अंतिम सत्य की खोज में संन्यासी बन गए एयरोस्पेस इंजीनियर अभय सिंह, जानें एक युवा संन्यासी की अद्भुत यात्रा के बारे में

प्रयागराज : महाकुंभ के पवित्र वातावरण में एक युवा संन्यासी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। उनका नाम अभय सिंह, जिसे लोग स्नेहपूर्वक “इंजीनियर बाबा” के नाम से जानते हैं। अभय का संबंध जूना अखाड़ा से है और उनकी कहानी हर किसी को प्रेरित करती है। एक समय था जब वे आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बीटेक कर रहे थे, लेकिन उनके जीवन ने एक अप्रत्याशित मोड़ लिया जब उन्होंने अपनी आत्मा की तलाश में संन्यास लेने का निर्णय लिया।

मन में हमेशा एक अधूरापन था

अभय की कहानी केवल एक पेशेवर यात्रा नहीं है, बल्कि यह जीवन के गहरे प्रश्नों की खोज का प्रतीक भी है। हरियाणा के एक छोटे से गांव सासरौली में जन्मे अभय ने अपनी पढ़ाई के दौरान ही दर्शनशास्त्र की ओर झुकाव महसूस किया। उनकी विचारशीलता इस बात का प्रमाण है कि वे केवल और केवल इंजीनियरिंग तक सीमित नहीं थे, बल्कि वे जीवन के अर्थ को समझने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा सोचता था कि जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या है? पैसे की कोई कमी नहीं थी, लेकिन मन में हमेशा एक अधूरापन था।”

विभिन्न क्षेत्रों में काम किया

अभय ने अपनी पढ़ाई के बाद विभिन्न क्षेत्रों में काम किया, जिसमें फोटोग्राफी, प्रोडक्ट डिजाइन और एनिमेशन शामिल हैं। उन्होंने ट्रैवल फोटोग्राफर के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने अपनी आत्मा की खोज के लिए लंबी पैदल यात्राएं कीं, जिसमें काशी, ऋषिकेश, और हिमालय का दौरा शामिल था। वे कहते हैं, “मुझे लगा कि भौतिकता की दौड़ में सुकून नहीं पा सकते।” इसलिए उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय लिया, जो उनके परिवार के लिए एक चौंकाने वाला कदम था। उनके माता-पिता ने इसे असामान्य और पागलपन के रूप में देखा।

खुद को समझने में

अभय ने कहा, “जब मैंने संन्यास लिया, तो मम्मी-पापा ने कहा कि मैं पागल हो गया हूं। लेकिन मेरे लिए असली ज्ञान खुद को समझने में है।” वे पंचकोश के सिद्धांतों को विज्ञान के साथ जोड़कर समझाते हैं। वे कहते हैं कि जीवन में सुख और आनंद का धारण उन कोशों के ज्ञान में छिपा है, जिसमें आनंदमय, विज्ञानमय, मनोमय, और प्राणमय कोश शामिल हैं। वे गीता की कई व्याख्याओं, “विवेक चूड़ामणि” सहित कई आध्यात्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन कर चुके हैं।

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ठोस चीजों में सुकून नहीं

कोरोना महामारी के दौरान अभय ने अपने करियर को छोड़कर भारत लौटने का निर्णय लिया। कनाडा में एक अच्छे वेतन वाली नौकरी के बावजूद उन्होंने अनुभव किया कि ठोस चीजों में सुकून नहीं है। अभय सिंह का परिवार झज्जर जिले में निवास करता है। उनके पिता कर्ण सिंह एक वकील हैं, और उनकी बहन कनाडा में रह रही हैं। अभय की शिक्षा और सफलता की कहानियां उल्लेखनीय हैं, विशेष रूप से 2008 में उन्होंने आईआईटी मुंबई में 731वीं रैंक हासिल की थी।

जीवन का अर्थ जानने की जिज्ञासा

 

अभय के मन में अस्तित्व के गहरे प्रश्न उठते रहते थे। वे कहते हैं, “मुझे हमेशा से जीवन का अर्थ जानने की जिज्ञासा रही है। आज की दौड़ में लोग भौतिक सुख की खोज में मस्त हैं, लेकिन सच्चा सुख आत्मा की खोज में है।” उनका मानना है कि मन की आवृत्तियों का भंडार है, जहाँ इच्छाएं और पहेलियाँ संचित रहती हैं। यही कारण है कि वे ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा के गहरे सत्य को खोजने का प्रयास करते हैं।

सच्चा सुख आत्मा की खोज में

अभय ने कहा, “जब लोग कहते हैं कि मैं पागल हो गया हूं, तो मैं समझाता हूं कि यह ज्ञान की खोज है। महादेव का मार्गदर्शन हमेशा होता है। जीवन की सच्ची खुशी आत्मा को खोजने में है।” उन्होंने कोरना काल के दौरान दर्शनशास्त्र में गहराई से अध्ययन किया और अपने विचारों को व्यापक बनाने के लिए विभिन्न धार्मिक और तीर्थ स्थलों की यात्रा की।

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आत्मा की आवाज को सुना

अभय की कहानी यह बताती है कि किस प्रकार एक युवा व्यक्ति ने समाज की अपेक्षाओं को पीछे छोड़ कर अपनी आत्मा की आवाज को सुना। वे लोगों को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि ज्ञान केवल पढ़ाई से नहीं, बल्कि आत्मा की खोज से मिलता है। उनका जीवन एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे हमें अपने व्यक्तित्व और आधिकारिकता की खोज करनी चाहिए, न कि केवल भौतिक सुख की।

आज इंजीनियर बाबा न केवल एक साधु हैं, बल्कि वे एक विचारक और प्रेरक गुरु भी हैं। वे अपने अनुभवों और ज्ञान को साझा करने के लिए समाज की सेवा कर रहे हैं। उनकी कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि सच्चा ज्ञान क्या है और मन की गहराइयों में छिपे रहस्यों को समझने के लिए हमें किस प्रकार की यात्रा करनी चाहिए।

अभय की यात्रा हमें यह समझाती है कि जीवन के अंत में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हम किसे खोज रहे हैं—भौतिक वस्तुओं को या अपनी आत्मा को? उन्हें विश्वास है कि यदि हम अपने भीतर की सत्यता को जानने का प्रयास करें, तो हमें सच्ची खुशी और संतोष प्राप्त होगा। अभय सिंह की यह यात्रा एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो आत्मा की खोज में हैं और यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि शायद हमें जीवन के गहरे अर्थ को खोजने के लिए कभी-कभी रुककर विचार करना चाहिए।

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