Article 370 Verdict: कौन हैं सुप्रीम कोर्ट के वो 5 जज जिन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म करने के फैसले को सही ठहराया?

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने साफ कर दिया कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए केंद्र ने जो फैसला लिया था वो बरकरार रहेगा। संविधान पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायधीश चंद्रचूड़ डीवाई चंद्रचूड़, न्यायधीश संजीव खन्ना, न्यायधीश सूर्यकांत, न्यायाधीश एसके कौल और न्यायाधीश बीआर गवई शामिल रहे। जानिए, ये फैसला देने वाले पांचों न्यायधीश कौन हैं और जानिए उनके उनके अब तक के सफर के बारे में।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने पिता के फैसले को भी पलटा

11 नवंबर 1959 को मुंबई में जन्मे देश के 50वें प्रधान न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की। स्कॉलरशिप के जरिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करते हुए मास्टर्स और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट (SJD) पूरी की। पढ़ाई के बाद हार्वर्ड लॉ स्कूल, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, येल लॉ स्कूल और यूनिवर्सिटी ऑफ विटवॉटरलैंड में बतौर लेक्चरर पढ़ाया। न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ बॉम्बे हाईकोर्ट में जज बनने से पहले एक वकील के तौर पर दिल्ली, इलाहाबाद, अहमदाबाद और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सेवाएं दे चुके हैं। 1998 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का अधिवक्ता बनाया गया। उन्होंने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी काम किया। इनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भारत के 16वें प्रधान न्यायाधीश रहे। इनका कार्यकाल करीब 7 साल का रहा और यह किसी भी सीजेआई का सबसे लंबा कार्यकाल है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने निजता के कानून के फैसले में अपने पिता के फैसले को पलटा। वह श्रीराम मंदिर के ऐतिहासिक फैसले में भी शामिल रहे। इसके अलावा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के कई फैसले चर्चा में रहे।

न्यायधीश सूर्यकांत ने वन रैंक, वन पेंशन पर सुनाया फैसला

हरियाणा में 10 फरवरी, 1962 को जन्मे न्यायधीश सूर्यकांत ने हिसार से स्नातक किया। 1984 में रोहतक की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी से लॉ में स्नातक किया और इसी साल हिसार के जिला न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू की। पंजाब और हरियाणा में बतौर वकील प्रैक्टिस के बाद 1985 में चंडीगढ़ पहुंचे। जुलाई 2000 में वो हरियाणा के सबसे कम उम्र महाधिवक्ता बने। साल 2001 में सीनियर एडवोकेट बने और 2004 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जज बने। करीब 14 साल यहां काम करने के बाद 3 अक्टूबर 2018 को हिमाचल प्रदेश के चीफ जस्टिस बने। 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत हुए। इनके कई फैसले चर्चा में रहे। सबसे ज्यादा चर्चा वन रैंक वन पेंशन मामले में दिए गए फैसले पर हुई।

जस्टिस संजीव खन्ना ने फैसलों को सरल भाषा में जारी करने की बात कही

14 मई 1960 को जन्मे संविधान पीठ में शामिल न्यायाधीश संजीव खन्ना ने दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से लॉ की डिग्री हासिल की। 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकन कराया। दिल्ली हाई कोर्ट में आपराधिक मामलों में डिबेट शुरू की। इसके बाद करीब 7 सालों तक आयकर विभाग में वरिष्ठ स्थायी वकील के तौर पर काम किया। 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट में एडिशनल जस्टिस के तौर पर प्रमोट हुए और साल 2006 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। 18 जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीया बने। वह आने वाले समय में प्रधान न्यायधीश बन सकते हैं। न्यायधीश खन्ना ने अदालतों के फैसलों में इस्तेमाल होने वाली भाषा को सरल बनाने की बात कही थी। उनका कहना था कि कानून की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि इसे आम इंसान समझ सके। वो इसे समझ पाएगा तो इसके उल्लंघन से भी बच पाएगा।

न्यायधीश संजय किशन कौल ने निजता के कानून के पक्ष में फैसला सुनाया

26 दिसम्बर 1958 को श्रीनगर में जन्मे जस्टिस संजय किशन कौल ने दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से पढ़ाई की। सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक और दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल की। वर्तमान में वे सुप्रीम कोर्ट में दूसरे सबसे सीनियर जज हैं। लॉ में डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने 1987 से लेकर 1999 तक सुप्रीम कोर्ट में बतौर वकील काम किया। 1999 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर नॉमिनेट किया गया और मई 2001 में दिल्ली हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में पदोन्नत हुए।

मई 2003 में उनकी नियुक्ति स्थानीय न्यायाधीश के रूप में हुई और 2013 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। जुलाई 2014 में मद्रास हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाला और फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए। इनके कई फैसले चर्चा में रहे थे। इन्होंने निजता के मौलिक अधिकार के पक्ष में फैसला सुनाया। 2008 में बतौर हाईकोर्ट के जज के रूप में एमएफ हुसैन पर लगे आरोपों को खारिज किया था जिसके कहा गया था कि उन्होंने पेंटिंग के जरिए भारत माता का अपमान किया।

न्यायाधीश बीआर गवई ने नोटबंदी को सही ठहराने वाला फैसला दिया

24 नवंबर, 1960 को अमरावती में जन्मे न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने मात्र 25 साल की उम्र में लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत शुरू कर दी थी। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में प्रैक्टिस की। पूर्व महाधिवक्ता और उच्च न्यायालय के जस्टिस राजा भोंसले के साथ काम किया। 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से वकालत की। जनवरी, 2000 में उनकी नियुक्ति नागपुर बेंच में सरकारी वकील और लोक अभियोजक के रूप में हुई। नवंबर 2006 में वो बॉम्बे हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बने और मई, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में प्रमोट हुए। इनके कई फैसले चर्चा में रहे। इन्होंने अपने फैसले में नोटबंदी को सही ठहराया। इन्होंने फैसले में कहा था कि सरकार ने यह फैसला लेने से पहले आईबीआई से सलाह ली थी।

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