मनु भाकर, डी गुकेश, हरमनप्रीत सिंह और प्रवीण कुमार को मिलेगा मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार, 32 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार

मनु भाकर, डी गुकेश, हरमनप्रीत सिंह और प्रवीण कुमार

नई दिल्ली, बीएनएम न्‍यूज : भारत में खेलों को लेकर हमेशा से ही एक विशेष उत्साह रहा है, जिसमें खिलाड़ी अपने अद्भुत प्रदर्शन से देश का नाम रोशन करते हैं। इस वर्ष देश के सर्वोच्च खेल सम्मान, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के लिए चार खिलाड़ियों का चयन किया गया है। इनमें शामिल हैं, ओलिंपिक पदक विजेता निशानेबाज मनु भाकर, युवा शतरंज के जादूगर डी गुकेश, और भारतीय पुरुष हाकी टीम के कप्तान हरमनप्रीत सिंह के साथ-साथ पैरा एथलीट प्रवीण कुमार। इन खिलाड़ियों ने अपनी कड़ी मेहनत, संघर्ष और समर्पण से खेल की दुनिया में एक नई पहचान बनाई है।

ओलिंपिक की नई परिभाषा तय करती मनु भाकर

मनु भाकर ने स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर स्थापित किया है। मात्र 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने पेरिस ओलिंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल व्यक्तिगत और मिश्रित टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर यह साबित कर दिया है कि वे केवल एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। वे एक ही ओलिंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं।

इस पुरस्कार की घोषणा उस समय हुई जब मनु के नाम को लेकर कुछ विवाद का सामना करना पड़ा था। पुरस्कार चयन समिति ने स्वीकृति नहीं दी थी क्योंकि वे आवेदन करने में चूक गई थीं। इसके कारण मनु ने बाद में स्वीकार किया कि उन्हें नामांकन भरना भूल गई थीं। हालांकि, विवाद सुलझने के बाद, पुरस्कार मिलने में कोई संदेह नहीं था। उनके इस प्रदर्शन ने न केवल उन्हें बल्कि पूरे देश को गर्व का अनुभव कराया।

हरमनप्रीत सिंह की नेतृत्व कौशल

भारतीय पुरुष हाकी टीम के कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने भी पेरिस ओलिंपिक में शानदार प्रदर्शन के माध्यम से अपना नाम मजबूत किया। उनकी कप्तानी में, भारत ने लगातार दूसरे ओलिंपिक में पदक जीता। हरमनप्रीत के नेतृत्व में, भारतीय हाकी टीम ने अपनी नई ऊंचाई को छुआ और ओलिंपिक खेलों में विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई।

हाकी केवल एक खेल नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हरमनप्रीत जैसे कप्तान के नेतृत्व में, भारतीय टीम ने हर बार अपने प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती दी है और खेल के प्रति अपने समर्पण को दर्शाया है।

युवा शतरंज चैंपियन डी गुकेश

18 वर्ष के डी गुकेश, जिन्होंने पिछले साल शतरंज ओलिंपियाड में भारतीय टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, अब विश्व चैंपियन बनकर इतिहास रच रहे हैं। उनकी तेज़ सोच और असीमित क्षमता ने उन्हें सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बनने में मदद की।

गुकेश की सफलता ने न केवल शतरंज के खेल में भारत की स्थिति को ऊंचा उठाया है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि युवा खिलाड़ियों में कितनी संभावनाएं हैं। वे न केवल अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रहे हैं, बल्कि पूरे देश को खेल और रणनीति के इस अद्भुत खेल में प्रेरित कर रहे हैं।

पैरा एथलीट प्रवीण कुमार का अनुपम उदाहरण

पैरा एथलीट प्रवीण कुमार ने पेरिस पैरालिंपिक के टी64 वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर सभी का दिल जीत लिया। प्रवीण उन खिलाड़ियों की श्रेणी में आते हैं जिनके घुटने से नीचे एक या दोनों पैर नहीं होते हैं, और वे दौड़ने के लिए कृत्रिम पैर पर निर्भर होते हैं।

उनकी उपलब्धियों ने दिखाया है कि किसी भी चुनौती का सामना करने का साहस और समर्पण रखने वाले खिलाड़ी क्या कर सकते हैं। प्रवीण ने अपने खेल में जो उत्कृष्टता दिखाई है, वह सभी के लिए प्रेरणादायक है। उनके योगदान ने न केवल विशिष्ट खिलाडियों के प्रति सम्मान बढ़ाया है, बल्कि समाज में परिवर्तन की दिशा में भी सकारात्मक प्रभाव डाला है।

अर्जुन पुरस्कार की भी घोषणा

मेजर ध्यानचंद आजाद खेल रत्न पुरस्कार के साथ-साथ अर्जुन पुरस्कार भी इस वर्ष की खिलाड़ियों की सफलता की कहानी को बयां करता है। अर्जुन पुरस्कार के लिए चुने गए 32 खिलाड़ियों में सबसे अधिक, 17 पैरा एथलीट शामिल हैं। यह भारतीय खेलों में पैरा एथलीटों की बढ़ती भूमिका और उनके महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है। यह पुरस्कार केवल सम्मान नहीं है, बल्कि समाज में समानता की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने का प्रतीक भी है।

खेल में अपनी पहचान बनाई

इन खिलाड़ियों की सफलताओं ने यह साबित कर दिया है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ता किसी भी बाधा को पार कर सकती है। भारत की खेल संस्कृति में यह सम्मान केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों का प्रमाण नहीं है, बल्कि यह युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

हरमनप्रीत, मनु, गुकेश और प्रवीण ने ना केवल खेल में अपनी पहचान बनाई है, बल्कि उन्होंने सभी भारतीयों को यह सिखाया है कि कठिनाइयों का सामना करना और अपने सपनों को पूरा करना संभव है। खेल रत्न पुरस्कार और अर्जुन पुरस्कार जैसी उपलब्धियाँ भारतीय खेल इतिहास में एक अध्याय जोड़ती हैं, जिसमें इन खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत और लगन से लिखा है।

भारतीय खेलों के भविष्य के लिए यह एक सुनहरा समय है, और हमें गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे खिलाड़ियों के साक्षी रहे हैं, जिन्होंने मैदान पर और उसके बाहर दोनों जगह उत्कृष्टता प्राप्त की है। आगे बढ़ते हुए, हमें इस प्रेरणा को अपने जीवन में उतारना चाहिए और खेलों को एक नयापन देना चाहिए।

 

You may have missed