विकलांगता पेंशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी को विकलांगता पेंशन न देने के मामले में नाराजगी जताई है। जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता की पीठ ने 23 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि आने वाले तीन दिनों में हम 76वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस का पूरा जश्न हमारी सेना के कठिन परिश्रम और सीमाओं पर उनके साहसिक कार्यों के कारण ही संभव होता है। केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को उनकी स्थिति के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि 80 वर्ष या उससे अधिक उम्र के सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनुशासित लोग हैं। अपनी वैध मांगों को लेकर हाईकोर्ट और सशस्त्र बल न्यायाधिकरण का रुख कर रहे हैं। एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते सरकार का यह कर्तव्य है कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अधिकारों को लागू करे और राहत प्रदान करे। यह टिप्पणी केंद्र सरकार की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई जिसमें सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर विकलांगता पेंशन को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्देश दिया गया था।
केंद्र सरकार ने दावा किया कि संबंधित सैन्य अधिकारी ने देरी से सशस्त्र बल न्यायाधिकरण का रुख किया था। लेकिन कोर्ट ने कहा कि पेंशन कोई दान या अनुग्रह नहीं है, बल्कि यह उन सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों का अधिकार है, जिन्होंने सेवा के दौरान विकलांगता का सामना किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा पास किए गए कई आदेशों में विकलांगता पेंशन को 50 प्रतिशत, 75 प्रतिशत और 100 प्रतिशत तक बढ़ाने की बात कही गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “राम अवतार बनाम भारत संघ” मामले में पुष्टि की थी।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी की
अदालत ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को सभी पात्र पेंशनभोगियों को पेंशन बढ़ाने का लाभ देना चाहिए था। लेकिन सरकार के उदासीन रवैये के कारण, पेंशनभोगियों को बार-बार अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ा। जस्टिस शर्मा ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल पेंशनभोगियों को राहत प्रदान करें। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी की है।
कोर्ट ने इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना करार देते हुए केंद्र सरकार की अपील खारिज कर दी। यह फैसला सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनोख सिंह के मामले में आया है, जिन्हें विकलांगता पेंशन के मामले में न्याय नहीं मिल रहा था। कोर्ट की इस टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी करने वालों के खिलाफ सख्ती से निपटा जाएगा।
केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को सेना के जवानों के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है, जो देश की रक्षा के लिए अपनी जान देने को तैयार रहते हैं। सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट का यह फैसला सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों के लिए एक बड़ी राहत है और यह उम्मीद की जा सकती है कि सरकार अब उनके अधिकारों का ध्यान रखेगी।
विकलांगता पेंशन को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्देश
इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा पास किए गए आदेश को चुनौती दी जा रही है। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर विकलांगता पेंशन को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्देश दिया था। लेकिन केंद्र सरकार ने कहा कि संबंधित सैन्य अधिकारी ने देरी से सशस्त्र बल न्यायाधिकरण का रुख किया था।
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को सभी पात्र पेंशनभोगियों को पेंशन बढ़ाने का लाभ देना चाहिए था। लेकिन सरकार के उदासीन रवैये के कारण, पेंशनभोगियों को बार-बार अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ा। कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा पास किए गए कई आदेशों में विकलांगता पेंशन को 50 प्रतिशत, 75 प्रतिशत और 100 प्रतिशत तक बढ़ाने की बात कही गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “राम अवतार बनाम भारत संघ” मामले में पुष्टि की थी।
आदेशों की अवमानना
कोर्ट ने इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना करार देते हुए केंद्र सरकार की अपील खारिज कर दी। यह फैसला सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनोख सिंह के मामले में आया है, जिन्हें विकलांगता पेंशन के मामले में न्याय नहीं मिल रहा था। कोर्ट की इस टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी करने वालों के खिलाफ सख्ती से निपटा जाएगा।
केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को सेना के जवानों के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है, जो देश की रक्षा के लिए अपनी जान देने को तैयार रहते हैं। सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट का यह फैसला सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों के लिए एक बड़ी राहत है और यह उम्मीद की जा सकती है कि सरकार अब उनके अधिकारों का ध्यान रखेगी।
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