पटना में एक ही कमरे में आठ कक्षाएं, कोने में बैठते हैं प्रधानाध्यापक; जानें कैसे होगी स्कूल मे पढ़ाई

पटना, बीएनएम न्यूज। एक कमरा। आठ बेंच। सभी पर कक्षा एक से आठ तक के बच्चे। यानी, प्रति बेंच एक कक्षा। छात्र-छात्राओं की संख्या 42, प्रधानाध्यापक सहित कुल सात शिक्षक। पटना के बांकीपुर अंचल में स्थित राजकीय हिंदी बालक मध्य विद्यालय, भंवर पोखर। 1960 से संचालित इस विद्यालय में एक ही कमरे में आठ कक्षाएं और वहीं कोने में बैठते हैं प्रधानाध्यापक। स्कूलों का नियमित निरीक्षण चल रहा है, रिपोर्ट दी जा रही है, पर अधिकारियों को पता ही नहीं कि ऐसा भी कोई स्कूल है। वैसे तो स्कूल में तीन कमरे हैं, पर एक की छत ढह चुकी है। कमरे से आकाश दिखता है। दूसरे में मध्याह्न भोजन बनता है। ले-देकर एक कमरा है, इसे ही हर किसी की कक्षा कह लें, प्रधानाध्यापक का कक्ष लें या फिर स्कूल। हां! एक शौचालय है, टूटा-फूटा। यह सार्वजनिक हो चुका है, अर्थात यहां कोई भी आ सकता है। इस बारे में प्रधानाध्यापक डा. सुनील कुमार गुप्ता का कहना है कि सरकार की ओर से जो भी संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं, उसी में अच्छा करने का प्रयास करते हैं। यहां दक्ष कक्षाएं भी संचालित होती हैं, जिसमें 20 बच्चे हैं। शिक्षकों का पूरा सहयोग मिलता है।

एक कमरे में ही अलग-अलग बेंच पर आठ कक्षाओं का संचालन

अब जरा पढ़ाई की व्यवस्था देख लें। घंटी बजती है, सारे बच्चे कक्षा में। पढ़ाई शुरू हो गई। कक्षा एक वाली इकलौती बेंच के सामने उसके शिक्षक। इसी प्रकार अन्य कक्षाओं की इकलौती बेंच के आगे और भी शिक्षक। ब्लैक बोर्ड भी तो एक ही है। तो क्या करें? कहते हैं न, आवश्यकता आविष्कार की जननी है। सो, इसका उपाय भी है। शिक्षक बताते हैं कि ब्लैकबोर्ड पर किसी एक कक्षा की पढ़ाई जैसे ही समाप्त होती है, दूसरे शिक्षक अपनी कक्षा के लिए उस पर जम जाते हैं। तब तक अन्य कक्षाओं की पढ़ाई यूं ही कराई जाती है। यानी, बिना ब्लैकबोर्ड के। इसे शिक्षा विभाग की मजबूरी कहें, उदासीनता कहें या अनुपम प्रयोग कि एक साथ आठ-आठ कक्षाओं का ज्ञान विद्यार्थियों को दिया जा रहा है।

स्कूल की हालत है हर तरह से खस्ता हाल

शिक्षक या तो हर बेंच के सामने खड़े होते हैं या जगह अनुकूल कुर्सी पर बैठकर पढ़ाते हुए। ब्लैक बोर्ड के पास ही प्रधानाध्यापक की कुर्सी लगी होती है। इस कुर्सी भर जगह को उनका कार्यालय कह सकते हैं। स्कूल के पास सात डिसमल जमीन है। नए कमरे आसानी से बनाए जा सकते हैं, पर बनाए नहीं गए। स्कूल परिसर में प्रवेश करने से पहले दाहिनी ओर बच्चों के लिए एक शौचालय है। हालत ऐसी कि देखते ही उल्टी आ जाए। चापाकल तो है, लेकिन खराब। प्लास्टिक की पाइप से सप्लाई का पानी आता है। इसी गंदी जगह से पानी लेकर बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार किया जाता है। बेंच-डेस्क भी टूटी हुई है। किसी तरह मरम्मत कराकर काम चलाया जा रहा है। स्कूल के नाम से नगर निगम ने जमीन का आवंटन किया है।

अधिकारी ने कहा, भवनहीन स्कूलों में चल रहा है नया भवन बनाने का काम

पटना के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (समग्र शिक्षा) श्याम नंदन का कहना है कि यह सही है कि स्कूल में जगह की कमी है। इस स्कूल को व्यवस्थित करने की दिशा में काम चल रहा है। फिलहाल कमरे को बच्चों के बैठने के लायक बनाया जाएगा। भवनहीन स्कूलों में नया भवन बनाने का काम चल रहा है।

 

 

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