भूखे लंगूरों का पेट भरने के लिए खुद बन गए ‘लंगूर’, जैकी की अनूठी जिंदगी पर तैयार हुई डाक्यूमेंट्री, जानें पूरी कहानी

कोलकाता, बीएनएम न्यूज। अक्सर गलत इरादा इंसान को ‘जानवर’ बना देता है लेकिन एक शख्स ने नेकी के लिए जानवर का रूप धर लिया और पिछले 14 साल से लंगूर की तरह जी रहा है। भूखे लंगूरों का पेट भरने के लिए, जो उसके बचपन के साथी हैं। गुजरात के भावनगर के रहने वाले जैकी वाधवानी की जिंदगी वाकई अनूठी है, जो वृत्तचित्र ‘लंगूर’ के रूप में इन दिनों कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में चर्चा का विषय बनी हुई है।

गरीबी के कारण खाने के लाले पड़े

सिंधी परिवार में जन्मे जैकी ने बताया कि ‘गरीबी में मेरी आंखें खुलीं। तीन साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया। मां ने मेरे व बहन के पालन-पोषण के लिए दूसरी शादी कर ली। सौतेले पिता का बर्ताव अच्छा नहीं था। काम भी नहीं करते थे, इसलिए खाने के लाले पड़ गए। 14 साल की उम्र में मेरे कंधों पर घर की जिम्मेदारी आ गई। कभी पापड़ की दुकान तो कभी चाय के ठेले में काम किया। कड़ी मेहनत के बाद महीने में मात्र 300 रुपये मिलते थे, जिससे कुछ नहीं हो पाता था।’

लंगूरों के साथ रहते- रहते उन्हीं का रूप धर लिया

28 साल के जैकी ने आगे कहा कि ‘मुझे बचपन से ही लंगूरों से लगाव है। खाने को जो भी मिलता था, उसे लंगूरों के साथ बांटकर खाता था लेकिन जब खुद के खाने के लाले पड़ गए थे तो उन्हें कैसे खिलाता, इसलिए पैसे कमाने के लिए कुछ नया करने का सोचा। लंगूरों के बीच रहने के कारण मैं उनके हावभाव, उछल-कूद, आवाज निकालने और खाने-पीने के तरीके से भली-भांति परिचित था, सो उसी का रूप धर लिया। लोगों को यह पसंद आया और उन्होंने मुझे मनोरंजन के लिए अपने कार्यक्रमों में बुलाना शुरू कर दिया, खासकर बच्चों के जन्मदिन की पार्टी में। इससे थोड़े ज्यादा पैसे मिलने लगे, जिसमें से आधा अपने लंगूर दोस्तों पर खर्च कर देता था और आधा परिवार चलाने पर।

परिवार ने ही किया विरोध

हनुमान जी के परम भक्त जैकी ने कहा कि ‘जब मैंने लंगूर का रूप धरकर लोगों को हंसाना शुरू किया तो पहला विरोध परिवार के सदस्यों ने ही किया। सबने कहा कि इससे समाज में उनका नाम खराब हो रहा है। ऐसा करोगे तो आगे तुम्हारी शादी भी नहीं होगी, लेकिन मैं लगा रहा। कुछ कार्यक्रमों में अपमान भी सहना पड़ा। कई लोगों ने असली लंगूर समझकर थप्पड़ तक मारा। धीरे-धीरे मेरा गेटअप मशहूर हो गया और लोग काफी पसंद करने लगे। अंतत: परिवार का भी समर्थन मिला। आज एक कार्यक्रम के मुझे 5,000 रुपये तक मिल जाते हैं।’ जैकी हूबहू लंगूर की तरह आवाज निकाल लेते हैं। झट से ऊंची जगह पर चढ़ जाते हैं।

ऐसे तैयार हुई डाक्यूमेंट्री

जैकी ने बताया कि ‘मुझे पिछले साल किसी ने कार्यक्रम के लिए मुंबई बुलाया था। वहां गया तो कोई नहीं मिला। शायद किसी ने बेवकूफ बनाया था। मैं लंगूर के वेश में ही मुंबई की सड़क पर रात को घूम रहा था। तभी कार से जा रहे निर्माता-निर्देश हैदर खान की मुझ पर नजर पड़ी। उन्होंने मुझे कार में बिठाया और मेरी आपबीती सुनी। उसके बाद उन्होंने मेरे जीवन पर वृत्तचित्र तैयार करने का निर्णय लिया। पांच-छह महीने वृत्तचित्र की शूटिंग हुई।’

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