30-40 की उम्र में नींद में खलल से याददाश्त और सोचने पर पड़ सकता है असर
वाशिंगटन, एजेंसी। एक नये शोध में पाया गया है कि 30-40 की उम्र में नींद में खलल पड़ने पर एक दशक बाद याददाश्त और सोचने की समस्या होने की आशंका अधिक हो सकती है। न्यूरोलाजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन यह साबित नहीं करता कि नींद की गुणवत्ता संज्ञानात्मक गिरावट का कारण बनती है, बल्कि केवल एक संबंध दर्शाता है। अध्ययन के लेखक व अमेरिका के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के यू लेंग ने कहा कि अल्जाइमर रोग के लक्षण कई दशक पहले मस्तिष्क में जमा होने लगते हैं। यह देखते हुए जोखिम कारक के रूप में नींद की समस्याओं की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है। लेंग ने कहा कि हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि मध्य आयु में संज्ञानात्मक स्वास्थ्य के लिए नींद की मात्रा के बजाय गुणवत्ता सबसे अधिक मायने रखती है।
40 वर्ष की औसत आयु वाले 526 लोगों पर किया गया अध्ययन
शोध दल ने अध्ययन में 40 वर्ष की औसत आयु वाले 526 लोगों को शामिल किया। प्रतिभागियों पर 11 वर्षों तक नजर रखी गई। इस दौरान प्रतिभागियों की नींद की अवधि और गुणवत्ता परखी गई। प्रतिभागियों ने अपने औसत की गणना करने के लिए लगभग एक वर्ष के अंतराल पर दो अवसरों पर लगातार तीन दिनों तक कलाई गतिविधि मानिटर पहना। इस दौरान इन्होंने छह घंटे की औसत नींद ली। शोध दल ने इन्हें तीन समूहों में बांटकर आगे जांच की। उनके उम्र, लिंग और शिक्षा के अनुसार बांटकर नींद में खलल का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन्हें नींद की अवधि के दौरान दो या उससे अधिक बार खलल पड़ी, उनमें एक दशक बाद याददाश्त और संज्ञानात्मक गिरावट की समस्या पाई गई। हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि नींद में खलल और याददाश्त में कमी के बीच संबंध को लेकर अभी और अध्ययन की आवश्यकता है।