कुंभ आए थे स्नान करने, भक्ति में ऐसे डूबे कि 13 साल की बेटी को कर दिया दान, जानिए पूरी कहानी
प्रयागराज, बीएनएम न्यूजः 12 साल के दुर्लभ सहयोग के बाद प्रयागराज में महाकुंभ लगने जा रहा है। इस महाकुंभ में शामिल होने के लिए देश की अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालु आ रहे हैं। हर कोई आस्था के इस महासंगम में पुण्य कमाना चाह रहा है। ऐसा ही काम किया है एक दम्पति ने जिसने अपनी 13 साल की बेटी का संगम की रेती पर कन्या दान कर दिया. यह कहानी अपने आप में दिलचस्प है।
जानें पूरी कहानी
लोगों का मानना है कि कुम्भ, महाकुम्भ और माघ मेले में दान का महत्त्व है। ऐसी परंपरा है कि दान करने से पुण्य मिलता है। यूपी के आगरा से आए दिनेश ढाकरे और रीमा ने भी प्रयागराज महाकुंभ में सनातन धर्म की राह पर चलते हुए अपनी 13 साल की बड़ी बेटी को जूना अखाड़े में दान कर दिया। उन्हें खुशी है कि अब उनकी बेटी आध्यात्मिक कार्यों में लगी रहेगी।
सब ऊपर वाले की मर्जी से हुआ
इस मामले पर गौरी की मां रीमा का कहना है कि यह सब ऊपर वाले की मर्जी से हुआ है। हर मां-बाप सोचते हैं कि वह अपने बच्चों को पढ़ाये, शादी विवाह करें। लेकिन बेटी को शुरू से शादी से नफरत है। उन्होंने कहा, हमें भी बहुत खुशी है और बच्ची को भी। बच्ची के अंदर भक्ति करते-करते कोई शक्ति जग गई। उसका विचार आया मुझे भजन करना है और साधु बनना है।
मुझे भक्ति करने में आनंद आता
जूना अखाड़े में शामिल कराया गया
गौरी को पूरी परंपरा के साथ जूना अखाड़े में शामिल कराया गया। लेकिन अभी बेटी का संस्कार बाकी है जिसमें पिंडदान और तड़पन कराया जाएगा ताकि वह पूरी तरीके से अखाड़ा के रिवाजों में शामिल हो जाए। महंत के अनुसार उसे आध्यात्मिक शिक्षा दी जाएगी।
बिना किसी दबाव के परिवार ने दान की बेटी: कौशल
जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि का कहना है कि परिवार ने बिना किसी दबाव के बेटी का दान किया है। संदीप सिंह ढाकरे और उनकी पत्नी काफी समय से आश्रम से जुड़े हैं। परिवार चाहता था कि उनकी बेटी साध्वी बने, यही इच्छा गौरी (पूर्व नाम राखी) की भी है। परिवार की इच्छा और सहमति से गौरी को आश्रम में स्वीकार कर लिया गया है। बेटी और पढ़ना चाहेगी तो उसे अध्यात्म की शिक्षा दिलाएंगे।