दिल्ली में चुनाव प्रचार के बीच 8 विधायकों ने छोड़ी आम आदमी पार्टी, लगाए भ्रष्टाचार के संगीन आरोप

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को एक चुनावी सभा में आम आदमी पार्टी (आप) और उसके नेताओं को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घेरते हुए सार्वजनिक मंच से उनके नैतिकता पर कटाक्ष किया। जबकि पीएम मोदी आप की नीति और कार्यशैली की आलोचना कर रहे थे, उस समय आठ विधायकों ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का निर्णय लिया। इन विधायकों ने अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी की राजनीति के दावों पर भी सवाल उठाए हैं।
आप की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा
इन विधायकों में पालम विधानसभा क्षेत्र की भावना गौड़, बिजवासन से बीएस जून, आदर्श नगर के पवन शर्मा, कस्तूरबा नगर के मदनलाल, जनकपुरी के राजेश ऋषि, त्रिलोकपुरी के रोहित महरौलिया, मादीपुर के गिरीश सोनी और महरौली के नरेश यादव शामिल हैं। इन आठों विधायकों ने आप की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है और उनकी शिकायतों का मुख्य कारण पार्टी में बढ़ता भ्रष्टाचार है।
कोई ईमानदारी नहीं
इस्तीफे के पत्रों में विधायकों ने स्पष्ट रूप से कहा कि आम आदमी पार्टी का गठन भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन के दौरान हुआ था, लेकिन अब वही पार्टी भ्रष्टाचार के दलदल में फंस गई है। नरेश यादव ने केजरीवाल को लिखे पत्र में कहा कि उन्होंने पार्टी को ईमानदारी की राजनीति के साथ जुड़ने के लिए चुना था, लेकिन उन्हें कोई ईमानदारी नहीं दिखाई दे रही है। उन्होंने यह भी कहा कि महरौली विधानसभा क्षेत्र में काम करते समय लोगों ने उन्हें बताया कि आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार में ढल चुकी है।
अनियंत्रित गिरोह
राजेश ऋषि, जिन्होंने जनकपुरी का प्रतिनिधित्व किया, ने केजरीवाल को लिखे पत्र में कहा कि पहले भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का सपना देखने वाली आम आदमी पार्टी अब स्वयं भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी ने अन्ना हजारे के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है और इसे एक “अनियंत्रित गिरोह” की संज्ञा दे डाली। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी में अब वे लोग शामिल हैं, जो पहले नैतिकता और अखंडता के संरक्षक थे, लेकिन अब वे सबसे बड़े उल्लंघनकर्ता बन गए हैं।
अनसूचित जातियों के प्रति उपेक्षा का आरोप
विधायक रोहित महरोलिया ने अनसूचित जातियों के प्रति पार्टी की उपेक्षा का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में समाज के इस हिस्से की आवाज़ को नकार दिया जाता है। इस प्रकार, पार्टी के भीतर विद्रोह की बुनियाद कई मुद्दों पर है, जिसमें भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और आंतरिक लोकतंत्र की कमी जैसी बातें शामिल हैं।
इस संकट के बीच आम आदमी पार्टी ने विधायकों के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने कहा कि उनकी लोकप्रियता के कारण अधिक योग्य और शिक्षित उम्मीदवार टिकट के लिए इच्छुक हैं। आप ने इस पर भी जोर दिया कि कुछ विधायकों को टिकट नहीं दिए जाने से उनमें असंतोष पैदा हुआ है और भाजपा द्वारा इन विधायकों को लुभाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह पार्टी का तर्क है कि पार्टी के सच्चे सदस्य केजरीवाल के साथ खड़े रहेंगे और किसी पद के लिए राजनीति में नहीं आए हैं।
यह राजनीतिक उथल-पुथल केवल आम आदमी पार्टी के लिए ही नहीं, बल्कि दिल्ली की राजनीति के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जब प्रधानमंत्री मोदी जैसे नेता पार्टी की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं, तो इसे सत्ता के लिए एक बड़ा खतरा माना जा सकता है। आप के विधायकों की बगावत न केवल पार्टी की ऊर्जा को प्रभावित करेगी, बल्कि आगामी चुनावों में भी इसके प्रदर्शन को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
यह घटनाक्रम दिल्ली की राजनीति में एक नए अध्याय की ओर संकेत करता है, जहाँ आम आदमी पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से भटकती नजर आ रही है। अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए आंदोलन ने पार्टी को एक ऊंचाई पर पहुंचाया था, लेकिन यदि ऐसे हालात बने रहे, तो संभवतः उसके आधार ढहने में भी समय नहीं लगेगा।
आम आदमी पार्टी के लिए यह समय आत्ममंथन का है। उसे अपनी साख को फिर से स्थापित करने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। क्या पार्टी अपनी मूल विचारधारा की दिशा में लौट सकेगी या वह राजनीतिक उथल-पुथल में और गहरे संकट में फंसती जाएगी, यह देखने वाली बात होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर पार्टी ने अपने सदस्यों की आवाज़ को नहीं सुना, तो उसके लिए आगे का रास्ता कठिन साबित हो सकता है।
सभी आंखें अब आम आदमी पार्टी की ओर हैं, क्योंकि उसके आत्ममंथन का परिणाम आगामी चुनावों में दिखाई देगा और यह बताएगा कि क्या पार्टी अभी भी “सच्ची राजनीति” की अपनी पहचान को बनाए रख सकती है या नहीं।