभा अध्यक्ष डा. ज्ञानचंद गुप्ता ने उसी दिन से इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया। इसके डेढ़ माह बाद 30 अप्रैल को स्पीकर ने सिरसा जिले की रानियां सीट से निर्दलीय विधायक रहे रणजीत चौटाला, जो आज भी नायब सैनी सरकार में बिजली एवं जेल मंत्री हैं, का इस्तीफा 24 मार्च से ही स्वीकार कर लिया। इससे सदन की एक और संख्या घटकर 88 हो गई। वहीं, बीते रविवार को बादशाहपुर के निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन के बाद विधानसभा सदस्यों की संख्या घटकर 87 रह गई। हालांकि चार जून को करनाल विधानसभा क्षेत्र के उपनतीजों के बाद विधायकों की संख्या फिर बढ़कर 88 हो जाएगी। ढाई माह पूर्व 12 मार्च को जब मनोहर लाल को हटाकर नायब सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब उस सरकार को भाजपा के तत्कालीन 41 विधायकों (स्पीकर को मिलाकर), छह निर्दलीय और एक हलोपा (हरियाणा लोकहित पार्टी) के विधायक गोपाल कांडा अर्थात कुल 48 विधायकों का समर्थन हासिल था।

सरकार के अल्पमत में होने का दावा

सर्वप्रथम मनोहर लाल और फिर रणजीत सिंह के त्यागपत्र के बाद सरकार समर्थक विधायकों की संख्या 46 रह गई। इसके बाद तीन निर्दलीय विधायकों नीलोखेड़ी के धर्म पाल गोंदर, पुंडरी के रणधीर सिंह गोलन और दादरी से विधायक सोमबीर सांगवान द्वारा समर्थन वापस लेने और राकेश दौलताबाद के निधन के बाद सरकार समर्थक विधायक 42 रह गए हैं। सरकार के अल्पमत में होने का दावा करते हुए कांग्रेस और जजपा प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कराने की मांग कर रही हैं। उपचुनाव के बाद राज्यपाल शक्ति परीक्षण के लिए विधानसभा का सत्र भी बुला सकते हैं।

 

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