Badrinath Dham: आज शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे बदरीनाथ धाम के कपाट, जानें- कपाट बंद होने की अनूठी प्रक्रिया

देहरादून, BNM News: बदरीनाथ धाम के कपाट (badrinath dham doors closed )शनिवार यानी 18 नवंबर (badrinath closing date 2023) को शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे। इसके साथ ही आज चारधाम यात्रा का भी समापन हो जाएगा। बीकेटीसी के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि पंच पूजाओं के पांचवें दिन शनिवार को रावल स्त्री वेष धारण कर माता लक्ष्मी को बदरीनाथ मंदिर (badrinath dham)के गर्भ गृह में विराजमान करेंगे। उसके बाद उद्धव जी व कुबेर जी मंदिर प्रांगण में आएंगे और दोपहर 3:33 बजे पर धाम के कपाट बंद हो जाएंगे। बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा कि कपाट बंद करने को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

माता लक्ष्मी को बदरीनाथ गर्भ गृह में आने का दिया आमंत्रण

बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत शुक्रवार को माता लक्ष्मी की पूजा कर उन्हें बदरीनाथ मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान होने का आमंत्रण दिया गया। इस दौरान मंदिर में पूजा अर्चना की गई। शुक्रवार को धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल और वेदपाठी रविंद्र भट्ट और लक्ष्मी मंदिर के पुजारियों ने मां लक्ष्मी की पूजा की और उन्हें कढ़ाही भोग लगाया। इस अवसर पर बीकेटीसी उपाध्यक्ष किशोर पंवार, मुख्य कार्याधिकारी योगेंद्र सिंह, मंदिर अधिकारी राजेंद्र चौहान, दिनेश डिमरी, श्रीराम डिमरी, विपुल डिमरी, विवेक थपलियाल आदि मौजूद रहे।

भगवान बद्री विशाल के कपाट बंद होने की अनूठी प्रक्रिया

भगवान बद्री विशाल के कपाट बंद होने की प्रक्रिया बेहद अनूठी है। कपाट बंद होने की प्रक्रिया लगभग पांच दिन तक चलती है। इस दौरान भगवान गणेश, आदिकेदार, खड्ग पुस्तक और महालक्ष्मी की पूजा होती है। कपाट बंद होने की शुरुआत गणेश पूजन से होती है। भगवान गणेश की मूर्ति को बद्रीनाथ धाम के गर्भ गृह में विराजित कर गणेश मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद आदि केदार के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और खड्ग पुस्तकों का पूजन कर उन्हें भी मंदिर में रख दिया जाता है। पांचवें दिन मंदिर के मुख्य पुजारी स्त्री वेश धारण करते हैं। इसके पीछे बेहद रोचक वजह है, क्योंकि वह माता लक्ष्मी के विग्रह को उठाकर मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की पंचायत में विराजित करते हैं।

इस वजह से स्त्री वेश धारण करते हैं पुजारी

पूर्व धर्माधिकारी भुवन उनियाल बताते हैं कि उद्धव जी भगवान कृष्ण के बाल सखा होने के साथ-साथ उनसे उम्र में बड़े भी हैं, जिस रिश्ते से वह माता लक्ष्मी के जेठ हुए। जेठ के सामने बहू नहीं आती है, इसलिए मंदिर से उद्धव जी के बाहर आने के बाद ही माता लक्ष्मी मंदिर में विराजित होती हैं। माता लक्ष्मी की विग्रह डोली को पर पुरुष (पराया पुरुष) न छुए, इसलिए मंदिर के पुजारी माता लक्ष्मी की सखी अर्थात स्त्री रूप धारण कर माता के विग्रह को उठाते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

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