हाई कोर्ट ने कहा, विवाहित व्यक्ति का लिव-इन में रहना सामाजिक ताने-बाने और नैतिक मूल्यों के खिलाफ

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे एक विवाहित व्यक्ति और उसकी साथी को कानूनी संरक्षण प्रदान करने से इनकार किया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तरह के अवैध संबंध भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों और सामाजिक ताने-बाने के लिए हानिकारक होते हैं। जस्टिस संदीप मौदगिल की अध्यक्षता में इस मामले की सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने भारतीय संविधान में निर्धारित अधिकारों और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया।

न्यायालय के तर्क

जस्टिस मौदगिल ने अपने निर्णय में अनुच्छेद 21 का उल्लेख किया, जो प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्ण और सम्मान से जीने का अधिकार देता है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिकार कानून के दायरे में होना चाहिए और इसका मतलब यह नहीं है कि अवैध संबंधों को मान्यता दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसे मामलों में संरक्षण दिया जाता है, तो यह द्विविवाह जैसी अवैध प्रथाओं को बढ़ावा देगा, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत एक अपराध है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि एक विवाहित व्यक्ति का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना न केवल उस व्यक्ति के लिए, बल्कि उसके परिवार और समाज के लिए भी खतरे की घंटी है। अदालत का यह तर्क समाज में पारिवारिक संरचना की रक्षा करने एवं नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। उन्होंने उल्लेख किया कि इस प्रकार के संबंधों को वैधता प्रदान करने से माता-पिता की प्रतिष्ठा और परिवार की गरिमा को नुकसान पहुंच सकता है।

विवाह का महत्व

हाई कोर्ट ने विवाह को एक पवित्र और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण संस्था के रूप में स्थापित किया। जस्टिस मौदगिल ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का बंधन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों का आधार भी है। इस प्रकार के संबंधों को वैधानिक मान्यता देने का अर्थ है कि परिवार की सामाजिक संरचना कमजोर हो जाएगी, जिससे समाज में अस्थिरता बढ़ सकती है।

उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से भारतीय समाज में पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। लिव-इन रिलेशनशिप जैसी आधुनिक जीवनशैली का समर्थन करना हमारी सांस्कृतिक जड़ों से भटकने का संकेत है, जो हमारी पहचान और मूल्यों को कमजोर कर सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे संबंधों की संस्कृति को बढ़ावा देने का मतलब समाज के नैतिक ढांचे को क्षति पहुंचाना होगा।

पूर्व न्यायिक निर्णय का हवाला

इस मामले में हाई कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत विवाहित व्यक्ति अवैध संबंध के लिए संरक्षण नहीं मांग सकता। यह निर्णय यह दर्शाता है कि न्यायपालिका परिवार और विवाह की पवित्रता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। कोर्ट का यह तर्क महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय संविधानों और सामाजिक धारा के अनुरूप है।

व्यक्तिगत आजादी और सामाजिक जिम्मेदारी

हालांकि न्यायालय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर ज़ोर दिया, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि व्यक्ति सामाजिक सुरक्षा और सांस्कृतिक मूल्यों को दरकिनार कर सके। अदालत ने कहा कि हमारे समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विरोधाभास नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक जिम्मेदारी के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

समकालीन संदर्भ में निर्णय का प्रभाव

यह निर्णय न केवल यह समझाता है कि विवाहित व्यक्ति को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का ध्यान रखना चाहिए, बल्कि यह भी दिखाता है कि लिव-इन रिलेशनशिप जैसी आधुनिक प्रथाओं को भारतीय समाज में कैसे अपनाया जा रहा है। भारतीय समाज की संवेदनशीलता को समझते हुए, कोर्ट का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण संकेत देता है कि विवाह और परिवार के संस्थान को संरक्षित किया जाना चाहिए।

लिव-इन रिलेशनशिप पर समाज का दृष्टिकोण

भारतीय समाज ने पारंपरिक रूप से विवाह को एक आवश्यक संस्था के रूप में देखा है जो नैतिक और नैतिक मूल्यों को बनाए रखती है। हालाँकि, बदलते समय के साथ, विभिन्न प्रकार के रिश्तों की स्वीकृति बहस का विषय बन गई है। जबकि कुछ लोग लिव-इन रिलेशनशिप को आधुनिक विकल्प के रूप में मान्यता देने की वकालत करते हैं, जैसा कि इस फैसले में उल्लेख किया गया है, अदालतें एक ऐसे दृष्टिकोण की ओर झुकती हैं जो विवाह की पवित्रता पर जोर देती है।

पारिवारिक संरचना को प्राथमिकता

 

इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि मानव संबंधों में कानूनी कैसे होनी चाहिए, इसे लेकर हमारी न्यायपालिका की स्पष्ट राय है। यह सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज के उस मूल विचारधारा का भी अंश है, जिसमें विवाह को एक प्रतिष्ठित बंधन और पारिवारिक मूल्यों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी समझा जाता है। इस प्रकार के निर्णय भविष्य में समाज को एक नई दिशा दिखा सकते हैं, जिसमें पारिवारिक संरचना को प्राथमिकता दी जाएगी और नैतिकता के मूल्यों को बनाए रखा जा सकेगा।

उपरोक्त संदर्भ में यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को ध्यान में रखता है, बल्कि समाज में नैतिकता और परिवार की गरिमा की रक्षा करने का भी प्रयास करता है। ऐसे में, इसे केवल एक कानूनी निर्णय के रूप में नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश के रूप में देखा जाना चाहिए।

 

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