Shivraj Singh Chauhan: कई वजहों से चर्चा में रहे ‘मामा’ का कार्यकाल, आगे अब शिवराज सिंह चौहान का क्या होगा
भोपाल, बीएनएम न्यूज। (Shivraj Singh Chauhan) मध्य प्रदेश में एक हफ्ते से चल रहा सस्पेंस सोमवार को खत्म हो गया। विधायक दल ने तय किया कि उज्जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे। इसी घोषणा के साथ शिवराज सिंह चौहान का लगातार चौथी बार से चला आ रहा मुख्यमंत्री पद का सफर खत्म हो गया। तीन दिसंबर को जब भाजपा ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा ने जीत हासिल की जो पूर्व मुख्यमंत्रियों रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे की चर्चा सबसे ज्यादा चर्चा रही। चुनावों के दौरान शिवराज के हावभाव से लग रहा था कि अब वह आगे मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। इसीलिए वह जनता से पूछ रहे थे कि मैं चुनाव लड़ू या न लड़ू। अब माना जा रहा है कि इनका बतौर प्रदेश स्तरीय नेता का अब खत्म होने वाला है। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा शिवराज सिंह चौहान की रही। इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि भाजपा शासित राज्यों में अटल- आडवाणी युग के लोगों का कार्यकाल खत्म हो रहा है या उनके लिए कोई नई भूमिका तैयार हो रही है। लोग पूछ रहे हैं कि अब शिवराज का क्या होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि लोकसभा चुनाव से पहले या बाद में उन्हें केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है या उन्हें संगठन में बड़ा पद मिल सकता है। हो सकता है कि वह लोकसभा का भी चुनाव लड़ सकते हैं। भले ही शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं होंगे, लेकिन मध्य प्रदेश के लिए उनको भुलाना आसान नहीं होगा। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पिछले डेढ़ दशक के सफर में कई ऐसे पड़ाव आए, जिसके लिए शिवराज को आगे भी जाना जाएगा।
टर्निंग प्वाइंट रहा मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना को लागू करना
28 जनवरी, 2023 को प्रदेश में मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना को लागू किया गया। योजना के जरिए प्रदेश की सभी महिलाओं को हर माह 1 हजार रुपए दिए जाने लगे। बाद में इस राशि को बढ़ाकर 1250 रुपए किया गया। इससे महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना गया। यह योजना विधानसभा चुनावों के दौरान बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुई।
गले की फांस बन गया व्यापम घोटाला
कई ऐसे मौके आए, जब शिवराज की छवि के सामने व्यापमं घोटाला भारी पड़ता दिखा। कांग्रेस ने इसे हमेशा मुद्दा बनाया। समय-समय व्यापमं घोटाले का जिन्न बाहर निकला और शिवराज के लिए मुश्किलें बढ़ाईं। एक समय ऐसा भी आया जब शिवराज को विधानसभा में यह कहना पड़ा कि एक हजार से अधिक फर्जी भर्तियां हुईं। 18 जुलाई, 2013 में इस घोटाले में शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती समेत आरएसएस से जुड़े कई लोगों के नाम सामने आए। कई बड़े नेता और अधिकारी इसमें उलझते दिखे।
शिवराज बने युवाओं के मामा, महिलाओं के भैया
शिवराज की छवि एक नेता से ज्यादा प्रदेश के ऐसे मुखिया की रही है, जिसे महिलाएं अपना भैया मानती हैं और युवा उन्हें अपना मामा मानते थे। चुनावों के दौरान उन्होंने कहा कि आपका मामा बहुत याद आएगा। शिवराज ने कहा कि ‘मैंने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना बनाई और स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 फीसदी तक आरक्षण दिया। इसके बाद बेटियों और बेटों ने मुझे मामा कहना शुरू कर दिया और महिलाओं ने भैया।’ एमपी में शायद ही कोई ऐसा नेता रहा हो जिसका लोगों से ऐसा इमोशनल जुड़ाव हो.
पहली बार भी चौंकाया था
29 नवंबर 2005 को पहली बार शिवराज का नाम प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित किया गया। यह वो साल था जब भाजपा को तय करना था कि मध्य प्रदेश के नेतृत्व की कमान किसके हाथ में होगी। भाजपा बाबू लाल गौर की जगह किसी नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी, लेकिन संगठन के ज्यादातर लोगों को लगता था कि मुहर बाबू लाल के नाम पर लगेगी। प्रमोद महाजन ने मुख्यमंत्री पद के लिए शिवराज का नाम लिया। तमाम उथल-पुथल के बीच शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने।
क्या चौथी पारी खेलेंगे शिवराज
3 दिसम्बर को एमपी में प्रचंड बहुमत के बाद फिर चर्चा हुई कि क्या अब मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज अपनी चौथी पारी शुरू करेंगे या नहीं। प्रदेश के सीहोर जिले के 5 मार्च 1959 को जन्मे शिवराज के पिता प्रेमसिंह चौहान और सुंदरबाई चौहान खेती-किसानी से जुड़े रहे हैं। यही वजह रही है कि उनकी छवि किसान के बेटा के तौर पर भी बनी। भोपाल की बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडल के साथ पोस्ट ग्रेजुएशन किया। साल 1975 में भोपाल के आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल) के छात्रसंघ अध्यक्ष बने। उन्होंने 1976-77 आपातकाल का विरोध किया। 1972 में मात्र 13 साल की उम्र में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल हो गए। 1975-82 तक एबीवीपी में कई अहम पदों पर रहे और इसके बार राजनीति में अपनी पारी शुरू की। भारतीय जनता के कई संगठनों के लिए काम करते हुए 1990 में बुधनी से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने। 1991 में विदिशा से लोकसभा का चुनाव जीता और संसद तक पहुंचे। 1996 में दोबारा सांसद बने, लेकिन इन्हें सबसे ज्यादा पहचान और लोकप्रियता मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में मिली।