किसान नहीं कर रहे बात, सुप्रीम कोर्ट की कमेटी अब कृषि विशेषज्ञों से समझेगी एमएसपी की गुत्थी

कुरुक्षेत्र में किसान महापंचायत
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : Kisan Andolan: किसान आंदोलन की धाराएं अभी भी गरम हैं, जब संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) के नेता सुप्रीम कोर्ट की हाई पावर कमेटी के समक्ष अपना पक्ष रखने में नाकाम रहे। यह घटना न केवल किसानों की स्थिति को बयान करती है, बल्कि कृषि नीति में जो बदलाव अपेक्षित हैं, उन पर भी सवाल खड़ा करती है। शंभू बार्डर पर चल रहे धरने और खनौरी बार्डर पर आमरण अनशन के दौरान किसानों ने अपनी प्रमुख मांग – सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी – को अनदेखा किए जाने का आरोप लगाया है।
हाल ही में हाई पावर कमेटी ने खेती लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष विजयपाल शर्मा को बुलाया है, ताकि वह MSP निर्धारित करने की प्रक्रिया को स्पष्ट कर सकें। इसके साथ ही, नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, अमूल के एमडी और क्रेडिट रेटिंग इंफॉरमेशन सर्विसेज आफ इंडिया लिमिटेड (क्रिसिल) जैसी एजेंसियों को भी चर्चा में शामिल किया गया है। लेकिन किसानों की अनुपस्थिति इस पूरे चर्चा के सार्थकता पर सवाल उठाती है।
हाई पावर कमेटी का उद्देश्य और संचालन
हाई पावर कमेटी का गठन मुख्य रूप से किसानों की समस्या को सुलझाने और MSP की गुत्थी को समझने के लिए किया गया है। हालाँकि, किसानों के न आने के कारण समिति को अब कृषि से जुड़े आयोगों, विशेषज्ञों और निजी एजेंसियों के साथ चर्चा करने के विकल्प पर जाना पड़ा है। समिति ने यह स्पष्ट किया है कि किसानों के बिना संवाद की कमी आएगी, लेकिन यह भी एक संकेत है कि किसान सच्चे प्रतिनिधियों के तौर पर अपनी आवाज नहीं उठा रहे हैं।
कृषि की लागत और मूल्य निर्धारण की तकनीकी प्रक्रिया को समझना अत्यंत आवश्यक है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यदि सभी फसलों पर MSP लागू की जाती है, तो इस पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या इसके लिए आवश्यक संसाधनों की कमी होगी? यह सब प्रश्न ऐसे हैं जो बिना निष्कर्ष के नहीं रह सकते। समिति के एक सदस्य ने कहा, “हमें निराशा हुई है कि किसान अपनी बात रखने के लिए नहीं आए,” यह स्पष्ट करता है कि किसान और कृषि नीति नियामक के बीच संवाद की कमी हो रही है।
महासभा की तैयारी और किसान आंदोलन
खनौरी बार्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का आमरण अनशन लगातार जारी है। उनकी इच्छा के अनुसार, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) ने 4 जनवरी को खनौरी में एक महापंचायत आयोजित करने का निर्णय लिया है। यह महापंचायत देश भर से लाखों किसानों के एकत्रित होने की उम्मीद से भरी है, लेकिन धरना स्थल की भौगोलिक स्थिति पर सवाल उठते हैं। क्या प्रशासन सचमुच 2 लाख किसानों को संभाल सकेगा? यह एक महत्वपूर्ण चुनौती है, जो न केवल प्रशासन, बल्कि किसानों के लिए भी काफी गंभीर है।
वहीं दूसरी ओर, टोहाना में भी एक महापंचायत आयोजित की जा रही है। किसान नेताओं का कहना है कि इस पंचायत में एमएसपी की कानूनी गारंटी, मंडी व्यवस्था के खत्म होने के मुद्दे और तीन कृषि कानूनों की नई रूपरेखा पर चर्चा की जाएगी। इन मुद्दों पर सभी किसानों का एकजुट होना आवश्यक है, ताकि उनकी आवाज को मजबूत बना सके।
किसानों के अधिकार और उनके संघर्ष
किसान जो मांगें कर रहे हैं, उनमें सर्वोच्च प्राथमिकता MSP का मुद्दा है। पिछले तीन वर्षों में, उनका संघर्ष न केवल अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए है, बल्कि यह एक व्यापक पहचान और सम्मान की लड़ाई भी है। उन्हें अपनी कृषि से जुड़े अधिकार और सम्मान की तलाश है। चाहे वह MSP की कानूनी गारंटी हो या मंडी प्रणाली की रक्षा, किसान यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिले।
किसान आंदोलन से साफ होता है कि जब तक उनकी बातों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक वे संघर्ष जारी रखेंगे। उनके नेताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए योजनाएँ बना ली हैं कि उनकी आवाज बेकार नहीं जाएगी, और वे सभी सामूहिक रूप से अपनी मांगों को रखने में सक्षम हों।
राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर गहरी खाई
किसान आंदोलन की यह कहानी केवल उनकी आर्थिक स्थिरता की नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और राजनीतिक निर्माण की कोशिश भी है। किसान प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति, उनकी कहीं खोई हुई पहचान और संचार की कमी यह दर्शाती है कि राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर एक गहरी खाई है। यह सवाल उठता है कि क्या सरकार सुन रही है? कृषि के संदर्भ में जो सुधार आवश्यक हैं, क्या वे असल में किसानों की भलाई के लिए हो रहे हैं या केवल फॉरम में बात करने के लिए?
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