Banking Rule: बैंकिंग कानूनों में होगा बड़ा बदलाव, वित्त मंत्री ला रहीं ये नियम, मिलेगी खास सुविधा
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूजः आने वाले दिनों में देश का हर बैंक ग्राहक अपने बैंक खाते के लिए चार नामिनी नामित कर सकता है। एक साथ चार व्यक्तियों को भी बैंक खाते के लिए अपने बाद उत्तराधिकारी घोषित किया जा सकता है या फिर क्रमवार तरीके से भी इनका नाम कानूनी तरीके से दर्ज कराया जा सकता है।
इस संबंध में शुक्रवार को लोकसभा में सरकार की तरफ से बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया गया। विधेयक वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने पेश किया। इसके जरिये बैंकिंग व्यवस्था से जुड़े चार अलग-अलग तरह के कानूनों में संशोधन किया जा रहा है। सरकार का कहना है कि संशोधन से बैंकिंग ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा ज्यादा बेहतर तरीके से की जा सकेगी।
एक अहम प्रस्तावित संशोधन यह है कि अगर किसी निवेशक के बिना दावे वाला लाभांश, शेयर या बांड्स पर देय ब्याज निवेशक सुरक्षा कोष में हस्तांतरित किया जा चुका है तो उक्त निवेशक को अपनी राशि वापस लेने का हक होगा। कई बार निवेशकों को पता नहीं चलता है और पुराने निवेशित राशि बैंक खाता संचालित नहीं होने की वजह से निवेशक शिक्षा व सुरक्षा कोष (आइईएसएफ) में डाल दिया जाता है।
एक बार उक्त फंड में पैसा जाने के बाद उससे निकालने की व्यवस्था नहीं थी जिसकी राह अब खोल दी जाएगी। सरकार की तरफ संशोधन विधेयक के प्रस्तावना में कहा गया है कि विगत कुछ वर्षों में देश के बैंकिंग सेक्टर में कई तरह के बदलाव हुए हैं और उनके हिसाब से कदम उठाते हुए संशोधन के प्रस्ताव किये जा रहे हैं।
4 लोगों को बना सकते हैं नॉमिनी
वित्त मंत्री की ओर से पेश इस बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक 2024 में हर बैंक अकाउंट में नॉमिनी व्यक्तियों के विकल्प को मौजूदा एक से बढ़ाकर चार करने का प्रावधान है। इस विधेयक में पत्नी, पति या माता-पिता के अलावा भाई-बहन को भी नॉमिनी बनाने का विकल्प मिलेगा। इसे पिछले सप्ताह केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी।
इस विधेयक के तहत भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934, बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949, भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम 1955, बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम 1970 और बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980 में संशोधन करने का प्रस्ताव है।
सहकारी बैंकों के कामकाज में होगा सुधार
कुछ संशोधन सहकारी बैंकों के कामकाज को बेहतर करने के उद्देश्य से किए जा रहे हैं। मसलन, सहकारी बैंकों के निदेशकों के कार्यकाल की सीमा आठ वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष किया जा रहा है। इसमें पूर्णकालिक निदेशक या चेयरमैन को शामिल नहीं किया गया है। अन्य वाणिज्यिक बैंकों के लिए यह व्यवस्था पहले ही की जा चुकी है।
इसी तरह से केंद्रीय सहकारी बैंकों के निदेशक पद पर कार्यरत व्यक्तियों को साथ साथ राज्यों के सहकारी बैंकों के निदेशक के तौर पर भी काम करने की इजाजत देने का प्रस्ताव है। सभी बैंकों के लिए एक व्यवस्था यह की जा रही है कि अब उन्हें हर पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार को नहीं बल्कि पखवाड़े के अंतिम दिन वैधानिक रिपोर्ट भेजनी होगी।
छोटे-मोटे बदलाव के लिए विधेयक लाने की क्या जरूरत
कांग्रेसी सांसद मनीष तिवारी, टीएमसी सांसद सौगत राय व कुछ दूसरे विपक्षी सांसदों ने प्रस्तावित संशोधन विधेयक का यह कहते हुए विरोध किया कि सरकार इनके जरिये सहकारी बैंकों में अपना हस्तक्षेप बढ़ाने की मंशा रखती है। राय ने यह कहा कि इन छोटे-मोटे बदलाव के लिए संसद में विधेयक पेश करने की जरूरत ही नहीं थी।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इनका जबाव देते हुए सरकार की मंशा सहकारी बैंकों में हस्तक्षेप की नहीं बल्कि उनके कामकाज को बेहतर बनाने और बैंकों को ज्यादा आजादी देने की है।
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