मस्तिष्क के खास क्षेत्र के जरिये चेहरों की पहचान करते हैं नेत्रहीन

नई दिल्ली, एजेंसी: विज्ञानियों ने मस्तिष्क के उस क्षेत्र का पता लगाया है जिसका इस्तेमाल नेत्रहीनों द्वारा बुनियादी चेहरों को पहचानने के लिए किया जाता है। इसे फ्यूसीफार्म फेस क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। जबकि हम यह जानते हैं कि अंधे लोग कुछ हद तक अन्य इंद्रियों का उपयोग करके अपनी दृष्टि हानि की भरपाई कर सकते हैं। अमेरिका के जार्जटाउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में परीक्षण किया कि यह क्षतिपूर्ति किस हद तक मौजूद है।

शोधकर्ताओं ने जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित अपने अध्ययन में कहा कि छवियों को ध्वनियों में परिवर्तित करने वाले विशेष उपकरण का उपयोग करके नेत्रहीन एक बुनियादी ‘कार्टून’ चेहरे को पहचान सकते हैं। जैसे कि एक खुश या उदास चेहरे वाला इमोजी। जार्जटाउन यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस विभाग में प्रोफेसर जोसेफ रासचेकर ने कहा कि हमारे अध्ययन ने एक सेंसरी सब्स्टिट्यूशन डिवाइस की सहायता से बुनियादी दृश्य पैटर्न को श्रवण पैटर्न में एन्कोड करके यह जानने की कोशिश की कि देखने और सुनने के बीच यह प्लास्टिसिटी किस हद तक मौजूद है। उन्होंने मस्तिष्क क्षेत्र को निर्धारित करने के लिए फंक्शनल मैगनेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआइ) का उपयोग किया जहां यह प्रतिपूरक प्लास्टिसिटी हो रही थी। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में छह अंधे और 10 आशिंक दृष्टिहीन लोगों को शामिल किया। इनमें से सभी को ध्वनियों के माध्यम से चेहरों को पहचानना सीखने के लिए अभ्यास सत्र का आयोजन किया।

शोध दल ने एफएमआरआइ स्कैन के माध्यम से पाया कि अंधों ने ध्वनियों के जरिये चेहरे को पहचानने की कोशिश के दौरान बाएं फ्यूसीफार्म चेहरे के क्षेत्र को सक्रिय किया, जबकि दृष्टि वाले लोगों में चेहरे की पहचान ज्यादातर दाएं फ्यूसीफार्म चेहरे के क्षेत्र में हुई। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह सूत्र सेंसरी सब्स्टिट्यूशन उपकरण को परिष्कृत करने में हमारी मदद कर सकते हैं।

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