एमएसपी गारंटी कानून की मांग पर अड़े किसान, केंद्रीय मंत्री के साथ बैठक बेनतीजा, 22 फरवरी को फिर होगी वार्ता

कुरुक्षेत्र में किसान महापंचायत

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़ : संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के किसान एक बार फिर से सभी 23 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर अडिग हैं। इस मुद्दे पर शुक्रवार को केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री प्रल्हाद जोशी के साथ हुई बैठक में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि चूंकि केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने बेटे के विवाह समारोह में व्यस्त हैं, इसलिए अगली बैठक 22 फरवरी को दिल्ली में आयोजित की जाएगी।

बैठक में केंद्रीय मंत्री जोशी ने किसानों को आश्वासन दिया कि कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान अगली बैठक में निश्चित रूप से उपस्थित रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे इस संबंध में उनसे बात करेंगे और किसानों को 22 तारीख को होने वाली बैठक का लिखित निमंत्रण भेजेंगे। लगभग तीन घंटे तक चली इस बैठक में किसान नेता अपनी इस मांग पर अड़े रहे कि सभी 23 फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए।

बैठक में किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, सरवण सिंह पंधेर सहित दो दर्जन से अधिक किसान नेता मौजूद थे। इसके अतिरिक्त, पंजाब सरकार की ओर से कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री लाल चंद कटारुचक्क, पंजाब के मुख्य सचिव केएपी सिन्हा, कृषि सचिव अनुराग वर्मा व केंद्रीय कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी भी शामिल हुए।

खनौरी से एंबुलेंस में चंडीगढ़ पहुंचे डल्लेवाल

 

केंद्र सरकार के साथ होने वाली इस महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने के लिए किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल शुक्रवार दोपहर को खनौरी से एंबुलेंस में चंडीगढ़ के लिए रवाना हुए। 81 दिनों से आमरण अनशन कर रहे डल्लेवाल आंदोलन के दौरान पहली बार मोर्चा स्थल से बाहर निकले। डल्लेवाल के साथ काका सिंह कोटड़ा, डॉक्टरों की टीम और अन्य किसान नेताओं का काफिला भी चंडीगढ़ के लिए रवाना हुआ। इससे पहले, डॉक्टरों की टीम ने डल्लेवाल का स्वास्थ्य परीक्षण किया और उन्हें बैठक में भाग लेने के लिए फिट घोषित किया।

एमएसपी गारंटी कानून की मांग: किसानों का तर्क

 

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) लंबे समय से सभी 23 फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग कर रहा है। किसानों का तर्क है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी से उन्हें उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलेगा और वे आर्थिक रूप से सुरक्षित रहेंगे। वर्तमान में, सरकार केवल कुछ ही फसलों के लिए एमएसपी घोषित करती है, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। इस वजह से, किसानों को अक्सर अपनी फसलों को एमएसपी से कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

किसानों का यह भी कहना है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी से कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। उनका मानना है कि यदि किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलेगा, तो वे कृषि में अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगे, जिससे उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि होगी।

सरकार का रुख

 

केंद्र सरकार ने अभी तक एमएसपी की कानूनी गारंटी देने से इनकार कर दिया है। सरकार का कहना है कि इससे राजकोष पर भारी बोझ पड़ेगा और बाजार में विकृति आएगी। सरकार का यह भी तर्क है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी से निजी क्षेत्र कृषि में निवेश करने से हतोत्साहित होगा।

हालांकि, सरकार ने किसानों को आश्वासन दिया है कि वह उनकी आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और इस दिशा में कई कदम उठा रही है। सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और कृषि अवसंरचना कोष जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना और कृषि क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना है।

आगे की राह

 

किसानों और सरकार के बीच एमएसपी की कानूनी गारंटी के मुद्दे पर अभी भी गतिरोध बना हुआ है। 22 फरवरी को होने वाली बैठक में इस मुद्दे पर आगे की बातचीत होने की उम्मीद है। यह देखना होगा कि क्या दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंचने में सफल होते हैं या नहीं।

किसानों के आंदोलन का इतिहास

 

भारत में किसानों के आंदोलन का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है। किसानों ने समय-समय पर अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ आंदोलन किए हैं। इन आंदोलनों में से कुछ प्रमुख आंदोलन निम्नलिखित हैं:

चंपारण सत्याग्रह (1917): यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों के समर्थन में किया गया था।
बारदोली सत्याग्रह (1928): यह आंदोलन सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात के बारदोली में किसानों पर लगाए गए करों के विरोध में किया गया था।
तेभागा आंदोलन (1946): यह आंदोलन बंगाल में बटाईदारों द्वारा जमींदारों के खिलाफ किया गया था।
नर्मदा बचाओ आंदोलन (1985): यह आंदोलन नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध के निर्माण के विरोध में किया गया था।
किसान आंदोलन 2020-21: यह आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में किया गया था।

किसानों के आंदोलन का महत्व

 

किसानों के आंदोलन भारत में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इन आंदोलनों ने किसानों के अधिकारों की रक्षा करने और उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाने में मदद की है। किसानों के आंदोलनों ने सरकार को किसानों के मुद्दों पर ध्यान देने और उनके कल्याण के लिए नीतियां बनाने के लिए मजबूर किया है।

महत्वपूर्ण कदम

 

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) द्वारा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर किया जा रहा आंदोलन किसानों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें आर्थिक रूप से सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार को किसानों की मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए और उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। 22 फरवरी को होने वाली बैठक इस मुद्दे पर आगे की बातचीत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। उम्मीद है कि दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंचने में सफल होंगे और किसानों के कल्याण के लिए एक स्थायी समाधान खोज पाएंगे।

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