खराब नींद से बढ़ जाता है ‘मसल डिस्मोर्फिया’ का जोखिम, जानें कैसे

हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद आवश्यक है। यह शरीर के बुनियादी स्वास्थ्य से जुड़ी है, खासतौर पर किशारों और युवाओं के विकास के लिए जरूरी है। एक ताजा अध्ययन में खराब नींद को युवाओं में उभरते ‘मसल डिस्मोर्फिया’ से जुड़ा पाया गया है। इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त युवाओं में अपने शरीर के प्रति हीन भावना पैदा हो जाती है और वे शरीर को सुडौल बनाने के लिए अतिरिक्त पोषक तत्वों का उपयोग करने लगते हैं। हालांकि उनका शरीर स्वस्थ होता है। अध्ययन का निष्कर्ष स्लीप हेल्थ में प्रकाशित हुआ है।

खराब नींद से किशोरों व युवाओं में नकारात्मक प्रभाव

 

अध्ययन में 900 से अधिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया और उनकी दो सप्ताह तक निगरानी की गई। शोध में पाया गया कि जिन प्रतिभागियों को कम नींद आई या नींद में बाधा पड़ी उनमें मसल डिस्मोर्फिया के लक्षण पाए गए। टोरंटो यूनिवर्सिटी में सोशल वर्क संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर व शोध के प्रमुख लेखक काइले टी गैनसन ने कहा कि खराब नींद से किशोरों व युवाओं में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उनमें नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण जन्म लेते हैं। मसल डिस्मोर्फिया का अनुभव करने वाले युवाओं की सामाजिक गतिविधियों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इसके चलते कुछ में आत्महत्या जैसे विचार भी बढ़ने लगते हैं।

किशोरों व युवाओं में सात से दस घंटे की नींद का सुझाव

 

मसल डिस्मोर्फिया से ग्रसित युवा शरीर को मांसल बनाने के लिए अतिरिक्त पोषक तत्वों का उपयोग करने लगते हैं। इन उत्पादों में कैफीन या अन्य उत्तेजक पदार्थों का उच्च स्तर होता है, जो नींद में बाधा पहुंचाता है। पूर्व के अध्ययनों में किशोरों व युवाओं में सात से दस घंटे की नींद का सुझाव दिया गया है। अध्ययन में इसके साथ ही खराब नींद से अवसाद व चिंता जैसी मानसिक स्थितियों के लिए जिम्मेदार पाया गया है। (एएनआइ)

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